धातुओं के गॉडफादर’ ने ‘सिनेमा के गॉडफादर’ के साथ की मुलाकात- अनिल अग्रवाल और फ्रांसिस फोर्ड कोपोला की खास बातचीत

The 'Godfather of Metals' meets the 'Godfather of Cinema' - A special conversation between Anil Agarwal and Francis Ford Coppola

‘मैं तकरीबन 20 साल का था जब द गॉडफादर रिलीज़ हुई थी।

बिजनेस डेस्क। Vedanta Groupके चेयरमैन अनिल अग्रवाल ने हाल ही में लंदन में प्रतिष्ठित फिल्म निर्माता फ्रांसिस फोर्ड कोपोला के साथ मुलाकात की, जो अपने आप में बड़ी उपलब्धि है। इस मुलाकात के दौरान दोनों ने भारत, स्टोरीटैलिंग, संस्कृत और सिनेमा के सदाबहार प्रभाव पर बातचीत की। हालांकि एक चीज़ ने सभी को चौंका दिया!! फ्रांसिस फोर्ड कोपोला संस्कृत सीखना चाहते हैं-जो अपनी-अपनी कला में महारत रखने वाले दो दिग्गजों के बीच दुर्लभ सांस्कृतिक संबंध है। सोशल मीडिया के एक पोस्ट में, जो अब तक वायरल हो चुका है, श्री अग्रवाल ने बताया कि किस तरह द गॉडफादर ने उनके शुरूआती वर्षों को आकार दिया। ‘‘मैं तकरीबन 20 साल का था जब द गॉडफादर रिलीज़ हुई थी।

‘ग्रेट मैन आर नॉट बोर्न ग्रेट

मैं बिहार से आया था और बॉम्बे के लिए एकदम नया था, ऐसे में मुझे अंग्रेज़ी नहीं आती थी। एक दोस्त ने फिल्म के बारे में बताया, फिर हम 9-10 लोगों ने एक छोटे से कमरे में वीएचएस पर फिल्म देखी।’ उन्होंने लिखा। ‘‘हमें हर शब्द समझ नहीं आ रहा था लेकिन हम हर दृश्य को महसूस कर रहे थे।’वह पल मेरे पूरे जीवन के लिए प्रेरणास्रोत बन गया। ‘‘मैं उन्हें ऐसा प्रस्ताव दूंगा, जिसे वे अस्वीकार नहीं कर सकेंगे’ एक वाक्य जो मुझे कभी समझ नहीं आया था, लेकिन आज मैं उसी के अनुसार अपना जीवन जी रहा हूं।’ उन्होनें कहा। कई दशकों के बाद भीड़ भरे बॉम्बे के कमरे से लेकर लंदन के रिवरसाईड स्टुडियोज़ तक – द गॉडफादर के साथ अग्रवाल की यात्रा ने एक चक्र पूरा कर लिया- जो फिल्म निर्माता के साथ प्रत्यक्ष बातचीत के साथ समाप्त हुआ है। वे एक वाक्य को याद करते हैं जो पिछले सालों के दौरान हमेशा उनके साथ रहा है ‘ग्रेट मैन आर नॉट बोर्न ग्रेट, दे ग्रो ग्रेट’ यानि ‘महान लोग महान बनकर पैदा नहीं होते, बल्कि महान व्यक्ति के रूप में विकसित होते हैं’।

यह वह वाक्य है जो उनकी यात्रा में स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है। ‘कोई भी एक दिन में बड़ा नहीं बनता, मेहनत, नीयत और वक़्त- ये तीन चीज़ें सहीं हों तो कुछ भी मुमकिन है।’ यह मुलाकात किसी भी क्षेत्र में पीढ़ियों को प्रेरित करने की सिनेमा की क्षमता का जश्न है। कोपोला के काम ने न सिर्फ भारत के छोटे से शहर से आए एक लड़के को प्रेरित किया बल्कि जीवन भर उसके साथ रहा, जो बिहार की गलियों से आज विश्वस्तरीय मंच पर पहुंच चुका है। जब गॉडफादर उनके गुरू बने- अनिल अग्रवाल ने ऐसे व्यक्ति से मुलाकात की, जिसकी कला ने अनजाने में ही उनकी यात्रा को आकार दिया है।

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