लखनऊ। यूपी मिशन—2022 को लेकर चुनावी सरगर्मियां तेज हैं। इस बीच चर्चा है कि भाजपा से भारी तादाद में अपने समर्थकों संग सपा में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य ने भाजपा को बड़ी चोट दी है। वहीं अब भाजपा ने स्वामी प्रसाद मौर्य को चोट देने के नया प्लान तैयार किया है।
दरअसल कांग्रेस के बड़े नेता आरपीएन सिंह ने आज ही कांग्रेस छोड़ भाजपा का दामन थामा है। चर्चा है कि उन्हें पडरौना सीट से भाजपा उम्मीदवार बना सकती है। आरपीएन सिहं के बारे में कहा जाता है कि एक समय पडरौना सीट उनका गढ़ हुआ करता था। वहीं स्वामी प्रसाद मौर्य की बात करें तो वह पडरौना से लगातार तीन बार विधायक है।
चर्चा है कि भाजपा अब यहां से आरपीएन सिंह को उम्मीदवार बनाकर स्वामी प्रसाद मौर्य को चोट देना चाहती है। इस बीच अन्दर खाने चर्चा यह भी है कि सपा सुप्रिमो अखिलेश से स्वामी प्रसाद मौर्य की दूसरी ही तरह की डील हो गई है। ऐसे में हो सकता है कि स्वामी प्रसार मौर्य चुनाव ही न लड़ें और दूसरे रास्ते से सदन पहुंचें।
बहरहाल आरपीएन सिंह यानी रतनजीत प्रताप नारायण सिंह के बारे में बात करें तो वह कांग्रेस के दिग्गज नेता हैं। आरपीएन एक लंबा सियासी सफर तय कर चुके हैं। यूपीए सरकार में केंद्रीय राज्य मंत्री रहे और एक समय था जब कुशीनगर का पडरौना विधानसभा आरपीएन का गढ़ कहा जाता था।
2009 में लोकसभा सांसद चुने जाने तक वह यहां से तीन बार विधायक रहे। 2007 में भी उन्होंने यह सीट कांग्रेस के लिए जीती थी। 2009 में आरपीएन के सांसद बनने के बाद स्वामी प्रसाद मौर्य की इस सीट पर एंट्री हुई और उपचुनाव वह जीत गए।
आरपीएन सिंह का राजनीतिक सफर
1996 से 2009 तक पडरौना से कांग्रेस के विधायक रहे। 2009 से 2014 तक सांसद रहे।
साल 2009-2011 तक केंद्रीय सड़क, परिवहन और राजमार्ग राज्य मंत्री रहे। साल 2011-2013 तक केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस और कॉर्पोरेट मामले के राज्य मंत्री रहे।
सिंह के पिता कुंवर सीपीएन सिंह इंदिरा गांधी के समय रक्षा राज्यमंत्री थे। 1997 से 1999 तक सिंह युवा कांग्रेस उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष थे। 2003 से 2006 तक ऑल इंडिया कांग्रेस के सचिव रहे।
पडरौना का मुकाबला होगा दिलचस्प
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 2009 में हुए पडरौना विधानसभा के उपचुनाव में बसपा के स्वामी प्रसाद मौर्य यहां से जीते। 2012 में भी मौर्य ने जीत हासिल की। 2017 चुनाव से ठीक पहले मौर्य भाजपा में शामिल हो गए और यहां से तीसरी बार जीतने में कामयाब रहे। वहीं इस बार फिर मौर्य ने पाला बदल लिया है।
अब वह समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए हैं। उधर, भाजपा ने भी यहां आरपीएन सिंह के तौर पर नया चेहरा ढूंढ लिया है। भाजपा यदि उन्हें को यहां से चुनावी मैदान में उतारती है तो पडरौना का मुकाबला काफी दिलचस्प होगा।
यूं समझे पडरौना का जातीय गणित
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक पडरौना विधानसभा में 3.48 लाख मतदाता हैं। सबसे अधिक लगभग 84 हजार मुस्लिम वोटर्स हैं। इसके बाद करीब 76 हजार एससी, 52 हजार ब्राह्मण, 48 हजार यादव वोटर्स हैं। अब आरपीएन सिंह की बिरादरी यानी सैंथवार वोटर्स की बात करें तो उनकी संख्या 46 हजार,
जबकि स्वामी प्रसाद मौर्य की कुशवाहा जाति के वोटर लगभग 44 हजार हैं। ऐसे में यह माना जा रहा है कि यहां मुकाबला काफी दिलचस्प होने वाला है। वहीं राजनीतिक पंडितों के बीच चर्चा है कि यहां मुस्लिम और यादव वोटर्स खुलकर सपा को ही वोट करेंगे। बाकी जातियों के वोटर्स में बंटवारा होगा।
सैंथवार अगर आरपीएन का साथ देंगे तो कुशवाहा-मौर्य बिरादरी के ज्यादातर लोग स्वामी प्रसाद के साथ होंगे। ऐसे में एससी और ब्राह्मण वोटर्स ही निर्णायक भूमिका में होंगे। जो इन दोनों वर्ग के वोटर्स को अपनी ओर कर लेगा वही पडरौना जीत सकेगा।
यह है इस सीट का इतिहास
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक 2017 में मोदी लहर से पहले भाजपा को 1991 की राम लहर में पडरौना से जीत मिली थी। 1993 में इस सीट पर समाजवादी पार्टी के बालेश्वर यादव ने जीत दर्ज कराई थी। इसके बाद 1996 से यहां कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह का वर्चस्व कायम हो गया। बताया गया कि 2009 तक वह इस सीट से विधायक रहे।
आरपीएन के लोकसभा का चुनाव जीतने के बाद से कांग्रेस ने यह सीट नहीं जीती। वहीं 2017 के चुनाव में भाजपा के स्वामी प्रसाद मौर्य को 93649 वोट मिले थे। उन्होंने बसपा के जावेद इकबाल को 40552 वोट से हराया था। वहीं 41162 वोट पाकर कांग्रेस की शिवकुमारी देवी तीसरे नंबर पर रही थीं।
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