तंबाकू से होने वाले नुकसान में कमी पर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सामाजिक माहौल की जरूरत

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The need for a social environment from a scientific point of view on the reduction of the harm caused by tobacco
प्रतिबंध के बजाय नुकसान में कमी के वैज्ञानिक तरीकों के आधार पर प्रगतिशील नियमों को तैयार किया जाए।

मुंबई। विश्व तंबाकू निषेध दिवस 2022 के अवसर पर आयोजित ईटी कंज्यूमर फ्रीडम कॉन्क्लेव में ‘रीफ्रेमिंग सोसाइटल व्यू ऑन हार्म रिडक्शन-ए मेडिकल एंड साइंटिफिक पर्सपेक्टिव’ थीम पर गहन विचार-विमर्श किया गया। इस दौरान उपभोक्ताओं की स्वतंत्रता के बारे में चर्चा को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से पहल की गई और कुल मिलाकर यह विचार उभरकर सामने आया कि तंबाकू के इस्तेमाल को लेकर होने वाले नुकसान में कमी पर सामाजिक दृष्टिकोण तैयार किया जाए और उपभोक्ता की पसंद को देखते हुए प्रतिबंध के बजाय नुकसान में कमी के वैज्ञानिक तरीकों के आधार पर प्रगतिशील नियमों को तैयार किया जाए।

एविडेंस बेस्ड पॉलिसी रिकमंडेशन

इस चर्चा में नीति निर्माताओं, विज्ञान और चिकित्सा से जुड़े लोगों, कानूनी, थिंक टैंक और उपभोक्ता संगठनों के प्रसिद्ध विषय विशेषज्ञों की भागीदारी देखी गई। कॉन्क्लेव के दौरान पहले पैनल ने ‘इनेबलिंग द शिफ्ट टू लैस हार्मफुल अल्टरनेटिव्स – एविडेंस बेस्ड पॉलिसी रिकमंडेशन’ विषय पर विचार-विमर्श किया। चर्चा में शामिल होते हुए डेविड टी. स्वीनॉर जे.डी., फैकल्टी ऑफ लॉ एंड सेंटर फॉर हेल्थ लॉ, पॉलिसी एंड एथिक्स, यूनिवर्सिटी ऑफ ओटावा, कनाडा ने कहा, ‘‘यह सार्वजनिक स्वास्थ्य को लेकर एक मिस्ड अपॉर्च्युनिटी है। धूम्रपान करने वालों के लिए इसे पूरी तरह खत्म करने की तुलना में इसके किसी सब्स्टीट्यूट को अपनाना अक्सर आसान होता है।

रिसर्च और डेवलपमेंट की जरूरत

हमें बेहतर स्वास्थ्य के लिए विकल्पों के साथ उन्हें सशक्त बनाने की जरूरत है। उच्च जोखिम वाले उत्पाद की रक्षा करते हुए कम जोखिम वाले उत्पाद पर प्रतिबंध लगाना अधिक मृत्यु और बीमारी के साथ अपनाई गई एक प्रतिकूल रणनीति है। उपभोक्ताओं को सुरक्षित विकल्प प्रदान करने में टैक्नोलॉजी के साथ रिसर्च और डेवलपमेंट पर ध्यान केंद्रित करना ज्यादा महत्वपूर्ण है, जैसा कि कई देशों में है- जहां कम जोखिम वाले विकल्पों तक लोगों की आसान पहुंच के कारण वहां धूम्रपान में तेजी से गिरावट दर्ज की गई है।’’

शरीफा एज़ात वान पुतेह, प्रोफेसर ऑफ हॉस्पिटल मैनेजमेंट एंड हेल्थ इकोनॉमिक्स, डिप्टी डीन (रिलेशन एंड वेल्थ क्रिएशन), फेकल्टी ऑफ मेडिसिन, यूकेएम मेडिकल सेंटर, मलेशिया ने कहा, ‘‘उपभोक्ताओं को होने वाले फायदों की तरफ हमें प्रमुखता से ध्यान देने की आवश्यकता है। नीति निर्माताओं को अग्रणी वैज्ञानिकों के साथ जुड़ना चाहिए, जिससे वे वैज्ञानिक प्रमाणों द्वारा समर्थित, नुकसान में कमी के लाभों पर चर्चा कर सकें। बेहतर स्वास्थ्य के लिए उपभोक्ता अधिकारों और विकल्पों द्वारा समर्थित सुरक्षित विकल्प राष्ट्रीय नीति के एजेंडे का हिस्सा हो सकते हैं। यह महत्वपूर्ण है कि ज्ञान और जागरूकता को सभी हितधारकों और बड़े पैमाने पर जनता के बीच प्रचारित किया जाए।’’

तंबाकू के विकल्प को अपनाए

अपने विचार साझा करते हुए ऑर्थाेपेडिक सर्जन और एसोसिएशन फॉर हार्म रिडक्शन, एजुकेशन एंड रिसर्च सदस्य डॉ किरण मेलकोटे ने कहा, ‘‘निकोटीन और तंबाकू को अलग करने की जरूरत है, क्योंकि निकोटीन अपने आप में कैंसरकारक नहीं है। तंबाकू का खेल फिर से लोकप्रिय हो गया है, लेकिन अब तक, तंबाकू की समस्या को दूर करने के लिए विश्व स्तर पर बहुत कम किया गया है। व्यावहारिक दृष्टिकोण अतीत से सीखना और जीवन को बेहतर बनाने और बचाने के लक्ष्य की दिशा में काम करके सार्वजनिक स्वास्थ्य के लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित करना होना चाहिए। हम वो वक्त आ गया है जब हम नुकसान में कमी के मुद्दे को और नजरअंदाज नहीं कर सकते।’’

भारत में सबसे ज्यादा तंबाकू की बिक्री

दूसरे पैनल ने ‘एम्पावरिंग कम्युनिटी एंगेजमेंट – क्रिएटिंग कंज्यूमर-फ्रेंडली रेग्युलेटरी फ्रेमवर्क’ थीम पर विचार-विमर्श को आगे बढ़ाया। इस दौरान यह जानकारी भी सामने आई कि कई उपायों के बावजूद, भारत दुनिया में तंबाकू उपयोगकर्ताओं की दूसरी सबसे बड़ी आबादी वाला देश है और जहां तक तंबाकू छोड़ने की दर का सवाल है, भारत दूसरा ऐसा देश है जहां यह दर सबसे कम है। विशेषज्ञों ने इस बात पर विचार-विमर्श किया कि कैसे राष्ट्र एक महत्वपूर्ण तंबाकू नियंत्रण अवसर से चूक रहा है और कैसे एक वैज्ञानिक नीति ढांचा देश को अंततः तंबाकू मुक्त होने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकता है।

मनोचिकित्सा में वरिष्ठ सलाहकार और आईएचबीएएस के पूर्व डायरेक्टर प्रोफेसर डॉ निमेश जी देसाई ने कहा, ‘‘हमें नीति कार्यक्रम के स्तर पर तंबाकू निर्भरता के लिए आदर्शवाद पर अधिक जागरूकता और व्यावहारिकता पैदा करने की आवश्यकता है। नुकसान कम करने की वकालत करते हुए, हमें ऐसे तरीके खोजने की जरूरत है, जिनके माध्यम से संदेश व्यापक रूप से नीति निर्माताओं, स्वास्थ्य पेशेवरों, तंबाकू उपयोगकर्ताओं और आम जनता तक पहुंचाया जा सके।’’

विश्वसनीय जानकारी साझा करें

प्रो. बेजोन कुमार मिश्रा, अंतर्राष्ट्रीय उपभोक्ता नीति विशेषज्ञ, मानद प्रोफेसर-नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी ओडिशा ने उल्लेख किया, ‘‘उपभोक्ताओं को ‘चुनने के अधिकार’ से इनकार नहीं किया जाना चाहिए – सुरक्षा, शिक्षा, गुणवत्ता कानून बनाने की नींव होनी चाहिए। एक उपभोक्ता की सबसे अच्छा दोस्त एक नियामक ढांचे द्वारा समर्थित मानक और स्वस्थ प्रतिस्पर्धा है। यह सुनिश्चित करता है कि बाजार नैतिक तरीके से व्यवहार करे और उपभोक्ता विश्वसनीय जानकारी के आधार पर सोचे-समझे विकल्प बना सकें।’’

न्याया की आउटरीच लीड, विधि यशस्विनी बसु ने कहा, ‘‘नुकसान कम करने की रणनीति तैयार करते समय साक्ष्य-आधारित दृष्टिकोण लाने के बहुत फायदे हैं। कोई भी व्यापक कानून वास्तव में उद्देश्य की पूर्ति नहीं करता है। अगर हम अदालतों के रोस्टर में जाते हैं, तो तंबाकू और/या धूम्रपान से संबंधित हर लंबित मुकदमे प्रतिबंध को वापस लेने को चुनौती दे रहे हैं।’’

धूम्रपान मुक्त पीढ़ी बनाने की जरूरत

अपने मुख्य भाषण में ऑकलैंड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एमेरिटस और एएसएच – एक्शन फॉर स्मोकफ्री एओटेरोआ और लैंसेट एनसीडी एक्शन ग्रुप के अध्यक्ष रॉबर्ट बीगलहोल ने कहा, ‘‘भारत एक प्रगतिशील देश है और अपनी नीतिगत सोच के दौरान न्यूजीलैंड के मामले पर विचार कर सकता है। पिछले दो वर्षों में, सुरक्षित विकल्पों के उपयोग के साथ न्यूजीलैंड में वयस्क दैनिक धूम्रपान दर में काफी गिरावट आई है।

हम धूम्रपान-मुक्त 2025 के अपने लक्ष्य के करीब महसूस करते हैं, जिसमें वयस्क धूम्रपान करने वालों को कम हानिकारक उत्पादों को छोड़ने या बदलाव के लिए प्रोत्साहित करने पर ध्यान केंद्रित किया गया है। कानून के रूप में भारत की तरह धूम्रपान मुक्त पीढ़ी बनाने के लिए कई उपाय कर रहा है – इस लिहाज से सुरक्षित विकल्पों का प्रचार, पहुंच और उपलब्धता महत्वपूर्ण है। साथ ही साथ अवैध व्यापार की चुनौती से भी हमें निपटना है। उपलब्ध नुकसान कम करने के साधनों के साथ, न्यूजीलैंड और भारत जैसे अन्य देशों के नीति निर्माताओं की प्रतिबद्धता उनके तंबाकू मुक्त दृष्टिकोण को हासिल करने में मददगार साबित हो सकती है।’’

नुकसान से बचने यह अपनाएं

एसोसिएशन ऑफ वेपर्स इंडिया (एवीआई) के डायरेक्टर सम्राट चौधरी ने कहा, ‘‘हमें नीति निर्णयकर्ताओं को नुकसान कम करने की रणनीति के सकारात्मक परिणामों के बारे में प्रभावित करने की जरूरत है। नीति निर्माताओं को दुनिया भर के अनुभवजन्य साक्ष्यों को भी देखने की जरूरत है, जहां उन्होंने आयु समूहों में नुकसान कम करने के विकल्पों की शुरूआत के बाद सिगरेट धूम्रपान में तेजी से कमी देखी है। इसके साथ ही उपभोक्ताओं को भी नीति निर्माण का हिस्सा बनाने की जरूरत है और हमें ऐसा विजन अपनाने की जरूरत है, जिससे हम बड़ी आबादी की मदद करने में सफल हो सकें।’’

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