बसपा ने एक तीर से साधे दो निशान, जमाली को मैदान में उतारकर सपा को सबक सिखाया तो भाजपा से बनाई दोस्ती

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Mayawati said, will continue to work for Bahujan Mission till her last breath, Congress cornered on guest house scandal
मायावती ने कहा कि इसके पहले भी मेरे राष्ट्रपति बनने की अफवाहें उड़ाई गई थीं।

लखनऊ। आजमगढ़ और रामपुर में हुए उपचुनाव के बाद आए नतीजे ने प्रदेश की राजनीति में नया समीकरण बना दिए। मायावती ने जहां आजमगढ़ से गुडडू जमाली को उतारकर मुस्लिम वोटर्स का बंटवारा करके सपा को हराया और भाजपा से दोस्ती बढ़ा ली। बसपा प्रत्याशी गुड्डू जमाली को ढाई लाख वोट मिले, इससे बसपा की मुस्लिमों में पकड़ मजबूत हो गई।

मजबूत हुए जमाली, सपा का किया बंटाधार

बता दें कि 2019 का लोकसभा चुनाव सपा और बसपा मिलकर चुनाव लड़े थे। ऐसे में आजमगढ़ में सपा मुखिया अखिलेश यादव ढाई लाख से ज्यादा वोटों से चुनाव जीत गए थे। इससे पहले 2014 के चुनाव में बसपा से शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली ही आजमगढ़ से चुनाव लडे़ थे। उन्हें कुल मतों का 27 प्रतिशत वोट मिला था। इस बार उप चुनाव में बसपा ने फिर से उन्हीं पर दांव लगाया।उनका प्रदर्शन भी ठीक रहा और इस बार उन्हें 29 प्रतिशत वोट मिले। कुल 266210 वोट पाकर उन्होंने सपा का बंटाधार कर दिया। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि बसपा भले ही विधानसभा चुनाव में बुरी तरह से पस्त हो गई हो पर लोकसभा चुनाव में उसका वोट प्रतिशत अभी कम नहीं हुआ है।

मुस्लिम मतदाताओं का बढ़ा विश्वास

बात अगर इस बार के सामाजिक समीकरण की जाए तो सपा से मुस्लिम मतदाताओं का मोहभंग हुआ है। वजह अखिलेश यादव और आजम खान की लड़ाई मुख्य वजह बनी है। इस लड़ाई का फायदा उठाने में मायावती का काफी सफल रही। मायावती ने भले ही मैदान में उतरकर चुनाव प्रचार न की हो, लेकिन वह बार-बार सोशल मीडिया के जरिए अपील करती रहीं। वह खास तौर पर मुस्लिमों को यह समझाने की कोशिश करती रहीं कि यदि मुस्लिम और दलित वोटर एक हो जाएं तो भाजपा को हराया जा सकता है। विधानसभा चुनाव के बाद से ही वह लगातार इस पर फोकस कर रही हैं। आजमगढ़ में उनकी अपील का असर भी आया कि मुस्लिम वोटर सपा और बसपा के बीच बंट गए। इसके अलावा गुड्डू जमाली का वहां अपना भी मुस्लिमों में खासा असर है। इस समीकरण ने सपा की हार का आधार तैयार किया।

अखिलेश की नासमझी ने हराया

इस उपचुनाव में हार की एक वजह सामने आई, दरअसल अखिलेश यादव 2019 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद एक बार भी अपने संसदीय क्षेत्र आजमगढ़ नहीं गए। यहां तक की कोरोना में एक बार भी जनता का दर्द जानने नहीं पहुंचे। विधानसभा चुनाव में आजमगढ़ से न उतरकर सुरक्षित सीट मैनपुरी से चुनाव लड़ा, साथ ही आजमगढ़ से रिश्ता तोड़ लिया। उपचुनाव में एक बार भी आजमगढ़ या रामपुर में प्रचार करने नहीं गए, इससे मुस्लमानों में गलत संदेश गया।

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