नवेद शिकोह- लखनऊ। करीब दर्जन भर प्रभावशाली यू ट्यूब चैनलों की डिबेट में बीस-तीस जाने-पहचाने पत्रकार यूपी चुनाव में भाजपा के पिछड़ने का विश्लेषण पेश कर रहे हैं। इन चैनलों की कई मिलियन लोगों तक पहुंच है।जिससे चुनावों के अगले चरणों का प्रभावित होना लाजमी है। ऐसे नुकसान से बचने के लिए इतने कम समय में कोई उपाय भी नहीं सूझ रहा होगा।
पार्टी को चुनाव में नुकसान के विश्लेषण के काउंटर के लिए भाजपा के पास प्रर्याप्त यूट्यूब चैनल्स नहीं हैं। सच ये है कि भाजपा की ताकतवर आईटी सेल इन चैनलों को जरा भी काउंटर नहीं कर पा रही है। वजह ये है कि आईटी सेल को पर्दे के पीछे से काम करना पड़ता है जबकि विशेषकर भाजपा की कमजोरियां पर ही केंद्रित इन यूं ट्यूब चैनलों की ताकत बरसों से स्थापित पत्रकार या चर्चित नए चेहरे पर्दे के सामने हैं।
सोशल मीडिया के भरोस है बीजेपी
भाजपा की प्रगति में सोशल मीडिया (सशक्त आईटी सेल) की अहम भूमिका रही। आरोप लगते हैं कि भाजपा ने पत्रकारों की बड़ी लाबी, अखबार और चैनलों को अपने पक्ष में किया। लेकिन जाने-पहचाने चेहरों वाले पत्रकारों के साथ भाजपा ने यूट्यूब चैनलों का जाल नहीं बिछाया। शायद पार्टी के रणनीतिकार ये मान बैठे थे कि सोशल मीडिया, फेसबुक और यूं ट्यूब इत्यादि पर आईटी सेल क़ाबिज़ रहेगा ही। बाक़ी बड़े पत्रकार और मुख्य धारा की व्यवसायिक मीडिया तो उनके पक्ष में माहौल बनाती ही रहेगी।
ये रणनीति तो ठीक थी पर भाजपा के मीडिया सलाहकारों ने ये अनुमान नहीं लगाया था कि प्रतिष्ठित, अनुभवी, जाने-पहचाने चेहरे वाले पत्रकारों का एक समूह भाजपा की कमियों-कमजोरियो़ पर आधारित यूं ट्यूब चैनलों का जाल बिछाकर करोड़ों दर्शकों को जोड़ लेगा।हो सकता है कि देर आए दुरुस्त आए कि कहावत को चरितार्थ करते हुए भाजपा के मीडिया रणनीतिकार आइंदा अपनी आईटी सेल पर ही निर्भर न रहे बल्कि कुछ स्थापित और प्रतिष्ठित पत्रकारों के साथ यू ट्यूब चैनलों का सिलसिला भी शुरू करे।
—यह लेखक के अपने स्वतंत्र विचार है।
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