उर्दू-हिन्दी साहित्य जगत के सबसे विवादित साहित्यकार सआदत हसन मंटो

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Saadat Hasan Manto, the most controversial litterateur of Urdu-Hindi literary world
मंटो पर आरोप लगाए गए कि उनकी कहानियां समाज को बिगाड़ने वाली हैं। कहा गया कि जिस प्रकार की खुली कहानियां मंटो ने लिखी हैं उस प्रकार की कहानियां नहीं लिखी जानी चाहिए।

लखनऊ। सआदत हसन मंटो हिंदी-उर्दू साहित्य जगत के सबसे बदनाम साहित्यकार बताए जाते हैं परंतु सच यह है कि मंटो हिंदी-उर्दू के पाठकों के मध्य सबसे अधिक पढ़े जाने वाले कहानीका-साहित्यकार हैं। केवल सआदत हसन मंटो ही हैं जिनके लेखन को आपत्तिजनक बताते हुए हिंदुस्तान और पाकिस्तान की अदालतों में मुकदमे चले।उन पर जुर्माने हुए परंतु मंटो झुके नहीं, मंटो, मंटो ही बने रहे, बेफिक्र और अपनी कलम पर गर्व करने वाले ।

मंटो पर आरोप लगाए गए कि उनकी कहानियां समाज को बिगाड़ने वाली हैं। कहा गया कि जिस प्रकार की खुली कहानियां मंटो ने लिखी हैं उस प्रकार की कहानियां नहीं लिखी जानी चाहिए। यह दोषारोपण किया गया कि मंटो शारीरिक भूख , कामुकता और नग्नता से सरोबार लिखते हैं और यह आरोप मुख्यत: उनके द्वारा लगाए गए जिनके अपने खुद के दर्जन -डेढ दर्जन अधिकृत बच्चे थे-ऐसी धार्मिक मनोवृति वाले पुरुष , बीमार मानसिकता से ग्रस्त महापुरुष, एक लेखक-रचनाकार को जो समाज का वास्तविक चेहरा लोगों को दिखा रहा था, उसे शैतान बता रहे थे। परंतु सआदत हसन मंटो ने कभी भी, ऐसे किसी आरोप को गंभीरता से नहीं लिया क्योंकि वे जानते थे कि यह एक विक्षिप्त दिमाग की झाग है।

जमाना आपकी सहनशक्ति से बाहर है

मंटो कहते थे कि जिस युग में हम जी रहे हैं, उसके अगर आप जानकार हैं तो आप मेरी कहानियां पढ़िए और अगर आप मेरी कहानियों को बर्दाश्त नहीं कर सकते तो स्वीकार कर लीजिए कि यह जमाना आपकी सहनशक्ति से बाहर है । मेरी लेखन शैली में कोई बनावट नहीं है। मुझे पब्लिसिटी स्टंट पसंद नहीं । लोगों में उत्तेजना पैदा करने के लिए मैं नहीं लिखता।

मंटो कहते हैं- “संस्कृति और समाज की चोली को मैं क्या उतारुगा ? जो स्वयं नग्न है उसके कपड़े में कैसे उतार उतरवा सकता हूं?…हजार लोग इकट्ठे होकर भी एक नंगे आदमी को और ज्यादा नंगा नहीं कर सकते। मैं नंगे आदमी को कपड़े पहनाने की कोशिश भी नहीं करता।वह मेरा काम नहीं है, वह दर्जी का काम है । सआदत हसन मंटो बेबाक विचारों के बादशाह थे। किसी का लिहाज किए बिना, वह बिंदास होकर अपनी बात कहते थे, समाज में जो घटित हो रहा है उसको अपनी कलम का निशाना बनाते थे बगैर किसी की चिंता किए।

जमहाइयां लेती हुई आंखों से देखना

वे समाज को खुली आंखों से देखते थे। झपकती, मिचमिचाती, अलसाई और जमहाइयां लेती हुई आंखों से देखना उनको कभी भाया ही नहीं। मंटो कहते थे कि हर शहर में नाले और मोरियां मौजूद हैं जो शहर की गंदगी को बाहर ले जाती हैं । हम अगर अपने मरमरी गुसल खानों की बात कर सकते हैं , अगर हम साबुन और लवेण्डर का जिक्र कर सकते हैं तो उन मोरियों और नालों की बात और जिक्र क्यों नहीं कर सकते जो हमारे बदन का मैल पीती हैं ।

समाज में जो है ,जैसा है , मंटो ने वही लिखा है । अगर किसी वेश्या ने अपनी आत्मकथा लिखने का ऐलान किया और उसे सुनकर शहर के सारे स्वयंभू शरीफ लोगों ने आत्महत्या कर ली तो, उसमें वेश्या का क्या दोष ? मंटो की रचनाओं से अगर समाज के बदबूदार मवाद भरे फोड़े फूटने लगते हैं

वह बदबूदार मवाद आपके दिल और दिमाग में बेचैनी पैदा करता है तो उसमें मंटू के कलम का क्या दोष ? मंटो कहते हैं -नीम के पत्ते कड़वे सही मगर खून जरूर साफ करते हैं लेकिन मंटो ने कभी समाज सुधारक होने का दावा नहीं किया और न ही कभी , कहीं भी , किसी से भी यह कहा कि वह बुरे और भटके लोगों को अच्छाई का रास्ता दिखाते हैं । मंटो का कहना था कि ” हम मर्ज बताते हैं लेकिन दवाखानों के मैनेजर नहीं है ” और इस प्रकार मंटो ने अपने कर्म की सीमा निर्धारित कर ली थी ।

मंटो ने देखा और समझा

हमारे सांस्कृतिक और रचनात्मक इतिहास में मंटो की विशेषता यह है कि उन्होंने सबसे पहले ऐसे चरित्रों की पहचान की , उनको समझने की कोशिश की और उनको अपनी कहानियों , रचनाओं का आधार और मुख्य पात्र बनाया जिनसे साधारण लिखने वाले अपने कलम की दूरी बनाए रखते हैं।मंटो ने देखा और समझा,उन्होंने बताने और दिखाने की कोशिश की कि यह सच है कि हर “औरत” वेश्या नहीं होती परंतु हर वेश्या “औरत” होती है । कोठे पर बैठने वाली “औरत ” भी एक “औरत ” होती है और जिंदगी का जो ढर्रा वह अपनाती है , वह उसका अपना चयन नहीं होता , अधिकांशत: समाज की संरचना की स्थितियां भी उसे उसी राह पर धकेल देती हैं , उसे उसी राह पर चलने को मजबूर करती हैं ।

“लाइसेंस” कहानी क्या कहती है

“लाइसेंस” कहानी क्या कहती है ? क्या बताती है ? सदियों से हमारे समाज में प्रचलित “अपराध” और ” दंड”, “अच्छाई” और “बुराई “, “शराफत” और “कमीनापन ,” “सच्चरित्रता” और “दुष्चरित्रता” जैसी तमाम धारणाओं पर मंटो लानत भेजते हैं , उन्हें खारिज करते हैं। मंटो ने समाज के एक ऐसे सच के चेहरे से नकाब उठाई जिसे देखने की हिम्मत हमारा समाज अपने आप में पैदा नहीं कर सका।

वास्तव में मंटो और उनके समाज की लड़ाई , हौसला मंदी और बुजदिली की लड़ाई है और इन्हीं डरपोक और कायरों ने मंटो को अश्लील , पतनशील आदि आदि कह कर बदनाम करने के असफल प्रयास किए।वास्तव में अश्लीलता वस्तुगत नहीं है, भावना ग्रस्त है। किसी कृति को अश्लील बताने के लिए लेखक का उद्देश्य क्या है, यह पहले देखना पड़ता है । इसी कारण अजंता -एलोरा की गुफाओं में शिल्पकारी की जो अप्रतिम मूर्तियां हैं ,उनको हम अश्लील नहीं मानते।

कहानीकार कहानी लिखता है

मंटो कहते हैं कि मेरी कहानियां पढ़ कर किसी बीमार मन पर ही गंदा असर पड़ता है । परंतु जिन लोगों के मन तंदुरुस्त होते हैं उनके लिए ही कवि कविता प्रस्तुत करता है, कहानीकार कहानी लिखता है और चित्रकार चित्र बनाता है । मेरी कहानी नॉर्मल इंसानों के लिए हैं जो स्त्री की छाती को स्त्री की छाती ही समझते हैं , उससे ज्यादा कुछ नहीं। स्त्री -पुरुष के संबंध को आश्चर्य से नहीं देखते।” सआदत हसन मंटो नास्तिक थे और प्रगतिशील विचारों के थे। सांप्रदायिक दंगों से वे अत्यंत चिंतित और व्यथित रहते थे। फिरंगियों से देश को आजाद कराने के लिए आंदोलन हो रहे थे। सांप्रदायिक दंगों की आग को हवा देकर देश को बांटने की फिरंगी साजिश चल रही थी जिसे न तो अनेकों हिंदू नेता समझ पा रहे थे और न ही मुस्लिम नेता। स्वार्थों की कीचड़ ने उनकी आंखों पर पर्दा डाल रखा था।

देश के विभाजन पर रखी मान

हिंदुस्तान, भारत- पाकिस्तान दो भागों में बट गया । “चाचा सैम” नाम के एक काल्पनिक पात्र को मंटो ने दिनांक 16 , दिसंबर ,1951 के दिन 31,लक्ष्मी मेंशन लाहौर से एक पत्र भेजा । पत्र में लिखा “…मेरा देश हिंदुस्तान से विभाजित होकर अलग कैसे बना , कैसे आजाद हुआ , इसकी तो मुझे अच्छी तरह खबर है। मेरा देश कटकर स्वतंत्र हुआ और चाचा जान आप जैसे बुजुर्ग से यह बात छुपी नहीं हो सकती कि जिसके पंख काट कर मुक्त कर दिया जाता है , उस ‘पक्षी ‘ की आजादी कैसी होती है।

मेरा नाम सआदत हसन मंटो है और मैं उस स्थान पर पैदा हुआ था जो हिंदुस्तान में है , जहां मेरे माता-पिता को दफन किया गया था। मेरा बच्चा भी उसी जमीन में लंबी नींद सोया है , पर अब वह मेरा वतन नहीं रहा , मेरा वतन अब पाकिस्तान है ।…” सांप्रदायिक दंगों पर मंटो ने हास्य और व्यंग्य से भरपूर कई लघु कथाएं लिखी हैं ; जोड़ा, योग्य कार्यवाही , कब्र पर घी के दिए आदि आदि।मंटो जब लाहौर में थे तब उन्होंने पाकिस्तान में अमरीकी नीति पर बड़ी सख्त टिप्पणी की थी । उन्होंने लिखा था

दुश्मनों को विश्वास हुआ

“अमेरिका में जो लश्करी हलचल हो रही है वह पाकिस्तान को गुलाम बनाने की योजना है।” इससे वहां के राजनीतिक माहौल में हलचल मच गई। मंटो ने पाकिस्तान में रहते हुए कायदे आजम मोहम्मद अली जिन्ना के एक सुंदर शब्द चित्र का आलेखन किया है ।सआदत हसन मंटो 11, मई 1912 को हिंदुस्तान की जमीन पर आए और 18 ,जनवरी, 1955 को इस दुनिया से अलविदा कह दिया… मात्र 42 वर्ष 8 माह और 9 दिनों तक सांस लेने के बाद जब मुस्कुराते हुए मंटो ने दुनिया से अलविदा कहा तो न तो उनके चाहने वालों और न ही उनके दुश्मनों को विश्वास हुआ ।

1934 में कहानी लिखना आरंभ किया

मंटो के इस छोटे से जीवन में उनका साहित्यिक जीवन तो अत्यंत संक्षिप्त रहा । उन्होंने सन् 1934 में कहानी लिखना आरंभ किया और इस दृष्टि से उनका साहित्यिक जीवन मात्र 20-21 वर्ष का ही रहा जब कि उनके अनेक समकालीन साहित्यकारों की साहित्यिक यात्रा मंटो से दोगुनी या उससे भी अधिक समय तक जारी रही परंतु ऐसे साहित्यकारों का उल्लेख हम मात्र स्मृति के तौर पर करते हैं । मगर मंटो एक जीवित अनुभव के रूप में , एक जीती -जागती सच्चाई के रुप में , एक दहकते हुए सवाल की तरह आज भी हमारे साथ हैं और आने वाले युगों का संवाद भी मंटो से इसी प्रकार चलता रहेगा ।

राम किशोर, महामंत्री
डॉ राही मासूम रजा साहित्य अकादमी
मो.नं. 94522-42237

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