लखनऊ। देश के सबसे बड़े सूबे उत्तर प्रदेश से एक हैरान करने वाला मामला सामने आया है। यहां करीब 15 परिवारों ने अपनी संपत्ति पीएम मोदी को देने का निर्णय करने के साथ इच्छा मृत्यु की गुहार लगाई है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक यूपी आगरा के 15 परिवारों ने एक-एक पैसा जुटाकर प्लॉट खरीदे।
मिली जानकारी के मुताबिक 26 साल बाद भी उन्हें कब्जा नहीं मिला। बताया गया कि शिकायत करते-करते थक गए। अब निराश होकर इन परिवारों ने 40 करोड़ रुपये की संपत्ति पीएम नरेंद्र मोदी के नाम करने का फैसला लिया है। इसके साथ ही इंसाफ नहीं मिलने पर राष्ट्रपति से संसद भवन के परिसर में जहर खाकर इच्छा-मृत्यु की गुहार लगाई है।
ये है पूरा मामला
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गांधी नगर निवासी आरएन शुक्ला दूरसंचार मंत्रालय से सेवानिवृत्त हैं। उनके मुताबिक सेवा के दौरान दिल्ली में रहते हुए 1990-91 में रेल विहार सहकारी समिति का सदस्य बना था। उसमें 302 सदस्य थे। सभी सरकारी नौकरी में थे। बताया गया कि गाजियाबाद की लोनी तहसील स्थित साबदुल्लाबाद में समिति ने 135 बीघा जमीन खरीद कर सदस्यों के लिए प्लॉट काटे।
उनके मुताबिक 1996 में 330 रुपये प्रति गज के हिसाब से लॉटरी से 100-100 गज के प्लॉट आवंटित हुए। फिर वे 2013 में सेवानिवृत्त होने के बाद प्लॉट पर गए तो वहां कब्जा हो चुका था। बताया गया कि समिति के अध्यक्ष, सचिव व सदस्य भी बदल गए। उनके मुताबिक 26 साल बाद भी प्लॉट पर मकान नहीं बना पाए।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार पीड़ितों में दिल्ली, नोएडा, गाजियाबाद के परिवार भी शामिल हैं। मिली जानकारी के मुताबिक इनमें से 15 परिवारों ने अपने आवंटन पत्र, स्टांप पेपर व अन्य दस्तावेज पीएम मोदी के नाम लिख दिए हैं। जिनकी कीमत करीब 40 करोड़ रूपए बताई गई है।
लगाई न्याय की गुहार
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 100 रुपये के स्टांप पर 15 परिवारों ने प्लॉट नंबर, एलॉटमेंट लेटर व अन्य प्रपत्र प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पुत्र दामोदर दास मोदी के नाम से तैयार कराए हैं। वहीं पीड़ित आरएन शुक्ला के मुताबिक बैनामा पत्र पर हस्ताक्षर पीएम के सामने करेंगे। उन्होंने राष्ट्रपति के नाम भी चिट्ठी भेजी है।
जिसमें कहा है, इंसाफ करें। यदि नहीं कर सकते तो हमारी संपत्तियां रख लें और हमें इच्छा-मृत्यु की अनुमति प्रदान करें। बताया गया कि लौनी पुलिस स्टेशन में पीड़ितों ने 29 अक्तूबर 2018 को शिकायत दर्ज कराई थी। इसकी जांच चार साल से आर्थिक अपराध शाखा में लंबित है।
वहीं एक अन्य शिकायत डीएम गाजियाबाद से की, इसकी भी जांच नहीं हो सकी। इसके अलावा आवास विकास आयुक्त, लखनऊ से की गई शिकायत पर भी उदासनीता ने इनकी निराशा बढ़ा दी और मजबूरन उन्हें ऐसे निर्णय लेने को मजबूर होना पड़ा।
इसे भी पढ़ें..