लखनऊ। यूपी में पुन: सत्ता संधान की कोशिश में जुटी भाजपा के लिए गुजरे दो—तीन दिन काफी मुश्किल भरे रहे हैं। पार्टी छोड़कर गए नेता मिशन—2022 के लिए भाजपा का गणित बिगाड़ते नजर आ रहे हैं। यही कारण है कि डैमेज कंट्रोल को लेकर पार्टी अब माथापच्ची में जुटी हुई है।
बताया जा रहा है कि अपने विधायकों के बगावती सुरों को नजरअंदाज करना भाजपा के लिए मुसीबत बन गया है। वहीं चुनाव के बीच मंत्रियों व विधायकों के पार्टी छोड़कर जाने से सरकार और संगठन में बैठे जिम्मेदार लोगों के संगठन कौशल पर भी सवाल उठने लगे हैं।
गौरतलब है कि 18 दिसंबर, 2019 को गाजियाबाद के लोनी से भाजपा विधायक नंद किशोर गुर्जर के उत्पीड़न का मुद्दा विधानसभा में उठा था। इसको सदन में सरकार की ओर से नजरअंदाज करने का प्रयास होता देख भाजपा के 200 से अधिक विधायकों ने अपनी ही सरकार व संगठन के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।
बताया गया कि उस दिन सरकार व संगठन जैसे-तैसे हालात को नियंत्रित कर ले गया, मगर उसके बाद इसकी गहराई में जाने की जगह सब कुछ भगवान भरोसे छोड़ दिया गया।
बगावती सुरों को नजरअंदाज करते रहना पड़ा भारी
बताया जा रहा है कि भाजपा छोड़कर जाने वाले मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, धर्म सिंह सैनी समेत अन्य विधायक भी अब खुलेआम बोल रहे हैं कि उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह, महामंत्री संगठन सुनील बंसल के सामने कई बार अपनी पीड़ा बताई मगर किसी ने इसका समाधान करने की नहीं सोची।
ये भी बताया जा रहा है कि दिल्ली में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, प्रदेश प्रभारी राधामोहन सिंह समेत अन्य शीर्ष नेताओं तक भी शिकायतें पहुंची। मगर वहां से भी केवल आश्वासन मिला। बताया जा रहा है कि मंत्रियों व विधायकों की नाराजगी दूर न होने से उनके अंदर का असंतोष धीरे-धीरे बढ़ता हुआ,
अब बगावत के रूप में सामने आ रहा है। पार्टी के अंदर भी दबी जुबान में कहा जा रहा है कि बगावती सुरों की उपेक्षा अब पार्टी के लिए भारी पड़ती दिख रही है।
इसे भी पढ़ें..