भाजपा सरकार और उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था

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कानून व्यवस्था को सुदृढ़ करने व कानून का शासन स्थापित करने के वायदे को भाजपा ने 2017 के विधान सभा चुनावों में अपना प्रमुख मुद्दा बनाया था।

लखनऊ। कानून व्यवस्था को सुदृढ़ करने व कानून का शासन स्थापित करने के वायदे को भाजपा ने 2017 के विधान सभा चुनावों में अपना प्रमुख मुद्दा बनाया था। आइये विचार करते है कि पिछले पांच वर्षों में उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की क्या स्थिति रही ? दरअसल 2017 में जब उत्तर प्रदेश में भाजपा सत्तासीन हुई, तो सरकार का पहला काम महिलाओं-लड़कियों पर बढ़ते अपराध पर रोक लगाने के लिए एंटी रोमियो दस्ते का गठन करना रहा। इस दस्ते का मुख्य काम स्कूल-कालेज जाने वाली लड़कियों को छेड़खानी से बचाने का था, लेकिन इस दस्ते ने उल्टे लड़कियों को ही सताया और परेशान किया। सहमति के साथ बैठे या साथ चल रहे युवक-युवतियों को इस दस्ते ने न केवल परेशान किया, उल्टे उन्हें प्रताड़ित भी किया।

30 मार्च 2017 को एक खबर समाचार पत्रों में आई, जहां एंटी रोमियो गस्त पर निकली पुलिस ने रामपुर में एक भाई-बहन को परेशान किया और उन्हें ले जाकर पुलिस थाने में बैठा दिया। उक्त घटना में पुलिस पर यह आरोप लगा कि जब उक्त दोनों ने यह साबित कर दिया कि वे भाई-बहन हैं तो भी पुलिस ने उन्हें छोड़ने के एवज में 5 हजार रुपये मांगे। एंटी रोमियो दस्ता न उन्नाव पहुंचा और न ही हाथरस और न ही अन्य स्थानों पर पहुंच सका, जहां पर दुधमुंही बच्ची से लेकर बूढ़ी माताओं तक के साथ बलात्कार व छेड़छाड़ की घटनाएं लगातार जारी रहीं।

अपराधियों के हौंसले बुलंद

यह एंटी रोमियो दस्ते पर नहीं, बल्कि उ. प्र. सरकार की कार्य प्रणाली पर प्रश्न चिन्ह है ? पिछले साल नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की सालाना रिपोर्ट के अनुसार महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में यूपी सबसे आगे रहा है। यहां यह उल्लेखनीय है कि रामराज्य की दुहाई देने वाले लोग बलात्कार व छेड़छाड़ की घटनाओं में लिप्त पाये गये और सरकार ऐसे लोगों को ही संरक्षण देने की कोशिश करती रही। चर्चित घटनाओं में हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद आरोपियों की गिरफ्तारी हो सकी। विवेकशील प्राणी भला इन घटनाओं को कैसे भुला सकता है ?

योगी सरकार का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य धन उगाही का रहा। यानी आम जनता को जुर्माने के नाम पर कैसे निचोड़ लिया जाय, यह भाजपा सरकार की कार्यप्रणाली से समझा जा सकता है। भाजपा की केन्द्र व राज्य सरकार ने मोटर विहिकल एक्ट के प्रावधानों में बदलाव कर बड़ी मात्रा में जुर्माने में बढ़ोत्तरी कर दी, जिसका खामियाजा आम जनता को भुगतना पड़ रहा है। कोरोना काल में एक के बाद एक हुए तुगलकी फरमानों से आम जनता में त्राहि-त्राहि मच गई। भूख से व्याकुल अपनी जिंदगी को खतरे में देख अपने घर की ओर पलायन करते राहगीरों पर लाठियों की बौछार हुई। उनसे जुर्माना वसूला गया। उन राहगीरों का दर्द बंद कमरे में बैठकर महसूस नहीं किया जा सकता। यह तो भाजपा सरकार की कानून व्यवस्था है!

नौकरशाही का हस्तक्षेप अधिक

लोकतंत्र में जनता सर्वोपरि होती है, इसलिए समाज के केन्द्र में कानून नहीं बल्कि मनुष्य होता है। मनुष्य की आजादी बरकरार रखना ही कानून का मुख्य कार्य होना चाहिए। कानून का निर्माण मनुष्य को केन्द्र में रखकर करना चाहिए। लेकिन भाजपा सरकार द्वारा निर्मित कानूनों में तानाशाही की प्रवृत्ति स्पष्ट देखी जा सकती है। किसी कानून से जब एक बड़ी आबादी नाखुश है तब उस कानून पर प्रश्न चिन्ह लगना स्वाभाविक है।

सरकार के प्रति बढ़ा असंतोष

कृषि कानून, लेबर कोड हों या सीएए, एनआरसी कानून – ये कानून दरअसल किसान विरोधी, मजदूर विरोधी एवं जनविरोधी चरित्र रखते हैं। इसलिए इन कानूनों की मुखालफत होनी ही चाहिए। लेकिन भाजपा सरकार को यह पसन्द नहीं है। भाजपा सरकार ने पिछले पांच वर्षों में सरकार की नीतियों व कार्य प्रणाली के खिलाफ उठने वाली हर आवाज को कुचलने की कोशिश की है।

सोशल मीडिया या अन्य माध्यमों पर सरकार की आलोचना करने पर मुकदमा लिखा जाना Yogi Sarkar में आम बात हो गई है। सही खबर लिखने वाले पत्रकारों को भी नही बख्शा गया, सही खबर लिखने पर बड़े पैमाने पर पत्रकारों के खिलाफ मुकदमे दर्ज किये गये। सीतापुर, आजमगढ़, मिर्जापुर, बिजनौर, लखनऊ, वाराणसी, फतेहपुर आदि जिलों में पत्रकारों पर इसलिए मुकदमे दर्ज किये गये, क्योंकि उन पत्रकारों ने सही खबरों की रिपोर्टिंग की थी।

सही खबरें देने वाले पत्रकार आज भी उत्तर प्रदेश की जेलों में सड़ रहे हैं, जबकि सरासर झूठी खबरें देने वाले पत्रकारों और मीडिया को पुरस्कृत किया जा रहा है। भाजपा के शासन काल में गाय के नाम पर धार्मिक उन्माद पैदाकर मुस्लिमों व अनुसूचित जाति के लोगों की लिचिंग की घटनाओं ने भाजपा सरकार के कानून विरोधी चेहरे को बेनकाब किया। सोनभद्र में हुए सामूहिक नरसंहार की कहानी भाजपा के अपराध मुक्त प्रदेश के दावे का असली चेहरा है।

हाईकोर्ट ने लगाई सरकार को फटकार

तानाशाहों के नक्शे कदम पर चलते हुए योगी सरकार अपने खिलाफ उठने वाली हर आवाज को खमोश करने के लिए सभी हदें पार कर रही है। जन विरोधी कानूनों के खिलाफ आन्दोलन करने वालों पर देशद्रोह सहित अन्य गंभीर अपराधों के झूठे आरोपों में मुकदमा दर्ज कर जेलों में डाल रही है। Yogi Sarkar की तरफ से दर्ज कराए गए राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (रासुका) के तहत 120 मामलों में से 94 मामले इलाहाबाद हाईकोर्ट ने रद्द कर दिये। हाईकोर्ट ने रासुका के दुरुपयोग पर राज्य सरकार को फटकार भी लगाई।

Yogi Sarkar ने अपने इस कार्यकाल में उत्तर प्रदेश के चार बड़े महानगरों में पुलिस कमिश्नरी सिस्टम लागू किया है। पुलिस कमिशनरी सिस्टम लागू होने के बाद आम जनता के ऊपर मुसीबतें लगातार बढ़ी हैं। यह आम चलन हो गया है कि यदि किसी व्यक्ति ने अपने ऊपर हुए अपराध की तहरीर थाने पर दी, तो उसकी एफआईआर दर्ज हो या न हो, लेकिन 107/116 की कार्यवाही उसके (पीड़ित पक्ष) खिलाफ जरुर की जा रहा है। यह कार्यवाही दरअसल पीड़ित पक्ष को हतोत्साहित करने के लिए की जा रहा है, जिससे कि पीड़ित पक्ष अपने ऊपर हुए अपराध की रिपोर्ट भी दर्ज न करा सके। यहां तक कि महिलाओं व बुजुर्गों पर भी यह कार्यवाही बड़े पैमाने पर की गई है। यह बातें योगी सरकार के सुशासन की पोल खोलतीं हैं।

पुलिस पर नहीं कर सके अंकुश

90 के दशक में बात होती थी जंगल राज की। उस जंगल राज में पुलिस द्वारा इन्काउन्टर, अपहरण, व वसूली के लिए पुलिस द्वारा किसी की भी हत्या कर दिए जाने की बात होती थी। उससे भी ज्यादा खतरनाक दृश्य भाजपा सरकार के इस शासनकाल में आम हो गये हैं। लखनऊ में पुलिस द्वारा एक नागरिक की हत्या की कहानी ताजा ही थी, कि गोरखपुर में एक व्यवसायी की हत्या पुलिस द्वारा कर दी गई।

इन हत्याओं की वजह अवैध वसूली ही सामने आई है। कानपुर में पुलिस और अपराधियों की मुठभेड़ किसी फिल्मी दृश्य से कम नही है। यह सबकुछ भाजपा सरकार के सुशासन में सम्पन्न हुआ है! Yogi Sarkar के सुशासन का एक और पहलू सामने आया है। वह यह है कि आम तौर पर किसी अपराध में लिप्त अपराधी को कोर्ट द्वारा सजा दिलाई जाती थी। लेकिन योगी सरकार बर्बरता पर उतारु है।

कमजोरों को किया गया परेशान

Yogi Sarkar  ने ज्यादातर गरीब व वंचित तबके के अपराधियों/आरोपियों का फर्जी इन्काउन्टर ही नहीं किया, बल्कि उन आरोपियों के निर्दोष परिवार वालों को भी बुरी तरह परेशान किया। ऐसा मुख्यमंत्री जिसने अपने ऊपर लगे सभी गंभीर आरोपों के मुकदमे स्वयं वापस ले लिए हों। आजाद भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसा पहली बार योगी सरकार में ही सम्पन्न हुआ है। पिछले पांच वर्षों में भाजपा नीत उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपनी कैबिनेट की बैठकों से ज्यादा बैठकें सचिवों के साथ कीं।

तानाशाही की प्रवृत्ति इस बात से देखी जा सकती है। Yogi Sarkar  अलग अलग विभागों के सचिवों की एक टीम बनाकर सरकार चला रहें हैं। प्रभारी सचिव के तहत अलग अलग विभाग के सचिवों को मुख्यमंत्री ने जिलों का प्रभार दे रखा है, जो कि जिलों के डी एम, एसपी को निर्देशित कर मुख्यमंत्री को रिपोर्ट करते हैं। प्रभारी सचिव की व्यवस्था के आगे प्रभारी मंत्री अप्रभावी है। लोकतंत्र में जन प्रतिनिधियों के ऊपर नौकरशाही की बढ़ती दखल लोकतंत्र के लिए अशुभ संकेत है।

जनविरोधी नीतियों के खिलाफ धरना

 नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो( यह आंकडे गूगल पर आसानी से उपलब्ध हैं। ) के आंकड़े उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था की तस्वीर देखने के लिए पर्याप्त हैं। बावजूद इसके कि ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं होते हैं। आज थानों में जाने से लोग डरने लगे हैं। उत्तर प्रदेश के किसी भी शहर या जिले में सरकार की जनविरोधी नीतियों के खिलाफ व अपने मांगों के समर्थन में धरना या विरोध करने का मतलब अपने खिलाफ मुकदमा दर्ज कराना हो गया है।

अपराध बेलगाम बढ़ रहे है, भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। भय, नफरत व झूठ का व्यापार खुलेआम जारी है। आखिर इन सब समस्याओं के खिलाफ कौन खड़ा होगा ? इन समस्याओं के खिलाफ बोलने व खड़े होने की जिम्मेदारी किसी दूसरे की नही बल्कि हम, आप की है। झूठे प्रचार तंत्र के जंगलराज से मुक्त होकर, अमानवीय हो चुके मन को मानवीय बनाकर क्या हमें विचार करने की जरूरत नहीं है ? महंगाई, शिक्षा, रोजगार, चिकित्सा, न्याय के हित क्या सबके हित नहीं हैं ।

वीरेंद्र त्रिपाठी-लखनऊ

   (नोट-यह लेखक के अपने विचार है। संपादक का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।)

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