इतिहास के पन्नों से: (1945-46): “लालकिले से आई आवाज़, सहगल-ढिल्लन-शाहनवाज़”-हिंदु-सिख-मुस्लिम भाईचारे की एक शानदार मिसाल

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5 फरवरी 2022। दूसरे विश्व युद्ध (1939-1944) के बाद अंग्रेजों ने नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की आजाद हिन्द फौज के 23000 सैनिकों को क़ैद में लिया ओर उन पर अंग्रेजी साम्राज्य के विरुद्ध बगावत का मुकदमा चलाया। आजाद हिंद फौज मे सभी धर्मों को मानने वाले थे। नेता जी सुभाष चन्द्र बोस धार्मिक नफ़रत के विरुद्ध थे और कौमी भाईचारे को प्राथमिकता देते थे। अंग्रेजों ने मुकदमा चलाने की कार्यवाही का स्थान दिल्ली स्थित लालकिले को चुना। अंग्रेजी शासन के विरुद्ध 1857 मे जो आजादी का पहला स्वतंत्रता स॔ग्राम हुआ था उसका नेतृत्व मुगल बादशाह बहादुर शाह जफर ने लालकिले से किया था। इस संग्राम में सभी धर्मों के लोग शामिल थे। बहादुर शाह जफर पर भी मुकदमा लालकिले मे चलाया गया था। इस संग्राम मे हजारों हिंदु, सिख, मुस्लिम विद्रोही सैनिकों ने आजादी के लिए जान की कुर्बानी दी थी।
आजाद हिंद फौज मे व्याप्त कौमी भाईचारे को देख कर अंग्रेज घबराये हुए थे। इस भाईचारे की तरंगें पूरे देश मे लहरा रहीं थीं तथा अंग्रेजी सेना मे विद्रोह के आसार नजर आने लगे थे। इस भाईचारे पर प्रहार करने के लिये सबसे पहले अंग्रेजों ने मुकदमा चलाने की कार्यवाही के हेतु आजाद हिंद फौज के तीन प्रमुख कंमांडरो को चुना – एक हिन्दू, एक सिख, एक मुसलमान, जो थे कर्नेल प्रेम सहगल, कर्नेल गुरबख्श सिंह ढिल्लन और मेजर जनरल शाह नवाज़ खान। मुकदमा शुरू होने वाला था, पूरे देश राष्ट्र भावना से प्रेरित था और सभी की आंखें लालकिले की तरफ थी। जिस काले कोट को नेहरू जी 25 वर्ष पहले असहयोग आन्दोलन में तिलांजली दे चुके थे उसको पहन कर जब वे अदालत में इन तीनों के बचाव पक्ष की तरफ से पेश हुए तो पूरा देश आपसी सदभावना से ओतप्रोत हो गया , कांग्रेस ने आजाद हिंद फौज बचाव कमेटी बनाई और नेहरू जी समेत नामी गिरामी वकीलों की टीम बनी । मुख्य बहस की बागडोर भुलाभाई देसाई ने संभाली।देश के हर शहर मे आजाद हिंद फौज के समर्थन में सभायें होने लगीं व जलूस निकलने लगे। मुहम्मद अली जिन्ना भी नामी वकील थे। उन्होंने शाहनवाज खान को संदेश भेजा कि अगर शाहनवाज अपने को बाकी दोनों अभियुक्तों से अलग करलें तो जिन्ना उसके बचाव मे अदालत मे पेश हो जायेंगे। शाहनवाज ने जिन्ना के इस प्रस्ताव को यह कहते हुए ठुकरा दिया: ” हम आजादी की लड़ाई में कंधे से कन्धा मिला कर लड़े है। हमारे नेत्रत्व से प्रेरित होकर हमारे अनेको साथियों ने युद्ध के मैदान मे अपनी जान न्योछावर कर दी है। हम खड़े होंगे तो एक साथ और और गिरेंगे तो एक साथ।” कौमी सद्भाव को तोड़ने का यह प्रयास विफल हो गया। देश की गलियों मे यह नारा जोर शोर से गूंजने लगा:
लाल किले से आई आवाज़,
सहगल, ढिल्लन, शाहनवाज़।
आइये, संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों के हेतु व सामाजिक एकता और सुदृढ़ता के लिए हम सब मिलकर सांप्रदायिक भाईचारे को तोड़ने के हर प्रयास
को विफल करें।
एन डी पंचोली

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