पटना। BiharElections के रिजल्ट इस बार कई मायनों में खास रहा। एक तो अतिआत्मविश्वास में परिणाम से पहले मुख्यमंत्री और उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की घोषणा करने वाले अब कही चेहरा नहीं दिखाने लायक बचे है। वहीं एक दूसरे महाश्य प्रशांत किशोर ने चुनाव से पहले घोषणा की थी यदि जदयू 25 से ज्यादा सीट लाएगी तो वह राजनीति छोड़ देंगें। परिणाम के बाद अभी उनका कोई बयान नहीं आया। दूसरी तरफ जमीन पर उतरकर कार्यकर्ताओं के साथ मेहनत करने वाला एनडीए खेमे ने दो सौ के पार सीट जीतकर सारे अनुमानों को धराशाही कर दिया। सबसे ज्यादा तारिफ बिहार के उभरते हुए बड़े नेता चिराग पासवान ने 19 सीटें जीतकर खुद को साबित किया है कि बड़बोलेपन से नहीं चुनाव जीता जाता,बल्कि जनता के बीच में जाना पड़ता है।
तेजस्वी की उम्मीदों पर पानी फिरा
लोकसभा चुनाव के बाद से ही लालू के छोटे लाल तेजस्वी यादव खुदको बिहार का अगला सीएम मानकर चल रहे थे। इस चक्कर में उन्होंने कांग्रेस से जबरिया खुदको सीएम का चेहरा घोषित कराया। यहां तक कि उन्होंने कई मौकों पर मुख्यमंत्री पद की शपथ लेने की तारिख घोषणा करते नजर आए। परिणाम जब आए तो उनके होष फख्ता हो गए। उनकी हार के पीछे का सबसे बड़ा कारण बड़े भाई को पार्टी और परिवार से निकलवाना और लालू विरासत का अकेले वारिस बनाना। सबसे ज्यादा विरोध उनके बड़े भाई पूरे चुनाव प्रचार के दौरान करते नजर आए। इसके अलावा तेजस्वी ने अकेले दम पर चुनाव प्रचार की गाड़ी दौड़ाई अहम के फेर में कांग्रेस को भी उतनी तवज्जों नहीं दी।
जीरो पर आउट हुए VIP के मुकेश
चुनाव से पहले जबरी अपने को डिप्टी सीएम का चेहरा घोषित करने वाले मुकेश सहनी खुद तो हारे ही उनकी पार्टी का एक भी उम्मीदवार नहीं जीत पाया। मुकेश सहनी बिहार में अपने लाव लश्कर और बयानबाजी के लिए खासे पहचाने जाते है। चुनाव परिणाम यह साबित कर दिया सिर्फ कहने से नहीं आप किसी बिरादरी और जात के नेता बन जाते है, इसके लिए जमीन पर उतरकर काम करना होता है। हार के बाद मीडिया से बातचीत करते हुए कहा, उन्होंने महिलाओं को 1 लाख 90 हजार रुपये देने का वादा किया। लोग गरीब हैं, और इसीलिए उन्होंने उन्हें वोट दिया। बुरी तरह से हारने के बाद भी सहनी अभी तीखे तेवर में है और अपनी नाकामी की जिम्मेदारी लेने की बजाय जनता को इसके लिए जिम्मेदार ठहरा रहे है। सहनी का कहना है कि जनता नासमझ और गरीब है इसलिए उन्होंने NDA को वोट दिया।
फर्श के फर्श पर ही रह गए पीके
देश में चुनावी रणनीतिकार बनकर उभरे प्रशांत किशोर यानि पीके ने कई चुनावों में कई पार्टियों को जीत तो दिलाई जब अपनी बारी आई तो उनकी पार्टी एक भी सीट नहीं जीत पाई। बता दे पीके ने पहले पीएम मोदी फिर ममता बनर्जी, लालू-नीतीश और तमाम तमाम पार्टियों के साथ काम किया और उनके चुनावों में बड़ी जीत दिलाई। लेकिन वही पीके बिहार की राजनीति में अपनी पार्टी का खाता भी नहीं खुलवा पाए। बिहार चुनाव में पीके की पार्टी जनसुराज पार्टी को जीरो सीट मिली हैं, यहां तक कि उनके काफी उम्मीदवारों की जमानत ही जब्त हो गई। दरअसल पीके की नैया भी बड़बोले पन की वजह से डूबी। उन्होंने जदयू के विषय में घोषणा की थी, यदि नीतीश की पार्टी को 25 से ज्यादा सीट मिली तो वह राजनीति छोड़ देंगे। अब पूरी मीडिया उनके राजनीति छोड़ने के एलान का इंतजार कर रही।
बिहार के नए सितार चिराग
इन सब के विपरित जनता के बीच में रहने वाले चिराग पासवान बिहार की राजनीति में नया सितारा बनकर उभरे। उनकी पार्टी ने 26 में से 19 सीटें जीतकर इतिहास रचने में सफल हुई। उनकी प्रगति देखकर लग रहा है, आने वाले समय में वह बड़े चेहरे के रूप में उभरेंगे। दलित नेता के तौर पर उनका उभार, ‘बिहारी फर्स्ट’ रणनीति, एनडीए में मजबूत स्थिति और पार्टी का दो दशक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन उन्हें नए सियासी सेंटर में ला खड़ा करता है। चिराग की लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) को एनडीए ने जब 29 सीटें दी थीं, तो कुछ को यह नागवार गुजरा। पर चिराग ने साबित कर दिया कि भाजपा नेतृत्व का उन पर भरोसा सही था। दिवंगत पिता की विरासत की लड़ाई में एक समय अपने चाचा पशुपति पारस से मात खाने वाले चिराग ने संयम दिखाते हुए महज पांच साल में पूरा खेल पलट दिया। उन्होंने खुद को रामविलास पासवान का असली वारिस तो साबित किया ही, कुछ मायनों में उनसे आगे निकल गए।
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