राजा सिंह और राजीव प्रकाश साहिर के कहानी पाठ का आयोजन,

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कथाकार राजा सिंह और उर्दू के कथाकार राजीव प्रकाश साहिर के कहानी पाठ का आयोजन हुआ

हिंदी और उर्दू के लेखकों के बीच एकता हो -असलम जमशेदपुरी

हिंदी व उर्दू को क़रीब लाने का बढ़िया माध्यम – डॉ वजाहत हुसैन रिजवी

20 जून 2023, लखनऊ।  जन संस्कृति मंच (जसम) और भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की ओर से हिंदी के कथाकार राजा सिंह और उर्दू के कथाकार राजीव प्रकाश साहिर के कहानी पाठ का आयोजन 20 जून को इप्टा दफ्तर, कैसरबाग, लखनऊ के परिसर में हुआ। इस आयोजन के मुख्य अतिथि उर्दू के मशहूर अफसाना निगार तथा चौधरी चरन सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के उर्दू के विभागाध्यक्ष डाक्टर असलम जमशेदपुरी साहब थे। उनका कहना था कि प्रगतिशील आंदोलन के दौर में हिंदी और उर्दू करीब आई थी। दोनों जुबानों के बीच एकता बनी थी। इसके केंद्र में प्रेमचंद थे। आज के सियासी दौरे में दोनों जुबानों के लोगों के बीच एकता हो, वे मिले-बैठे, आपस में विचार विमर्श करें, यह जरूरी है। इस दिशा में लखनऊ में उर्दू और हिंदी के कथाकारों के कहानी पाठ का आयोजन एक अच्छी शुरुआत है। उन्होंने यह भी कहा कि कहानी कहे और अनकहे के बीच की चीज है।

कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ वजाहत हुसैन रिजवी ने की। उनका कहना था कि ये ज़िंदगी की कहानियां हैं। राजा सिंह की कहानी विचार प्रधान है। जीवन में जो बदलाव आया है, उसे सामने लाया गया है। राजीव प्रकाश साहिर की कहानी में स्त्री जीवन की स्थितियों के साथ उनके प्रतिरोध की खूबसूरती सामने आती है। हिंदी व उर्दू कहानी के पाठ का आयोजन दिलों को जोड़ना है। यह हिंदी उर्दू को क़रीब लाने का बढ़िया माध्यम है। इस तरह के आयोजन लगातार होने चाहिए। कार्यक्रम का संचालन जसम लखनऊ के सचिव कहानीकार फ़रज़ाना महदी ने किया।

इस मौके पर उर्दू कथाकार राजीव प्रकाश साहिर ने ‘मर्दानी’ कहानी का पाठ किया। यह मजाज के इस नज़्म से शुरू होती है जिसमें वे आंचल को परचम बना लेने की बात करते हैं। कहानी दो महिलाओं के इर्द-गिर्द चलती है। ये हैं नसीबन और उसकी सहेली सरला । दोनों के पति शराबी, जुआड़ी और निकम्मे हैं। सरला अपने पति के ज़ुल्म से भी पीड़ित है। घर चलाने व बच्चों का पेट पालने के लिए दोनों को ई रिक्शा चलाने को मजबूर होना पड़ता है। लखनऊ की सड़कों पर इनका रिक्शा चलाना पितृसत्ता की नजर से औरतों को देखने वालों की आंखों में खटकता रहता है। उनके साथ बदतमीजी भी की जाती है। दोनों मिलकर ऐसे शोहदों को सबक सिखाती हैं।

दूसरी कहानी राजा सिंह की ‘लाल का पतन’ थी।यह कहानी चार युवकों की है जिनका सामाजिक आधार निम्न मध्य वर्ग है। कहानी का केंद्रीय पात्र वसु है जो 12 साल बाद विदेश से अपने घर लौटता है। अतीत की घटनाएं उसके सामने दृश्यमान होती हैं। उन दिनों समाज को बदलने और लाल क्रांति की इच्छा थी। कामरेड मोहन से सभी साथी प्रभावित थे । आदेश पालक की तरह उसके हुक्म का पालन करते थे। वसु को एक एक्शन की घटना याद आती है जिसमें चारों साथी रात में पोस्टर चिपकाने निकलते हैं। पुलिस से मुठभेड़ होती है। वसु घायल भी होता है। कहानी अतीत से वर्तमान में लौटती है। वसु अपने साथियों के वर्तमान के बारे में पता करता है। उसे पता चलता है कि उनका जीवन व सोच-विचार पूरी तरह बदल गया है। क्रांति का लक्ष्य तिरोहित हो चुका है। व्यवस्था बदलाव की जगह सभी साथी इस व्यवस्था के चाकर बनकर रह गए हैं।

दोनों कहानियों पर गंभीर चर्चा हुई जिसकी शुरुआत जसम उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने की। इसमें डॉ एहतेशाम खान (डायरेक्टर अमेरिकन इंस्टीट्यूट आफ उर्दू), डॉ मसीहुद्दीन (मौलाना आजाद यूनिवर्सिटी), प्रो तकी (शिया कालेज), डॉ इरशाद साइनवी (मेरठ यूनिवर्सिटी), इप्टा के राष्ट्रीय कार्यवाहक अध्यक्ष राकेश, कवि भगवान स्वरूप कटियार, ‘इंडिया इनसाइड’ के संपादक अरुण सिंह, कवि-कथाकार डॉ शैलेश पंडित, कवयित्री विमल किशोर व कल्पना पांडेय, उर्दू के शोधकर्ता शाहिद हबीब फलाही, जसम लखनऊ के सह सचिव राकेश कुमार सैनी, चिंतक आर के सिन्हा आदि ने अपने विचार रखे।

इस अवसर पर हुई चर्चा में यह बात उभर कर आई कि राजीव प्रकाश साहिर की कहानी में मासूम ख्वाहिश है । इसमें एक तरह की समस्याओं को झेलने वालों के बीच एकता दिखती है। यह कहानी वर्तमान में स्त्रियों की बढ़ती और बदलती भूमिका, स्वतंत्र पहल तथा पितृसत्ता की मानसिकता के प्रतिरोध को सामने लाती है। यह विचार भी आया कि ‘मर्दानी’ की जगह इसका शीर्षक ‘परचम बनता आंचल’ या इसी तरह का होना चाहिए।

राजा सिंह की कहानी में मत वैभिन्य रहा। एक मत के अनुसार यह लाल के पतन की नहीं निम्नपूंजीवादी क्रांतिवाद के पतन की कथा है। ट्रीटमेंट यांत्रिक है। एक वक्ता को यह सृंजय के ‘कामरेड का कोट’ के आगे की कहानी लगी। वहीं कुछ का कहना था कि इसमें युवा काल की क्रांति की भावना उभर कर आई है। लेकिन वास्तविक जीवन में प्रवेश के बाद भावनाएं नष्ट हो जाती हैं। बदलाव के विचार को बचा कर रख पाना आज के समय में आसान नहीं है। इस मौके पर प्रदीप घोष, धर्मेंद्र, कलीम खान, आदियोग, पल्लवी मिश्रा, अशोक श्रीवास्तव, शहजाद रिजवी आदि की मौजूदगी थी। धन्यवाद ज्ञापन इप्टा के रिज़वान अली ने किया।

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