लखनऊ। सूबे में पिछड़े वोटबैंक में अपनी खासी पैठ रखने वाले मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य, दारा सिंह चौहान, धर्म सिंह सैनी समेत अन्य दिग्गजों का भाजपा छोड़कर जाना भाजपा के लिए मुसीबत का सबब बना हुआ है। वहीं 2017 में जब इन नेताओं ने भाजपा का दामन थामा था,
तो उनके वोटबैंक को देखते हुए भाजपा ने दिल खोलकर इनपर अपना प्यार लुटाया था। अब उनकी बगावत के बाद पार्टी को वह वोटबैंक छिटकता दिखाई दे रहा है। दरअसल पिछड़े वर्ग के इन नेताओं के पार्टी छोड़ने से भाजपा के मौजूदा विधायकों की परेशानी भी बढ़ गई है।
इनका मानना है कि जो नेता पार्टी छोड़कर गए हैं उसका असर प्रदेश के उन विधानसभा क्षेत्रों में भी पड़ेगा जहां उनकी जाति-समाज के लोग निर्णायक भूमिका में हैं। जानकारी के मुताबिक पडरौना (कुशीनगर) से विधायक व प्रदेश सरकार में मंत्री रहे स्वामी प्रसाद मौर्य, मऊ के मधुबन से विधायक व मंत्री दारा सिंह चौहान,
सहारनपुर के नकुड़ से विधायक व राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभारी धर्म सिंह सैनी, बांदा के तिंदवारी से भाजपा विधायक बृजेश प्रजापति, कानपुर देहात के बिल्हौर से भगवती प्रसाद सागर, शाहजहांपुर की तिलहर से रोशन लाल वर्मा, औरैया की विधूना से विनय शाक्य, लखीमपुर खीरी से विधायक बाला प्रसाद अवस्थी व शिकोहाबाद के विधायक मुकेश वर्मा,
भाजपा छोड़ चुके हैं। वहीं मेरठ की मीरापुर सीट से भाजपा विधायक अवतार सिंह भड़ाना भी भाजपा छोड़कर रालोद में शामिल हो चुके हैं। वहीं भाजपा छोड़कर सपा में शामिल होने वाले विधायकों में सीतापुर सदर से राकेश राठौर, खलिलाबाद से जय चौबे, नानपारा (बहराइच) से माधुरी वर्मा और बुलंदशहर से केके शर्मा के नाम भी शामिल हैं।
पिछड़े वोटबैंक को समेटने की यूं हो रही कोशिश
बताया जा रहा है कि ये सभी नेता न केवल अपनी जाति के चेहरे माने जाते हैं बल्कि जाति में उनकी बात सुनी भी जाती है। यही कारण है कि 2017 विधानसभा चुनाव में भाजपा में शामिल हुए स्वामी प्रसाद मौर्य को पार्टी ने उनके साथ—साथ उनके बेटे उत्कृष्ट मौर्य को भी टिकट दिया। जानकारी के मुताबिक स्वामी प्रसाद के छह अन्य समर्थकों,
को भी भाजपा ने टिकट दिया था। बताया गया कि दारा सिंह चौहान की भी अपने समाज में अच्छी पकड़ है। बताते चलें कि चौहान को भाजपा ने ओबीसी मोर्चा का राष्ट्रीय अध्यक्ष जैसा महत्वपूर्ण पद भी दिया था। वहीं धर्म सिंह सैनी सहारनपुर से कांग्रेस के इमरान मसूद को चुनाव हराकर आए थे।
बताया जा रहा है कि इन विधायकों के भाजपा छोड़कर जाने की पार्टी के बड़े नेताओं की चिंता का अंदाजा इसी से लगता है कि बीते दो दिन से भाजपा पिछड़े वोट बैंक को संदेश देने का प्रयास कर रही है कि पार्टी में ही पिछड़े वर्ग को आगे बढ़ने का मौका मिल सकता है।
समझाया जा रहा ‘पी’ का अर्थ
गौरतलब है कि बृहस्पतिवार को भाजपा प्रदेश अध्यक्ष स्वतंत्रदेव सिंह ने कहा,कि ओबीसी समाज को सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक प्रतिनिधित्व जितना भाजपा में मिला है, उतना किसी सरकार में नहीं मिला। बताया गया कि उनके लिए ‘पी’ का अर्थ पिछड़ों का उत्थान है, जबकि कुछ लोगों के लिए ‘पी’ का अर्थ सिर्फ पिता,
पुत्र और परिवार का उत्थान है। इन सब उधेड़बुन के बीच भाजपा के नेता भी दबी जुबान में मान रहे हैं कि अगर समय रहते डैमेज कंट्रोल नहीं हुआ तो पार्टी छोड़कर जाने वाले पिछड़े वर्ग के विधायक न केवल खुद की सीट पर भाजपा के वोट बैंक को प्रभावित करेंगे बल्कि अन्य सीटों पर भाजपा की मुश्किलें बढ़ने वाली है।
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