जन संस्कृति मंच, उ. प्र. का आठवां राज्य सम्मेलन बांदा में सम्पन्न

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8th State Conference of Jan Sanskriti Manch, U.P. concluded in Banda
सम्मेलन को सम्बोधित करते हुए जसम के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर
  • जसम राज्य सम्मेलन : दमन व विभाजन के विरुद्ध ‘एका और न्याय’ की संस्कृति के लिए संघर्ष का संकल्प
  • शिवमूर्ति अध्यक्ष, कौशल किशोर कार्यकारी अध्यक्ष तथा दुर्गा सिंह सचिव बने

बांदा। जन संस्कृति मंच (जसम) उत्तर प्रदेश का आठवां राज्य सम्मेलन बांदा में 2 और 3 अक्टूबर को संपन्न हुआ। इसका उद्घाटन करते हुए वरिष्ठ कथाकार शिवमूर्ति ने कहा कि रचनाशीलता के लिए कल्पनाशीलता बहुत जरूरी है लेकिन आज हालात यह है कि हकीकत कल्पना से आगे है। हम सोच नहीं सकते, वैसे हालात हैं। स्थितियां विकट है। ऐसे समय में हमें अपनी एकता को मजबूत करना है। तभी सांस्कृतिक प्रतिरोध खड़ा किया जा सकता है।

सम्मेलन में शिवमूर्ति को फिर से प्रदेश अध्यक्ष की जिम्मेदारी दी गई, वहीं कवि और ‘रेवान्त’ पत्रिका के प्रधान संपादक कौशल किशोर को कार्यकारी अध्यक्ष की। ‘अभिनव कदम’ पत्रिका के संपादक और कवि जयप्रकाश धूमकेतु वरिष्ठ उपाध्यक्ष बनाए गए। अन्य दो उपाध्यक्षों में ‘समकालीन जनमत’ की प्रबंध संपादक मीना राय तथा वरिष्ठ कवि और चिंतक भगवान स्वरूप कटियार शामिल हैं। ‘कथा’ पत्रिका के संपादक दुर्गा सिंह सचिव बनाए गए। डॉ रामनरेश राम, बृजेश यादव और डीपी सोनी सहसचिव चुने गए। सम्मेलन में जसम उत्तर प्रदेश की 25 सदस्यीय कार्यकारिणी चुनी गई।

सम्मेलन में आन लाइन और आफ लाइन दोनों माध्यमों से प्रतिनिधियों ने हिस्सा लिया। तीन सदस्यीय अध्यक्ष मंडल जिसमें शिवमूर्ति, मीना राय और कौशल किशोर शामिल थे, उनकी देख-रेख में सम्मेलन की कार्यवाही सम्पन्न हुई। निवर्तमान सचिव रामायन राम ने रिपोर्ट पेश की जिस पर हुई बहस में मनोज सिंह, रामजी राय, अशोक चन्द्र, प्रणय कृष्ण, गोपाल प्रधान, भगवान स्वरूप कटियार, राम नरेश राम, मयंक खरे, फ़रज़ाना महदी, अवधेश कुमार सिंह, रुचि दीक्षित, गीतेश, दीपशिखा, डी पी सोनी, ब्रजेश यादव आदि ने भाग लिया।

प्रतिनिधियों ने पुस्तकालय संस्कृति की दिशा में पिछले दिनों किये काम का जायजा लिया और आगे बढ़ाने की संभावना पर विचार किया। प्रतिनिधियों का कहना था कि सृजन संस्कृति का आधार है। जन आंदोलन को जो अभिव्यक्त करे, ऐसी सृजनशीलता ही जन संस्कृति का आधार है। हमारा जोर नये और ऐसे कला रूपों के विकास पर हो जिनका जन मानस से जुड़ाव है।

प्रतिनिधि रचनाकारों का कहना था कि उत्तर प्रदेश हिंदुत्व की राजनीति की प्रयोगशाला बना हुआ है । वहीं, उसके बरक्स यहाँ जनप्रतिरोध और विभिन्न जनांदोलनों के जरिये समाज के विभिन्न तबके उनका सामना भी कर रहे हैं। उत्तर प्रदेश की फ़िज़ाओं में संघर्ष के नारे और गीत लगातार गूँज रहे हैं। प्रदेश के लेखकों, कलाकारों और संस्कृतिकर्मियों ने इन नारों और गीतों में अपनी आवाज मिलाई है। यही हमारे दौर के संस्कृतिकर्म का जरूरी व मौलिक कार्यभार है।

बहस में यह बात उभर कर आई कि कोविड महामारी के दौरान भी सत्ता का दमनचक्र चलता रहा है। हमने महामारी में बहुत सारे हमख्याल और हमसफर विचारकों, लेखकों और सहयोद्धाओं को खोया है। फिर भी, अपने बिछड़े साथियों की याद को दिल में संजोये हुए हमें उनके अधूरे लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रयास जारी रखना है। हमें दमन व विभाजन की इस सांस्कृतिक आपदा का मुकाबला ‘एका और न्याय’ की संस्कृति के जरिये करना है।इस मौके पर हुए कवि सम्मेलन में ब्रजेश यादव, डी पी सोनी, फरजाना महदी, कौशल किशोर आदि ने अपनी कविताएं सुनाईं।

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