नई दिल्ली। आतंक को पालने-पोसने वाले पाकिस्तान को सबक सीखाने के लिए भारत सरकार कई जरूरी कदम उठा रहे है। भारत ने सिंधु, सतलज और ब्यास नदियों का पानी अपने उपयोग तक सीमित करने की रणनीति बनाई है। इसके तहत रावी-ब्यास को सतलज से जोड़कर जल भारत में रोका जाएगा। नहरों और सुरंगों से यमुना से जोड़कर राजस्थान-हरियाणा तक पानी पहुंचाया जाएगा। भारत ने पाकिस्तान पर जल प्रहार की लंबी रणनीति तैयार की है। सिंधु जल समझौता स्थगित करने के बाद भारत की तैयारी अब पाकिस्तान को बूंद-बूंद पानी के लिए तरसाने की है। इसके तहत सिंधु, सतलज और ब्यास नदियों के पानी का उपयोग अपने भूभाग तक सीमित रखने की योजना बनाई गई है।
दो सौ किमी लंबी नहर बनेगी
सिंधु नदी को रावी-ब्यास नदियों से जोड़ते हुए सतलज के जरिए पंजाब के हरिके बैराज तक पानी लाया जाएगा। करीब 200 किमी की नहर परियोजना में 12 बड़ी सुरंगें बनाने और इसके जरिए हासिल पानी को इंदिरा गांधी नहर और राजस्थान की गंगा नहर सहित कुछ अन्य नहरों से जोड़ते हुए यमुना नदी से मिलाने की है।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार विस्तारित योजना में इन नदियों की धारा को यमुना से जोड़ा जाएगा। इसके शुरुआती चरण में पंजाब के सरहिंद फीडर, हरियाणा में राजस्थान फीडर के साथ इंदिरा गांधी नहर के साथ गंगा नहर की क्षमता बढ़ाने, गाद निकालने और लीकेज रोकने का काम पूरा किया जा रहा है। परियोजना को पूरा होने में दो से तीन साल का समय लगेगा। इससे यमुना को भी नया जीवन मिलेगा।
चार बार गुहार लगा चुका पाकिस्तान
पाकिस्तान सिंधु जल संधि बहाल करने के लिए भारत के सामने एक बार फिर गिड़गिड़ाया है। उसने संधि बहाल करने के लिए भारत को चौथा पत्र लिखा है। भारत ने पहले ही साफ कर दिया है व्यापार व आतंक साथ नहीं चलेगा। भारत ने पाकिस्तान पर संधि की शर्तों का उल्लंघन करने का आरोप लगाया है।
पानी को डायवर्ट किया जाएगा
सिंधु नदी के पानी को डायवर्ट कर रावी और ब्यास नदियों को जोड़ते हुए सतलज नदी के जरिए इसे हरिके बैराज तक लाया जाएगा। इसी क्रम में हरिके बैराज के समानांतर करीब 200 किमी की नहर बनेगी। बाद में इन दोनों नहरों को अलग-अलग राजस्थान के गंगा नगर सहित कई अन्य नहरों के साथ यमुना से जोड़ा जाएगा। सिंधु के जल का रुख मोड़ने के लिए 12 सुरंगें बनाई जानी हैं। पूरी कवायद यह है कि इन नदियों के पानी का लाभ जम्मू कश्मीर के बाद पंजाब, हिमाचल, राजस्थान, हरियाणा और अंत में उत्तर प्रदेश को मिलने के बाद बचा हिस्सा गंगा की तरह गंगा सागर में समा जाए।