चोर का माफीनामा पत्र वायरल: पत्र में लिखा’राधा-कृष्ण की मूर्ति चुराया तो बेटा बीमार हो गया, इसलिए रख लीजिए

प्रयागराज। इन दिनों सोशल मीडिया पर एक चोर माफीनामा लिखा पत्र वायरल हो रहा है। चोर ने लिखा है कि महाराज जी प्रणाम, मुझसे बहुत बड़ी गलती हो गई थी। अज्ञानतावश राधा-कृष्ण की मूर्ति गऊ घाट मंदिर से चुरा ले गया था। जबसे मूर्ति चुराई है तब से बुरे-बुरे सपने आ रहे हैं और मेरे बेटे की तबीयत भी बहुत खराब हो गई है। थोड़े पैसों के लिए मैंने बहुत गंदा काम किया है। मैंने मूर्ति को बेचने के लिए उसके साथ काफी छेड़छाड़ की हैं। अपनी गलती की माफी मांगते हुए मैं मूर्ति को रखकर जा रहा हूं। आपसे विनती करता हूं कि मेरी गलती को माफ करते हुए भगवान को फिर से मंदिर में रख दिया जाए। पहचान छिपाने के लिए मूर्ति की पालिश कराकर उसका आकार बदल दिया है। महाराज जी हमारे बाल बच्चों को क्षमा करते हुए अपनी मूर्ति स्वीकार करें।

आठ दिन बाद लौटाया

बता दें कि आठ दिन पहले प्रयागराज के श्रृंगवेरपुर के गऊघाट आश्रम मंदिर से चोरी हुई श्रीराधा-कृष्ण की अष्टधातु की मूर्ति नाटकीय तरीके से बरामद हो गई। माफीनामे के साथ चोर मूर्ति को सड़क के किनारे रख गया। माफीनामे में उसने लिखा कि जबसे मैंने भगवान की मूर्ति चुराई है तब से उसका बेटा बीमार हो गया है। लगातार अनिष्ट हो रहे सूचना पर पहुंची स्थानीय पुलिस को मौके से चोर का माफीनामा मिला, जिसमें उसने अपनी अज्ञानता का उल्लेख करते हुए मूर्ति लौटाने की बात लिखी थी। लिखा-पढ़ी के बाद मूर्ति को आश्रम संचालक को सुपुर्द कर दिया गया।

पूजा पाठ के बाद स्थापित हुई मूर्ति

एक सप्ताह पूर्व शृंग्वेरपुर धाम के गऊघाट आश्रम स्थित श्रीराम-जानकी मंदिर का ताला तोड़कर अष्टधातु की 100 वर्ष पुरानी राधा-कृष्ण की मूर्ति चोरी हो गई थी। इस मामले में पुलिस ने दो संदिग्धों को हिरासत में भी लिया था, लेकिन मूर्ति का कोई सुराग नहीं मिला। मंगलवार की सुबह करीब 11.30 बजे हंडिया-कोखराज के सर्विस मार्ग पर आश्रम के सामने किसी ने मूर्ति देखी तो आश्रम के महंत को जानकारी दी।सूचना पाकर आश्रम के पुजारी और स्थानीय पुलिस मौके पर पहुंची। मूर्ति के पास पुलिस को एक पत्र भी मिला। इसमें चोर ने पश्चाताप करने के साथ क्षमा मांगते हुए मूर्ति लौटाने की बात लिखी थी। पुलिस ने मूर्ति को आश्रम के संचालक फलाहारी महंत स्वामी जयराम दास महाराज को सुपुर्द कर दिया। महंत ने पूजन-अर्चन और गंगा जल से स्नान कराने के बाद मूर्ति को मंदिर में स्थापित कर दिया।

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