व्यंग्य: टमाटर साहब की जय!

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आज दबे कुचले निरीह टमाटर के दिन भी फिर गए। रंगत बदल गई । टमाटर के गाल लाल-लाल हो गए। ऐसा लगता है, जैसे वह भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ गया है। कुछ दिन में विदेशी यात्रा भी चालू हो जाएगी।

                                  ~राम नरेश ‘उज्ज्वल’
लखनऊ। घूरे के भी दिन फिरे, सिर पर आया ताज । दलित दबे कुचले लावारिश लोगों का भी समय आता है। जब समय आता है तो अल्ला मेहरबान हो जाता है और कमजोर से कमजोर गधा भी पहलवान हो जाता है। चाय बेचने वाला प्रधानमंत्री बन जाता है । खेती करने वाले किसान का बेटा मुख्यमंत्री की कुर्सी पर विराजमान होकर बड़े-बड़े माफियाओं को भी धूल चटा देता है । आज दबे कुचले निरीह टमाटर के दिन भी फिर गए। रंगत बदल गई । टमाटर के गाल लाल-लाल हो गए।ऐसा लगता है, जैसे वह भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठ गया है। कुछ दिन में विदेशी यात्रा भी चालू हो जाएगी। उसके सिर पर सोने चांदी हीरे मोती के ताज भी विराजमान हो गए हैं ।

उसके चर्चे दूर-दूर तक होने लगे हैं । रेडियो, अखबार, टीवी, सोशल मीडिया सब उसी के यशगान गाने लगे हैं। आज पूरे देश में हर कोई उसकी ओर निगाह उठाए ललचाई नज़रों से देख रहा है । हर कोई चाहता है, कि वह उसकी झोली में आ जाए । लेकिन वह टमाटर है, कोई आम नहीं। जो दर-दर मारा-मारा फिरे। यह तो खास लोगों के ही पास जाएगा और सबको तो केवल ललचुआएगा । कुछ दिन पहले टमाटर को कोई चार-पाँच रुपए में भी नहीं खरीद रहा था । किसान फेंक कर चले जाते थे । तब टमाटर को अपने ऊपर बहुत शर्म आती थी, वह मन ही मन कहता था, ” आखिर मैं जन्मा ही क्यों ? मेरी किसी को कोई जरूरत नहीं है । हे प्रभु मुझे मार दो। मैं जीवित नहीं रहना चाहता।

मुझे घुट-घुट कर जीना नहीं है ” किन्तु कुछ समय बाद टमाटर के भाव बढ़ गए। टमाटर की चोरियां होने लगीं। टमाटर के डकैत घूमने लगे। लोग टमाटर की एक झलक के लिए तरसने लगे हैं। वह सेलिब्रिटी हो गया है। अब टमाटर को खुद पर गर्व होने लगा । अब वह कहता है, “हे प्रभु मुझे हर जीवन में टमाटर ही बनाना।” आज बड़े बड़ों की इतनी औकात नहीं, जितनी टमाटर की है । कोई गरीब इंसान उस तक पहुंच नहीं सकता है। उसे आसानी से कोई अपने घर के अंदर ला भी नहीं सकता है। सब उसके सामने हाथ बांधे बंधुआ मजदूर की तरह खड़े हैं । और वह गर्व से सिर ऊंचा करके जमीदारों की तरह अकड़ दिखा रहा है। साहब बन के ऐंठ रहा है। सब को कीड़े मकोड़े समझ रहा है। समय बहुत बलवान होता है। समय के आगे किसी की नहीं चलती। जब तक राज योग लिखा है, तब तक कोई भी उसकी सरकार गिरा नहीं सकता । टमाटर के भी कभी बुरे दिन थे , आज अच्छे दिन हैं।

यह सब तकदीर का खेल है। इसमें राजा रंक कोई कुछ नहीं कर सकता। इसलिए विपक्ष से यही कहना है, रहिमन चुप ह्या बैठिए, देख दिनन कौ फेर। जब नीके दिन आईहें, बनत न लगिहें देर । टमाटर का बढ़ना-घटना भी दिनन का फेर है। कभी घना-घना , कभी मुठ्ठी भर चना, कभी वो भी मना । आज लोहे की चाकू से काट कर टमाटर खाना मना है, जो सोने की चाकू बनवाएगा , वही टमाटर खाने योग्य हो पाएगा। आज टमाटर के इतराने और नखरे दिखाने के दिन हैं । उसने जो मुकाम हासिल किया है, वो मुकाम पहले किसी को नसीब नहीं हुआ । अब वह जो चाहेगा, वही करेगा । टमाटर साहब है, बंदगी तो करवाएगा ही । वह आसमान की बुलंदी पर चढ़ा बैठा है और उतरने का नाम भी नहीं ले रहा। वह ड्रोन कैमरे से सब पर नजर रख रहा है। जो उसे गिराने की कोशिश करेगा, वह उस पर गाज़ गिरावा देगा । विरोधी मुंह के बल गिरेंगे। इस समय शनि भी मेहरबान है । टमाटर का कुछ न बिगड़ेगा । इसलिए चुप होकर बैठिए। टमाटर साहब की जय बोलिए। जय जयकार कीजिए।

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