लिखावट के मंच पर पुस्तक विमोचन, अजय गुप्ता, पीयूष सिंह और रोली शंकर का कविता पाठ

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लिखावट द्वारा आयोजित किया गया आनलाइन पुस्तक विमोचन व कविता पाठ का कार्यक्रम

तुम्हारी नफरतें डरती हैं हमारे प्यार से

लखनऊ। लिखावट के आन लाइन मंच पर ‘कविता लखनऊ’ की तीसरी कड़ी के अंतर्गत 2 जुलाई को ‘तीन कवि, तीन कृतियां’ का आयोजन हुआ। इस मौके पर अजय गुप्ता की काव्य कृति ‘पल की यात्रा’, पीयूष सिंह का दूसरा कविता संग्रह ‘रंग महसूस होते हैं’ और रोली शंकर का नया कविता संग्रह ‘अनुषा’ जारी किया गया।

कृतियों को जारी करते हुए कौशल किशोर ने कहा कि अजय गुप्ता की ‘पल की यात्रा’ मानव विकास की काव्यगाथा है। इसमें ‘पल’ सूत्रधार है जो इस बात को सामने लाता है कि धरती हो या प्रकृति वे जड़ नहीं हैं। इनका दोहन जीवन को नष्ट करना है। पीयूष सिंह की कविताएं जीवन के रंगों से भरी हैं। ये रंग प्रेम, करुणा, दया, क्षोभ के हैं जो भले न दिखे, पर वे महसूस किए जा सकते हैं। रोली शंकर के संग्रह ‘अनुषा’ पर कौशल किशोर का कहना था कि कविताएं स्त्री मन की कोमलता, मार्मिकता और संवेदनात्मकता को लाती हैं।

तीनों कवियों ने अपनी कविताएं सुनाईं। शुरुआत अजय गुप्ता के काव्य पाठ से हुई। उन्होंने ‘पल की यात्रा’ से एक अंश सुनाया जिसमें वे कहते हैं ‘जब निशा सोई और उषा जागी/अंगड़ाई ले पल ने निद्रा त्यागी,/था विस्मित वो नगर रूप देख कर/उसका बदला स्वरूप देख कर’। उन्होंने ‘कैनवास’, ‘मन मस्तिष्क’, ‘अमृत’ और ‘स्मार्ट सिटी’ शीर्षक से कविताएं सुनाईं। कैसा हो स्मार्ट सिटी, उसका खाका कुछ यूं खींचते हैं ‘हे वास्तुविद, हे कलाश्रेष्ठ! जब तुम आधुनिक शहर बनाओगे/मुझे विश्वास है, ये नये शहर/आलीशान और अदभुत होंगे/सड़के चौड़ी होंगी, जगमगाती राते होंगी/गगनचुंबी इमारतें होंगी, वाहनों की कतारें होंगी/तुम्हारा शहर बड़ा गतिमान होगा/दृश्य दृश्यातंर नयनाभिराम होगा/..हां, शहर कुछ ऐसा बनाना/..हे वास्तुविद, हे कलाश्रेष्ठ ! /तुम नया शहर संवेदनशील बनाना।’

पीयूष सिंह ने ‘रात की धूप में रंग महसूस होते हैं’, ‘नदी का व्यक्तित्व’, ‘आंगन का वृक्ष’, ‘नमक का किसान’ तथा ‘मैं धूमिल होना चाहता हूं’ कविताएं सुनाईं। वे जीवन की विसंगतियों को सामने लाते हैं और कहते हैं ‘नमक/खाने का स्वाद तो बदल सकता है/लेकिन क़िस्मत नहीं ‘। इसी भाव का विस्तार ‘मैं धूमिल होना चाहता हूँ’ में है, कुछ यूं
‘मैं धूमिल नहीं हूँ पर मैं धूमिल होना चाहता हूँ/न मैं लोहार हूँ और न ही मैं वो घोड़ा हूँ/जिसके मुँह में लगाम है/पर मैं पूछना चाहता हूँ उस लोहार से/उसके हाथों के छालों से कि/…मैं उस घोड़े से लोहे का स्वाद चखना चाहता हूँ/मैं धूमिल नहीं हूँ पर मैं धूमिल होना चाहता हूँ’।

इस अवसर पर रोली शंकर ने करीब आधा दर्जन कविताएं सुनाईं। कोरोना काल में लिखी कविता ‘संवेदनाएं’ में वे कहती हैं ‘मर जाते हैं हम/जब मर जाती हैं संवेदनाएं/… हम मर गए उस दिन /जिस दिन कामगारों की भूख को/हमने काम के तराजू में तोला था/ हम भूल गए कि वही हमारे हाथ पैर हैं/… उनकी भूख से ज्यादा बड़ी थी हमारी भूख’। वे कविता के माध्यम से धर्म के ठेकेदारों पर चोट करती हैं और कहती हैं ‘सुनो धर्म के ठेकेदारों ! तुम काबिज़ होना चाहते हो भीड़ पर,/रखना चाहते हो उन्हें/जाहिल ,अनपढ़ गवाँर…. परंतु तुम डरते हो हम जैसे लोगों से /जिन्होंने पूजा है उस इंसान को/ जिसने पहली बार मानव सभ्यता के लिए/आग जलाई थी/ खेत बनाए थे/फूल उगाए थे /जिसने सींचा था धरती की कोख में प्यार/तुम्हारी नफरतें डरती हैं तो सिर्फ हमारे प्यार से’।

कवि और गद्यकार मिथिलेश श्रीवास्तव ने कवियों का स्वागत किया। कविताओं पर उनकी टिप्पणी थी कि इनमें जीवन के विविध रंगों की अभिव्यक्ति है। कविता के क्षेत्र में विभिन्न पेशे से जुड़े लोग आ रहे हैं। अजय गुप्ता वास्तुविद हैं। पीयूष सिंह साफ्टवेयर इंजीनियर हैं। रोली शंकर सामाजिक कार्य करती हैं। यह कविता की दुनिया का विस्तार है।

इस मौके पर मुंबई से वरिष्ठ कवि विनोद कुमार श्रीवास्तव, कवि व आलोचक प्रशांत जैन, कल्पना पंत, तस्वीर नकवी, अशोक श्रीवास्तव, अलका पांडे, अवंतिका सिंह, विमल किशोर, शशि गुप्ता , सुमन कुमार, संगीता गुप्ता आदि की उपस्थिति थी।

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