यूपी: अब संगठन की ओवरहालिंग करेंगे अखिलेश! बढ़े वोटबैंक को सहेजने की यूं है तैयारी

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हार का एक हार पुराना नहीं होता तो हार का दूसरा ताज़ा हार आ जाता हैं हालांकि हार की अपनी अलग एहमियत है।

लखनऊ। यूपी मिशन—2022 के नतीजों में हार के बाद सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव अब मिशन—2024 की तैयारी में जुट गए हैं। बताया जा रहा है कि इसके पहले सपा अब नए सिरे से संगठन की ओवरहालिंग में जुटेगी। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक चुनाव में सक्रिय भूमिका निभाने वाले नेताओं को चिह्नित कर उन्हें नई जिम्मेदारी सौंपी जा सकती है।

जानकारी के मुताबिक पार्टी की रणनीति है कि संगठन को सक्रिय कर स्थानीय निकाय में धमाकेदार उपस्थिति दर्ज कराई जाए। इसे बढ़े वोटबैंक को बरकरार बनाने की कवायद के रूप में देखा जा सकता है। दरअसल इसी वर्ष स्थानीय निकाय भी होने है। मिली जानकारी के मुताबिक इस बार के चुनाव में सपा का वोटबैंक 21.82 फीसदी से बढ़कर 32 फीसदी पर पहुंच गया है।

विधायकों की संख्या भी 47 से बढ़कर 111 हो गई है। वहीं इस चुनाव में अखिलेश पार्टी के अकेले नेतृत्वकर्ता की भूमिका में रहे। बताया जा रहा है कि वोटबैंक में हुई बढ़ोतरी अखिलेश के चेहरे की बदौलत हुई है। वहीं पार्टी की कोशिश है कि इसे बरकरार रखा जाए।

बेहतर प्रदर्शन करने वालों को मिलेगी अहम जिम्मेदारी

पार्टी रणनीतिकारों के अनुसार 32 फीसदी वोटबैंक बरकरार रहा तो निकाय चुनाव में काफी लाभ होगा। बताया जा रहा है कि यह तभी संभव है, जब संगठन निरंतर सक्रिय रहे। इसके लिए विधानसभा चुनाव में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले नेताओं को चिह्नित कर संगठन में अहम जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। इसमें जातीय समीकरण का भी ध्यान रखा जाएगा।

बताया जा रहा है कि होली के बाद नेताओं की सक्रियता का अंदाजा लगाने के लिए उनके बूथ पर मिले वोट और उनके प्रभार वाले जिले में मिले वोट का आकलन किया जाएगा। जिन नेताओं को अलग-अलग जिम्मेदारी दी गई थी, उनके कामकाज की अखिलेश खुद समीक्षा करेंगे। मिल रही जानकारियां के मुताबिक 21 मार्च की बैठक के बाद विधानसभा क्षेत्रवार समीक्षा बैठक शुरू होगी।

गलतियों से सबक लेगी पार्टी

वहीं पार्टी के रणनीतिकारों का मानना है कि विधानसभा चुनाव में संगठन देर से सक्रिय हुआ था। अक्तूबर में प्रदेश कार्यकारिणी घोषित की गई। बताया जा रहा है कि इसी माह अल्पसंख्यक मोर्चा, अनुसूचित जाति मोर्चा के अध्यक्ष घोषित किए गए। कार्यकारिणी जारी होने में नवंबर बीत गया। जिसके बाद अंबेडकर वाहिनी घोषित की गई।

देर से घोषणा होने से जनवरी व फरवरी तक संगठन में निरंतर मनोनयन होता रहा। बताया गया कि ऐसे में उनके चुनावी दायित्व निर्धारण में चूक हुई। वे अपनी विधानसभा क्षेत्र में जातीय गोलबंदी नहीं कर पाए। बताया गया कि भविष्य में ऐसी चूक न हो, इसको लेकर भी अभी से मंथन शुरू हो गया है।

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