बदायूं। सपा प्रमुख अखिलेश यादव के फैसले से उनकी पार्टी सहमत नहीं होती, राज्यसभा चुनाव हो, या सीटों का बंटवारा कई बार उन्हें उसकी बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। बिना सोचे समझे पहले बदायूं से धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा, इसके बाद उनका टिकट काटकर चाचा शिवपाल यादव को दिया, अब सूचना आ रही है कि शिवपाल यादव भी यहां के बदले हालात की वजह से चुनाव नहीं लड़ना चाहते है। वह भी सुरक्षित सीट से मैदान में उतरना चाहते है। बता दें कि एक बड़ा वर्ग दो बार बदायूं से सांसद रहे धर्मेंद्र यादव को फिर से उम्मीदवार बनाना चाहता है, जबकि सपा के ही कुछ नेता धर्मेंद्र यादव से खफा हैं।
संभल से टिकट चाहते है शिवपाल
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार शिवपाल सिंह यादव बदायूं से चुनाव लड़ने के लिए उत्साहित नहीं हैं। वह संभल से मैदान में उतरना चाहते हैं। इसलिए पहले उनका बदायूं आगमन टला, फिर लगातार दूसरी बार उनके बेटे आदित्य यादव का भी दौरा टल गया। आदित्य यादव को अपने पिता शिवपाल यादव की चुनावी कमान संभालने के लिए यहां आना था। उनका दो बार दौरा लगा पर एक बार भी नहीं आए।सपाइयों ने रविवार दोपहर बताया था कि आदित्य यादव सोमवार को आ रहे हैं। सपाइयों ने उनके स्वागत और चुनावी अभियान की शुरूआत को लेकर तैयारी बैठक कर ली, लेकिन शाम सात बजे उनका कार्यक्रम निरस्त होने की जानकारी सामने आई। इसकी पुष्टि सपा के स्थानीय पदाधिकारियों ने भी की।
भाजपा के टिकट पर नजर
बदायूं उम्मीदवार को लेकर भाजपा और बसपा नेताओं की नेतृत्व पर टिकी निगाहें लोकसभा चुनाव की बिसात बिछने लगी है। भाजपा ने प्रत्याशी को लेकर अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं। बदायूं मुस्लिम और यादव बहुल है। इसी समीकरण से किसी समय यह सपा की मजबूत सीट मनानी जाती थी, लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के चचेरे भाई सांसद रहे धर्मेंद्र यादव को शिकस्त देने के लिए भाजपा ने संघमित्रा मौर्य को मैदान में उतारा था। धर्मेंद्र यादव हार गए थे। चुनाव के बाद सियासी घटनाक्रम बदलता रहा। संघ मित्रा के पिता स्वामी प्रसाद मौर्य सपा में रहे। सपा में रहते केंद्र व प्रदेश सरकार पर जमकर सियासी हमले किए। तब से भाजपा के अंदर उनकी बेटी के टिकट लेकर संशय हो गया है। पहली लिस्ट में नाम न आने पर संशय और बढ़ा है।
सलीम और आबिद ने बढ़ाई टेंशन
बदायूं सीट को सपा ने अपने पाले में करने के लिए शिवपाल सिंह यादव को मैदान में उतारा है। यह अलग बात है कि शिवपाल सिंह के आने के बाद पूर्व केंद्रीय मंत्री सलीम इकबाल शेरबानी, सपा राष्ट्रीय सचिव रहे आबिद रजा की चुनौती सामने आई है। दोनों ने सेक्युलर फ्रंट बनाकर सहसवान में बड़ी रैली की। इसके बाद सपा के लिए एक चुनौती सामने आ रही है।
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