भारत में फासीवाद को समझने के लिए अडानी और राज्य के रिश्ते को समझना जरूरी है – दीपंकर भट्टाचार्य 

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प्रेस क्लब में आयोजित कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए दीपंकर भट्टाचार्य

 

लोकतंत्र के लिए एक वृहत्तर मोर्चा आज की जरूरत है – प्रो रमेश दीक्षित

9 अप्रैल 2023,लखनऊ। भारतीय आजादी ने नागरिकों को अधिकार संपन्न बनाया लेकिन मोदी राज में मात्र कर्तव्य की बात हो रही है। हम अधिकारों के हनन को खुलेआम देख सकते हैं। 2014 जब केंद्र में भाजपा की सरकार आई, उसके बाद के हिंदुस्तान को नया हिंदुस्तान कहा जा रहा है जबकि यह गुजरात मॉडल का विस्तार है। एक तरफ अडानी-अंबानी का शीर्ष पर पहुंचना और इसके साथ २००२ का जनसंहार का यह मॉडल फासीवाद की रियल लेब्रॉटी है। उत्तर प्रदेश ही नहीं दक्षिण के कर्नाटक व तेलंगाना में भी यह प्रयोग जारी है। लूट, झूठ, नफरत, हिंसा, दमन और आतंक पर यह केंद्रित है। भारत में फासीवाद को समझने के लिए अडानी और राज्य के रिश्ते को समझना जरूरी है।

या बात भाकपा (माले) के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने यूपी प्रेस क्लब में आयोजित सेमिनार को संबोधित करते हुए कही। इसका विषय था ‘लूट, झूठ, नफरत, हिंसा, दमन और आतंक के दौर में न्याय और अधिकार के लिए आंदोलन’। इसका आयोजन जन संस्कृति मंच और आइसा ने संयुक्त रूप से किया था। अध्यक्षता प्रो रमेश दीक्षित ने की तथा संचालन जन संस्कृति मंच उत्तर प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष कौशल किशोर ने किया।

दीपंकर भट्टाचार्य का कहना था कि भारतीय राज वर्तमान में फासीवाद राज में बदल चुका है। घोषित और अघोषित आपातकाल से आगे बढ़कर यह स्थाई आपातकाल है। अच्छे दिन से निकल कर अमृत काल की बात हो रही है। लेकिन सच्चाई यही है कि जिस तरह से पिछड़े विचारों और मूल्यों को प्रतिष्ठित किया जा रहा है, वह समाज को पीछे ले जाना है। संविधान का मनुस्मृतिकरण किया जा रहा है। जज न्यायालय के जजमेंट का आधार बदला है। आतंक को संस्थाबद्ध किया गया है। रिटायर्ड जजों के लिए गैंग शब्द का इस्तेमाल हुआ है। पिछले रामनवमी के दौरान जो बिहार, पश्चिम बंगाल आदि राज्यों में हिंसा कराई गई, वह सोची समझी नीति के तहत है। भारतीय राज्य को के चरित्र को बदलना आर एस एस की योजना का हिस्सा है।

दीपंकर भट्टाचार्य का कहना था फासीवाद का जवाब जन एकता और जन कार्रवाई हो सकती है। विभिन्न मुद्दों पर जन संघर्ष चल रहे हैं । किसानों ने लंबी लड़ाई लड़ी और सरकार को पीछे हटने के लिए बाध्य किया। आज निजीकरण के खिलाफ संघर्ष है। छात्रों, मजदूरों, आदिवासियों, स्त्रियों आदि के संघर्ष हैं। इन संघर्षों को एकजुट करना और व्यापक लोकतांत्रिक संघर्ष का हिस्सा बनाना जरूरी है। दीपंकर भट्टाचार्य ने अपने व्याख्यान का समापन ब्रेख्त की इन पंक्तियों से किया ‘जुल्मतों के दौर में क्या गीत गाए जाएंगे?/ हां, जुल्मतों के बारे में भी/ गीत गाए जाएंगे’। उनका कहना था कि यह विचार और व्यवहार के स्तर पर पहलकदमी लेने का वक्त है। 2024 सामने है। यह संघर्ष लोकतंत्र और आजादी के लिए है। पहल चाहे व्यक्तिगत हो या सामूहिक, वह जरूरी है। साहस और विवेक के साथ पहल ली जानी चाहिए। आगे का रास्ता इसी से निकलेगा।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए प्रोफेसर रमेश दीक्षित का कहना था कि आजादी ने हमें संविधान दिया, संविधान ने लोकतंत्र दिया। इस देश के लोगों को अधिकार मिला। वे प्रजा से नागरिक में रूपांतरित हुए। आज ऐसा दौर लाया जा रहा है जिसमें नागरिक को प्रजा बनने को बाध्य किया जा रहा है। यह चुनाव पर आधारित तानाशाही का है। लोकतंत्र के लिए एक वृहत्तर मोर्चा आज की जरूरत है।

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