किसान महापंचायत से क्यों निराश हुए यूपी के किसान !

505
Why were the farmers of UP disappointed with the Kisan Mahapanchayat?
हर सर्वे में किसानों ने आवारा जानवरों को अपनी सबसे बड़ी समस्या बताया है।

नवेद शिकोह,लखनऊ। अक्सर शहरी जनता या हुकुमत किसानों की परेशानियों से वाकिफ नहीं होती, ये इनकी गैर जिम्मेदाराना पुरानी फितरत है। लेकिन सैकड़ों किसान नेताओं की महापंचायत यूपी के किसानों के गढ़ मुजफ्फरनगर में हो, लाखों लोग जुटें, अल्लाह हू अकबर-हर हर महादेव..और तमाम बातें हो और यूपी के किसानों की सबसे बड़ी समस्या की बात प्रमुखता से न हो तो ताज्जुब तो होगा ही।

आपको ये समस्या भले ही मामूली लगे लेकिन ये यूपी के किसानों की बेहद बड़ी समस्या है। छुट्टा जानवर किसानों को बर्बाद और उनकी फसलों को तबाह कर रहे हैं। इस बात पर यकीन न आए तो किसी भी परिचित या अंजान किसान से इस बात की तस्दीक कर लीजिए। यूपी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जनता का रूख् जानने के लिए गांव-किसानों का मन टटोलने के लिए सैकड़ों बड़े सर्वे हुए हैं, हर सर्वे में किसानों ने आवारा जानवरों को अपनी सबसे बड़ी समस्या बताया है। केवल इस बात को लेकर भाजपा समर्थक और योगी सरकार के प्रशंसक भी सरकार से नाखुश हैं।

सरकार के प्रयास नाकाफी

योगी सरकार ने अपने शुरुआती फैसलों में गायों की रक्षा-सुरक्षा और संरक्षण को लेकर कई बड़े कदम उठाए थे। गायों की तस्करी और खरीद-फरोख्त को लेकर योगी सरकार के सख्त फैसले आने के बाद किसान आवारा गायों और सांडों से परेशान होना शुरू हो गए। आवारा जानवरों की तादाद बढ़ती गई। गायों-सांड़ों के झुंड किसानों की फसलों को तहस-नहस कर रहे हैं। बीते साढ़े चार वर्ष में यूपी के किसानों के लिए ये परेशानी सबसे बड़ी मुसीबत बनी हुई है।

हालांकि योगी सरकार ने गो वध पूरी तरह से रोकने के लिए गौ तस्करी और खरीद-फरोख्त को लेकर सख्त कदम उठाने के साथ गोवंश के संरक्षण के लिए गोशालाओं के निर्माण का सिलसिला भी शुरू किया था। लेकिन जितनी तेजी से आवारा गाय-सांडों की तादाद बढ़ी है उस हिसाब से इनके संरक्षण के लिए गौशालाएं पर्याप्त नहीं हैं। किसानों से बातचीत के अनुसार दस प्रतिशत आवारा जानवरों को गोशालाओं में संरक्षण नहीं मिल पा रहा है।

90 फीसद किसान नहीं समर्थ

किसानों का कहना है कि बड़े और धनागढ़ किसान जो दस फीसद भी नहीं हैं, ये कांटेदार तारों से अपने खेतों को जानवरों से बचा लेते हैं। मामूली क्षेत्रफल के खेतों को लोहे के खंभों और तारों से कवर करने में लाखों रुपए खर्च होते हैं। इतना खर्च करना मामूली किसान के बस में नहीं। नब्बे फीसद से ज्यादा यूपी के किसान तारों से अपने खेत सुरक्षित नहीं कर सकते। ऐसे में गायों और सांड़ों के झुंड पूरी की पूरी फसले और पूरे-पूरे के खेत तहस-नहस कर देते हैं। भले ही पूरी फसल खा न पायें पर ये पूरा खेत रौंद देते हैं। किसान दिनों रात रखवाली करने की कोशिश करते हैं, लेकिन हर रोज दिन भर रखवाली करने के साथ पूरी रात जागकर पूरे खेतों में रखवाली करना आसान नहीं है।

किसान मोर्चा अनजान

किसानों की इस समस्या को न सरकार देख पा रही है और न ही किसानों के नेतृत्व का दावा करने वाले किसान नेता व किसान संगठन। कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहा संयुक्त मोर्चा इन दिनों यूपी में अपने आन्दोलन को वृहद रूप देने की बात कर रहा है। बीते रविवार को यूपी के मुजफ्फरनगर में महापंचायत में तमाम बातें हुईं, कृषि कानून के खिलाफ आवाज बुलंद हुई, तमाम मांगे की गईं, लेकिन ये आयोजन किसानों की जमीनी समस्याओं को उठाने के बजाय राजनीति ज्यादा दिखाई दिया। आवारा जानवरों से तबाह और बर्बाद हो रहे यूपी के असंख्य गरीब किसानों की इस मुख्य समस्या को प्रमुखता से नहीं उठाया गया।

संयुक्त मोर्चा के नेताओं की शिकायत रही है कि कृषि कानून बनाने से पहले केंद्र सरकार ने किसान संगठनों से बात नहीं की थी। अब सवाल ये उठता है कि महापंचायत के मुद्दों और एजेंडा तय करने से पहले क्या संयुक्त मोर्चा के संगठनों/नेताओं ने क्या यूपी के आम किसानों की जमीनी परेशानियों को जानने की कोशिश की थी! यदि कोशिश की होती तो आवारा जानवरों की सबसे बड़ी समस्याओं को मुजफ्फरनगर की महापंचायत में प्रमुखता से उठाया जाता।

सियासी आंदोलन बना किसान आंदोलन

उत्तर प्रदेश की करीब आधी आबादी का सीधा रिश्ता खेती से है। कोई किसान है तो कोई किसान के परिवार का हिस्सा है। खेत, खेती और किसान इस सूबे की आत्मा है। खेतों की मेड़ की तरह कृषक यहां की ही हुकुमतें बनाते भी हैं और तोड़ते भी हैं।यूपी में पश्चिमी उत्तर प्रदेश खेती-किसानी का गढ़ है और मुजफ्फरनगर को पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजधानी कहा जाता है। मुजफ्फरनगर में कृषि कानूनों के खिलाफ और यूपी के किसानों की समस्याओं को लेकर किसान संयुक्त मोर्चा की सबसे बड़ी किसान महापंचायत में चिराग तले अंधेरा छाया रहा। भाजपा और भाजपा समर्थकों के इल्ज़ामों को बल मिलने लगा।

बकौल भाजपाइयों के- ये किसान आंदोलन नहीं सियासी आंदोलन है। ये आंदोलनकारी किसानों के नहीं विपक्षी ताकतों के नुमाइंदे हैं। आरोप लग रहे हैं कि ये आंदोलन किसानों की समस्याओं के हल के लिए कम पर सियासी मकसद पूरा करने के लिए ज्यादा है। यूपी के विधानसभा चुनाव में भाजपा को हराने की धुन में यूपी के किसानों की वास्तविक और सबसे बड़ी समस्या को ही नहीं जान सका संयुक्त मोर्चा, जानता होता तो मुजफ्फरनगर की महापंचायत में गरीब किसानों की सबसे बड़ी इस समस्या को प्रमुखता से उठाया जाता।

वरिष्ठ पत्रकार नवेद शिकोह
9918223245

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here