काशी पहुंचे अक्षय कुमार, बोले- सनातन व वैदिक धर्म के गौरव को नहीं जानती है नई पीढ़ी

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Akshay Kumar reached Kashi, said - the new generation does not know the pride of Sanatan and Vedic religion
मुगलों का, ब्रिटिश का इतिहास पढ़ाया जाता है। इसमें संतुलन की जरूरत है और इतिहास की किताबों को बदलने की जरूरत है।

वाराणसी। बॉलीवुड में अपनी अदाकारी से मुकाम बनाने वाले अक्षय कुमार सोमवार शाम को धार्मिक नगरी काशी पहुंचे। यहां पूजा -अर्चना के बाद अक्षय ने कहा कि हमारे इतिहास की किताब में एक पैराग्राफ हमारे हिंदू योद्धाओं पर हैं, जबकि मुगलों पर ढेर सारा इतिहास की किताबों में दर्ज है। हमारे बच्चों को राणा प्रताप, पृथ्वीराज चौहान, शिवाजी के बारे में कुछ खास जानकारियां नहीं हैं। मुगलों का, ब्रिटिश का इतिहास पढ़ाया जाता है। इसमें संतुलन की जरूरत है और इतिहास की किताबों को बदलने की जरूरत है।

नदेसर पैलेस में मीडिया से बातचीत करते हुए अक्षय कुमार ने कहा कि नई पीढ़ी को हमारे हिंदू धर्म के योद्धाओं की वीरता के बारे में बताना बहुत जरूरी है। अगर मैं लेखक होता तो इतिहास बदलने के लिए प्रयास करता। बतौर कलाकार मैं यह काम करने का प्रयास कर रहा हूं। फिल्मों के माध्यम से मेरा छोटा सा प्रयास है कि नई पीढ़ी अपने भूतकाल और संस्कृति को जाने। हम लोग भारतीय संस्कृति के पुनरुत्थान के लिए काशी विश्वनाथ से भगवा ध्वज लेकर सोमनाथ दर्शन के लिए जाएंगे। अगर अब बदलाव नहीं हुआ तो कब बदलेगा। बनारस का खानपान दिल को छू जाता है।

गंगा आरती में शामिल हुए अक्षय

सोमवार को बाबा विश्वनाथ की नगरी पहुंचे अक्षय कुमार ने गंगा स्नान के बाद मां गंगा की आरती राजघाट पर शामिल हुए।अक्षय कुमार को देखकर दर्शक उनके साथ। सेल्फी लेने के लिए व्याकुल थे। अक्षय कुमार, अभिनेत्री मानुषी छिल्लर और निर्देशक चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने घाट पर खड़े लोगों का अभिवादन किया। बजड़े पर सवार होकर अक्षय कुमार और मानुषी छिल्लर नौका विहार पर निकले। इसी बीच गंगा की धारा में जब नौका चल रही थी तो अचानक से अक्षय कुमार ने हर-हर गंगे कहकर गंगा में छलांग लगा दी। इस दौरान वो थोड़ी देर तक गंगा में तैरते रहे और फिर वापस नौका में सवार हो गए। इसके बाद दशाश्वमेध गंगा आरती में शामिल हुए।

इतिहास में बहुत कुछ छिपाया गया है

वाराणसी आए मशहूर निर्देशक डॉ. चंद्रप्रकाश द्विवेदी ने कहा कि भारत का पांच हजार साल पुराना इतिहास है। पांच हजार साल के इतिहास में प्राथमिक शिक्षा में हमारा इतिहास बाबर से शुरू होकर बहादुर शाह जफर पर खत्म हो जाता है। उसके बाद ब्रिटिश साम्राज्य का इतिहास शुरू होता है और आजादी के इतिहास पर समाप्त होता है। पांच हजार साल के अनुपात में दो सौ तीन सौ साल ज्यादा महत्व के हैं। कहां है वैदिक काल, उत्तर वैदिक काल, कहां है रामायण काल, महाभारत काल, गुप्त काल, शुंग, कहां है कनिष्क का वंश।

डॉ. द्विवेदी ने कहा कि यह कितने शर्म की बात है कि चाणक्य को डिस्कवरी आफ इंडिया में लोमड़ी की संज्ञा दी गई है। यानि हमने अपने सबसे बड़े विद्वान की तुलना लोमड़ी से की। जो विश्व को सबसे बड़ा अर्थशास्त्र देता है उसकी तुलना में किससे करते हैं, यह दुख का विषय है। चाणक्य का मतलब चालाकी करना नहीं देश बनाने वाला है। इतिहास को मैं बदलना चाहता हूं। भारत का सांस्कृतिक इतिहास गौरवपूर्ण हैं। इतिहास तो ऐसा लिखा गया है कि भारत में सभ्यता और संस्कृति का विकास विदेशी हमलावरों के आने बाद ही हुआ। इसे कोई न कोई चुनौती देगा, समाज में नए भारत का उदय हो रहा है। पहले जो बात खुलकर नहीं होती थी, उस पर खुलकर बात हो रही है। अब हमें अपनी आने वाली पीढ़ी को अपने गौरव से परिचित कराने की जरूरत है।

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