देवेंद्र आर्य का कविता पाठ : ‘भाषा को माचिस होना होगा’

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                   ..कवि देवेन्द्र आर्य…

लखनऊ। लिखावट के तत्वावधान में कवि देवेंद्र आर्य के एकल कविता पाठ के कार्यक्रम का वर्चुअल आयोजन हुआ। इसमें कवि देवेंद्र आर्य ने विविध रंग और शैलियों में लिखी अपनी करीब दर्जनभर कविताएं सुनाईं। इनमें गजल, गीत तथा छंद मुक्त रचनाएं शामिल थीं।

देवेंद्र ने शुरुआत गजल से की। गंगा उत्तर भारत की प्रमुख नदी है। वह प्रदूषण की मार झेल रही है। इसे प्रदूषण मुक्त करने के नाम पर जो खेल व राजनीति हो रही है, उस पर टिप्पणी करते हुए देवेंद्र कहते हैं ‘फंसी है किस महाभारत में गंगा/उठाई जा रही आढ़त में गंगा’। एक अन्य गजल में उनका कहना है ‘सर पर बिठाओ/ मगर सर मत चढ़ाओ/मन में स्थान दो/मगर ध्यान रहे कवि मन बढ़ ना हो जाए’। देवेन्द्र संवाद धर्मी कवि हैं। एक कविता में प्रश्न करते हैं ‘तोड़ती है एक चुप्पी/एक चुप्पी जोड़ती है/आप किसके साथ हो बोलो?’

देवेंद्र आर्य के लिए शायरी ही सियासत है। वे कहते हैं ‘क्यों बेकार की हाय हाय सी हो/कविता संकट में उपाय सी हो’। उनका मत है कि ‘भाषा को माचिस होना होगा’। देवेंद्र छद्म प्रतिरोध पर भी प्रहार करते हैं। आज जब मूल्यों का क्षरण हो रहा है। लोकतंत्र को सीमित किया जा रहा है। उसके पाये हिल रहे हैं। ऐसे में मुक्तिबोध के इस कथन ‘पार्टनर! तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?’ को रटने मात्र से काम चलने वाला नहीं है। ‘सुनो मुक्तिबोध’ कविता में वे कहते हैं ‘जब पालिटिक्स दिखाने का मौका ही नहीं छोड़ रही हो पालिटिक्स/न्यायालय के बाहर बैठी हो/बुलडोजर की फुल संवैधानिक बेंच/तो ऐसे में पूछना कि तुम्हारी पालिटिक्स क्या है पार्टनर/कितना किताबी लगता है “।

कार्यक्रम के आरंभ में लिखावट की ओर से कवि और गद्यकार मिथिलेश श्रीवास्तव ने देवेंद्र आर्य का स्वागत किया। उनकी कविताओं पर ‘मुक्तिचक्र’ पत्रिका के संपादक गोपाल गोयल, युवा आलोचक उमाशंकर सिंह परमार और वरिष्ठ कवि जवाहर लाल जलज ने अपनी संक्षिप्त टिप्पणी की। उनका कहना था कि देवेंद्र आर्य की कविताओं में सच की आग है। वह हमारे अंतस को धधकाती है। यह बदलाव के लिए हमें तैयार करती हैं। कौशल किशोर ने शुरू में देवेन्द्र आर्य का संक्षिप्त परिचय दिया और अंत में सभी को धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कार्यक्रम का समापन किया। उनका कहना था कि देवेंद्र अपनी कविता में समकाल को रचते हैं। इसकी आवाज सुनी जा सकती है। हमारा समय अपनी विसंगतियों, विद्रूपता तथा द्वन्द्व के साथ इनकी कविताओं में अभिव्यक्त होता है।

गौरतलब है कि देवेंद्र आर्य का जन्म 18 जून 1957 को गोरखपुर में हुआ। गोरखपुर विश्वविद्यालय से इतिहास में एम ए किया। चार दशकों से ऊपर की रचना यात्रा में 16 कविता संग्रह प्रकाशित हुए जिनमें गीतों के 4, ग़ज़लों के 6 और मुक्त छंद कविता के 6 संग्रह शामिल हैं। सद्यः प्रकाशित ग़ज़ल संग्रह “मन कबीर” का एक साथ सात भारतीय भाषाओं में प्रकाशन हुआ है। आलोचनात्मक निबन्धों की एक पुस्तक “शब्द असीमित” है। इसके अतिरिक्त आलोचक डा. परमानन्द श्रीवास्तव और कवि- गीतकार देवेन्द्र कुमार बंगाली केन्द्रित तीन पुस्तकों का सम्पादन किया। रंग कर्म, ट्रेड यूनियन और सामाजिक आन्दोलनों से सक्रिय जुड़ाव रहा है। दिल्ली से प्रकाशित “समकाल” मासिक के सम्पादन से जुड़े हैं। गोरखपुर से विमर्श केन्द्रित संस्था “आयाम” के संयोजक हैं। एक्टिविस्ट कवि- विचारक के रूप में देवेन्द्र आर्य की पहचान है। उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान का विजयदेव नारायण साही नामित कविता पुरस्कार तथा कवि मुकुट बिहारी सरोज सम्मान (ग्वालियर, मध्यप्रदेश) 2022 से सम्मानित हैं।

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