धर्म डेस्क। सनानत संस्कृति में रुद्राक्ष के मनके को अत्यन्त पवित्र माना गया है। सनातन धर्म में रुद्राक्ष का आधात्मिक और ज्योतिषीय महत्व बताया गया है। धार्मिक ग्रंथों में वर्णित है कि रुद्राक्ष की उत्पत्ति भगवान शिव के आंसू से हुई थी। इसी कारण् रुद्राक्ष को भोलेनाथ का स्वरुप माना गया है।
रुद्राक्ष पर पड़ी हुई धारियां बताती हैं कि वे कितने मुखी रुद्राक्ष है। रूद्राक्ष एक मुखी से लेकर इक्कीस मुखी तक के होते हैं।
ऐसे हुई थी रूद्राक्ष की उत्पति
शिव पुराण में रुद्राक्ष की उत्पत्ति को भगवान शिव के आंसू के रूप बताया गया है। बताया जाता है कि प्राणियों के कल्याण के लिए जब कई सालों तक ध्यान करने के बाद भगवान शिव ने आंखें खोलीं, तब आंसुओं की बूंदे गिरीं और धरती मां ने रुद्राक्ष के पेड़ों को जन्म दिया।
शास्त्रों में वर्णित है कि रुद्राक्ष के मानसिक और शारीरिक लाभ भी मिलते हैं। वहीं कहा जाता है कि किसी ज्योतिष आदि से सलाह के बाद ही रूद्राक्ष को धारण करना चाहिए। तभी इसका असल लाभ प्राप्त होता है।
रुद्राक्ष धारण करने से होता है ये लाभ
ऐसी मान्यता है कि रुद्राक्ष शरीर में शक्ति उत्पन्न करता है। जो रोगों से लड़ने सहायक होती है। वहीं आयुर्वेद के अनुसार रुद्राक्ष शरीर को मजबूत बनाता है। बताया जाता है कि ये रक्त की अशुद्धियों को दूर कर, मानव शरीर के भीतर के साथ-साथ बाहर के बैक्टीरिया को भी दूर भगाता है।
रुद्राक्ष सिर दर्द, खांसी, लकवा, ब्लड प्रेशर और हृदय रोग से संबंधी समस्याओं को भी दूर करने में लाभदायक बताया गया है। मान्यता है कि रुद्राक्ष धारण करने से चेहरे पर चमक आती है। व्यक्तित्व शांत और आकर्षक हो जाता है। जप के लिए भी रुद्राक्ष की माला का प्रयोग किया जाता है।
वहीं धार्मिक मान्यता है कि रुद्राक्ष को धारण करने से वर्तमान जीवन में कठिनाइयों का कारण बनने वाले पूर्व जन्म के पापों का नाश होता है। बताया जाता है कि रुद्राक्ष धारण करने से भगवान रुद्र का रूप प्राप्त किया जा सकता है। इतना ही नहीं कहते हैं,
कि रुद्राक्ष सभी पापों से छुटकारा पाने में मदद करता है और जीवन में लक्ष्य प्राप्त करने में भी सहायक होता है। ऐसी भी मान्यता है कि रुद्राक्ष धारण करने से बुराई और नकारात्मक प्रभाव दूर हो जाते हैं।
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