भास्कर चौधुरी के कविता संग्रह का लोकार्पण ‘बचने ही चाहिए बच्चे भले ही मारा जाय ईश्वर

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Bhaskar Choudhury's poetry collection was launched 'Children must be saved even if God is killed'
भास्कर चौधुरी का कविता संग्रह
  • कविता में कोई सरहद नहीं – कौशल किशोर
  • वर्तमान में अस्मिता विमर्श बौद्धिक व एकेडमिक अधिक – उमाशंकर सिंह परमार
  • कविता में बच्चों के मनोभाव की अभिव्यक्ति – आशीष सिंह
  • हम लज्जित व पराजित समय में – मिथिलेश श्रीवास्तव

लखनऊ। लिखावट की ओर से भास्कर चौधुरी के कविता संग्रह ‘चयनित कविताएं’ का लोकार्पण, कविता पाठ और परिचर्चा का आयोजन ऑनलाइन किया गया। यह संग्रह ‘समकाल की आवाज’ के तहत न्यू वर्ल्ड पब्लिकेशन ने प्रकाशित किया है। कार्यक्रम का संचालन कवि प्रशांत जैन ने किया। शुरुआत उन्होंने भास्कर चौधुरी की कविता ‘अमरूद का पेड़’ के पाठ से किया। यह कविता अम्मा के लिए है और संग्रह भी अम्मा शुक्ला चौधरी को समर्पित है जिनका निधन कोरोना संक्रमण के दौरान हुआ।

कवि व ‘रेवान्त’ के प्रधान संपादक कौशल किशोर ने भास्कर चौधुरी की ‘चयनित कविताएं’ का लोकार्पण किया। उनका कहना था कि इन कविताओं का फलक बड़ा है। इसमें एक तरफ घर, परिवार, मां, पिता, आस-पड़ोस, मजदूर, किसान आदि हैं तो वही रोहिंग्या, अफगानी बच्चे, गाजा पट्टी, सीरिया, इराक से लेकर राजा, तानाशाह, अमरीका और उसका साम्राज्य है। इनकी कविताओं से गुजरते हुए एहसास होता है कि यहां कोई सरहद नहीं है। जैसे हवा, बादल, परिंदे उन्मुक्त होते हैं, इसी तरह इनकी कविताओं का भी कोई सरहद नहीं है। भास्कर की कविताओं का क्षितिज लगातार विस्तार पाता है। कवि समय, समाज और दुनिया को उस मनुष्य की नजर से देखता है या उसके पक्ष में खड़े होता है जो शोषित, दलित व उत्पीड़ित है, श्रम का स्रोत है। भास्कर की कविता का सृजनात्मक संघर्ष बेहतर दुनिया के लिए है।

कविता ‘बच्ची का आना

इस मौके पर भास्कर चौधुरी ने करीब एक दर्जन कविताओं का पाठ किया। शुरुआत ‘डहेलिया’ कविता से की। इसमें धूप, पानी, जमीन, प्यार को लेकर ढेर सारी ‘गुलाबी आभा’ बिखेर देने की चाह है। भास्कर चौधुरी की कविता में जीवन राग है तो वही समकालीनता के अनेक रंग हैं। कविता ‘बच्ची का आना’ में कहते हैं कि ‘बच्ची का आना/जैसे दादा की आंखों से मोतियाबिंद की छानी का कट जाना /बच्ची का आना जैसे बर्तन की भीड़ में /दूध की बोतल का चुपके से शामिल हो जाना’।

भास्कर चौधुरी की कविता में प्रेम के बरअक्स घृणा का व्यापार करने वालों के विरुद्ध संवेदना सामने आती है। कुछ यूं ‘जाने कहां से निकल कर /इकट्ठा हो जाती है इतनी घृणा /कि मिनटों में इमारतें खाक में मिल जाती हैं/ दुकानें जलकर राख हो जाती हैं/ कई जिंदगियां आखरी सांस लेती हैं/ जाने कहां से निकल कर आती है इतनी घृणा/ प्रेम को तो ऐसे बहते देखा नहीं कभी….’।यहां प्रेम की अविरल धारा एक जिद की तरह बहती है। वह कहते हैं ‘बचने ही चाहिए बच्चे/ भले ही मारा जाय ईश्वर /मुझे गिला नहीं’। उन्होंने ‘तानाशाह’, ‘स्लो मोशन’, ‘काली लड़की’, ‘राजा’, ‘मध्यवर्ग का 9 मिनट’ आदि का भी पाठ किया। ‘इन दिनों’ कविता में कहते हैं ‘इन दिनों जब देश तरक्की की राह पर है /तेजी से घट रहे हैं- जंगल, आदिवासी और धान के खेत’।

अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरे

भास्कर चौधुरी की कविताओं पर हुई परिचर्चा में बोलते हुए आलोचक उमाशंकर सिंह परमार का कहना था कि कविताएं व्यापक उद्देश्य को लेकर चलती हैं और व्यापक दृष्टिकोण को व्यक्त करती हैं। वर्तमान में जो अस्मिता विमर्श है, वह बौद्धिक व एकेडमिक अधिक है जबकि भास्कर चौधुरी की कविताओं में बच्चे, प्रकृति, इंसान, लोकतंत्र पर जो खतरे हैं, उसे लेकर विमर्श है। नव उदारवाद कितना विध्वंसक होगा, यह सोचा नहीं गया था। युद्ध आज की हकीकत है। तानाशाह जो लोकतंत्र के रास्ते गद्दी नशीन हुआ, वह वैश्विक पूंजी का नुमाइंदा है। अभिव्यक्ति की आजादी पर खतरे का वही स्रोत है। वह जनता के भाग्य का फैसला कर रहा है। उमाशंकर सिंह परमार ने राजा, बस्तर, अफगानी बच्चे, बजट, आदिवासी आदि कविताओं की चर्चा की और कहा कि भास्कर चौधुरी समय सजग कवि हैं। इनकी जमीन कलावादीऔर बौद्धिकता प्रदर्शित करने वाले कवियों से भिन्न है।

कविता में अमूर्तता बढ़ी है

युवा आलोचक आशीष सिंह का कहना था आज की कविता में अमूर्तता बढ़ी है, वहीं भास्कर चौधुरी के पास मूर्त भाषा है। बच्चों के मनोभाव को जिस खूबी के साथ व्यक्त किया, वह हिंदी कविता में कम मिलता है। इनकी कविता अंदर से बाहर को जोड़ती है और सच के सवालों को दर्ज करती है। यह दुनिया के तमाम संघर्षों से जुड़ती है। मध्यवर्ग के दोहरे चरित्र को उजागर करती है। ‘मध्यवर्गँ का नौ मिनट’ में गहरा व्यंग्य है । कोरोना संक्रमण के दौरान नौ मिनट का जो स्वांग रचा गया, उस पर चोट करती है।

लिखावट की पहल का स्वागत किया

समापन वक्तव्य कवि और गद्यकार मिथिलेश श्रीवास्तव का था। उनका कहना था हम लज्जित और पराजित समय में हैं। आज हम लज्जित व पराजित समय में 1975, 1984, 1992, 2002 की घटनाएं हमारे सामने हैं। यह हमें परेशान करती हैं।आज सांस लेना मुश्किल हो रहा है। ऐसे में कविताएं ऑक्सीजन का काम करती हैं। भास्कर चौधुरी की कविताओं में समय की गूंजे हैं  ।यह तानाशाह की बात करती है। उसके विरुद्ध खड़ी होती है। इनकी कविता उम्मीद जगाती है।

भास्कर चौधुरी के पिताजी शीतेन्द्र नाथ चौधुरी ने लिखावट की पहल का स्वागत किया और कहा कि उमाशंकर सिंह परमार और आशीष सिंह के पास समकालीन आलोचना दृष्टि है। इस मौके पर जवाहरलाल जलज, गोपाल गोयल, देवेंद्र आर्य, चितरंजन गोप, डी एम मिश्र, रजत कृष्ण, विद्या भूषण, विजय विशाल, अशोक श्रीवास्तव, मुकेश प्रत्यूष, सर्वेश्वर शुक्ला, सत्येंद्र पांडे आदि बतौर श्रोता उपस्थित थे। यह पूरा कार्यक्रम लिखावट के यूट्यूब पर उपलब्ध है जिसे देखा वो सुना जा सकता है।

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