अ.भा.सा.प. का 16 वां राष्ट्रीय अधिवेशन संपन्न, वक्ताओं ने की भारतीय परंपरा व संस्कृति के अनुरुप साहित्य लेखन की वकालत

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अखिल भारतीय साहित्य परिषद का 16 वां राष्ट्रीय अधिवेशन स्वदेशी के भाव से ग्रामीण परिवेश में संपन्न हुआ। दो दिवसीय अधिवेशन राम मनोहर लोहिया महाविद्यालय अलीपुर हरदोई में संपन्न हुआ।

हरदोई। अखिल भारतीय साहित्य परिषद का 16 वां राष्ट्रीय अधिवेशन स्वदेशी के भाव से ग्रामीण परिवेश में संपन्न हुआ। दो दिवसीय अधिवेशन राम मनोहर लोहिया महाविद्यालय अलीपुर हरदोई में संपन्न हुआ। अतिथियों ने इस अवसर पर अखिल भारतीय साहित्य परिषद की वेबसाइट का लोकार्पण किया।

भारतीय परंपरा व संस्कृति के अनुरूप हो साहित्य लेखन

अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री श्रीधर पराड़कर ने साहित्यकारों को संबोधित करते हुए कहा कि भारत की परंपरा व संस्कृति के अनुरुप साहित्य का लेखन होना चाहिए। अखिल भारतीय साहित्य परिषद साहित्य जगत का सम्पूर्ण वातावरण बदलने के लिए काम करती है। उन्होंने कहा कि हमें केवल साहित्यक कार्यक्रम नहीं करना है।

साहित्य में जो विकृति जानबूझकर लाई गई है उसके स्थान पर हमें साहित्य में सुकृति लानी है। वहीं इससे पहले अखिल भारतीय साहित्य परिषद के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए उपन्यासकार एस एल भैरप्पा ने कहा कि भारत की समृद्ध ज्ञान परम्परा रही है।

हमारे पास पौराणिक साहित्य का विपुल भंडार है। रामायण आदि महाकव्य है। एस एल भैरप्पा ने कहा कि योजनाबद्ध ढंग से सरकारी संस्थाओं पर कम्युनिस्टों ने कब्जा किया।

भाषा के प्रति भाव का जागरण करें साहित्यकार

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय बौद्धिक प्रमुख स्वान्त रंजन ने कहा कि 1947 में भारत को राजनैतिक दृष्टि से तो स्वतंत्रता मिल गई। लेकिन स्वधर्म स्वसंस्कृति स्वभाषा स्वदेशी और स्वराज्य जो अपेक्षित था वह पीछे छूट गया। उपनिवेशवादी व्यवस्थाएं भारत में वैसी ही चलती रहीं।

स्वान्त रंजन ने कहा जैसे राष्ट्र और नेशन अलग है उसी तरह धर्म और रिलीजन अलग है। आज आवश्यकता है इन सब बातों को हम साहित्य के विविध माध्यमों से समाज के सामने रखें। उन्होंने कहा कि इतिहास को विकृत करने का काम किया गया। स्वान्त रंजन ने साहित्यकारों का आह्वान किया कि वह भाषा के प्रति भाव का जागरण करें।

इसके अलावा सभी भारतीय भाषाओं का उन्नयन कैसे हो इस पर काम करने की आवश्यकता है। कार्यक्रम को अन्य वक्ताओं ने भी सम्बोधित किया। बताया गया कि लवंत भाई जानी, असम के विद्वान देवेन्द्र चन्द्र दास, इन्दुशेखर, संजीव शर्मा, अभिराम भट्ट, डा राम सनेही लाल, डा. जनार्दन यादव, डा. आशा तिवारी आदि यहां प्रमुख रूप से मौजूद रहे।

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