लखनऊ। राष्ट्र के निर्माण में आधी आबादी की भूमिका अहम रही है। भारत की आजादी के समय से लेकर आज तक सशक्त भारत के निर्माण में महिलाओं ने पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर सक्रिय सहभागिता निभाते हुए खुद को साबित किया है। वर्तमान समय में भारत सरकार के कई अहम पदों को भी महिलाएं सुशोभित कर रही हैं। पूर्व में भी भारत समेत विश्व में महिलाओं ने अहम भूमिका निभाई। इसके बावजूद तमाम ऐसी समस्याएं बनी हुई है, जो महिलाओं के सशक्तिकरण में बाधक बनती नजर आती हैं। जब तक इन समस्याओं से पार नहीं पाया जाएगा, तब तक महिला सशक्तिकरण का असल स्वप्न साकार नहीं हो सकेगा।
युद्ध के मोर्चे पर यूं किया था सहयोग
महिलाओं ने साल 1971 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुए युद्ध जोकि 03 दिसंबर को शुरू हुआ था और 13 दिनों यानि 16 दिसम्बर तक चला था। बताया जाता है कि जब पाकिस्तान ने भारत के ऊपर 14 नापल्स बम से भारत की हवाई पट्टी को पूरा बर्वाद कर दिया था, तब भुज में 300 से ज्यादा महिलाओं ने 72 घण्टों के भीतर हवाई पट्टी की मरम्मत का कार्य असंभव कार्य को संभव कर दिखया। हवाई पट्टी बनने के बाद भारत के लड़ाकू विमानों ने फिर से उड़ान भरी और आकाशभेदी गर्जना के साथ दुश्मन देश भयाक्रांत हो उठा। इस प्रकार भारत की सीमाओं को सुरक्षित बनाने में महिलाओं का यह योगदान इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया। युद्व समाप्ति के तीन माह बाद भारत की प्रधानमंत्री इन्दिरा गॉधी उन महिलाओं से मिलने पहुंची और उन्हे उपहार देने की घोषणा की। जिसे वीरांगनाओं ने राष्ट्रभक्ति दर्शाते हुए उपहार लेने से इनकार कर दिया।
अपने प्रतिनिधित्व से यूं बढ़ा रहीं भारत का गौरव
देश में महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में अपना योगदान निभाते हुए लगातार भारत को गौवान्वित कर रही हैं। पूर्व प्रधानमंत्री इन्दिरा गांधी, वर्तमान में हमारी वित मंत्री निर्मला सीतारमण, देश के सबसे बड़े सूबे यूपी की राज्यपाल अनन्दी बेन पटेल, डब्लू.एच.ओ. की चीफ साइन्टिस्ट सौम्या स्वामीनाथन और देश के कई सूबों में कई महिला नेत्री महिलाओं का प्रतिनिधित्व कर भारत को गौरवान्तिव करने का काम कर रही हैं। वहीं किरण बेदी, पीटी उषा, कल्पना चावला जैसी तमाम महिलाओं ने यह साबित किया है कि वे किसी से कम नहीं हैं। आज भारतीय नारी हर क्षेत्र में आगे बढ़ने के प्रयास में कार्यरत है, किन्तु अभी भी कहीं न कहीं हमारे समाज की सोच महिलाओं की प्रगति में बाधक है। हालांकि इसमें अब सुधार दिख रहा है, मगर यह नाकाफी है। इसमें लगातार सुधार की जरूरत है। वर्तमान भारत सरकार ‘बेटी बचाओं, बेटी पढ़ाओं’ के नारों के साथ महिला सशक्तिकरण के लिए दृण संकल्पित है।
ये आंकड़े करते हैं शर्मसार, पाना होगा इन समस्याओं से पार
आधुनिक भारत में महिलाओं को विशेष दिन जैसे रक्षा बन्धन, भैया दूज, नव दुर्गा पूजा, महिला दिवस जैसे पर्वो और विशेष अवसरों पर महिलाओं को सम्मान देने और पूज्य समझा जाता है। मगर अन्य दिनों में उनके साथ छेड़छाड़, बलात्कार, यौन उत्पीड़न, लैंगिक पक्षपात जैसे घटनाएं हमे शर्मसार भी करती है। आंकडों की माने तो वर्ष 2021 में यूपी में 2289 एफआईआर हुई यह आंकड़ा वह है जो लिखित में है। इसके अलावा तमाम ऐसी घटनाएं पारिवारिक और सामाजिक दबाव के डर से दबा देती हैं। प्रदेश की सरकार ने महिलाओं के लिए 1090 और महिला प्रकोष्ठ जैसी सुविधाएं उपलब्ध करायी हैं। बावजूद इसके ज्यादातर शिकायतें दर्ज ही नहीं हो पाती हैं। साल दर साल बढ़ते ये आंकड़े जहां एक ओर हमें शर्मसार करते हैं, वहीं सरकार के लिए चिन्ता का सबब बना हुआ है। जल्द ही इन समस्याओं से निजाद पाकर ही इन आंकड़ों पर अंकुश लगाया जा सकता है। और तभी सही मायनों में भारत में महिला सशक्तिकरण का स्वप्न असल रूप में साकार हो पायेगा।
अंकित श्रीवास्तव
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