योगी का हिन्दुत्व मॉडल सफल, सपाा को भुगतना पड़ा कांग्रेस से दूरी का परिणाम, 27 से पहले हताषा में डूबे अखिलेश

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Yogi's Hindutva model successful, SP had to suffer the consequences of distance from Congress, Akhilesh drowned in despair before 27
योगी ने अब अखिलेश को केवल मुस्लिम और यादव बहुल्य दो सीटों पर समेट दिया।

लखनऊ। यूपी विधानसभा की नौ सीटों पर हुए परिणाम का​ जितना विश्लेषण किया जाए, उतना कम है। इसे योगी के हिन्दुत्व मॉडल की जीत बताई जाए, या अखिलेश यादव के आत्मविश्वास की हार। सच बात तो यह है कि लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद अखिलेश यादव समेत पूरी सपा पार्टी इतने आत्मविश्वास में हो गई थी, कि उसने कांग्रेस को एक झटके में किनारे कर दिया, उसी का नतीजा रहा कि जो ​दलित मतदाता कांग्रेस की वजह से सपा से जुड़े थे,वह कुछ ही महिने बाद फिर ​बीजेपी के साथ हो लिए।

अखिलेश यादव ने जो पीडीए नाम का संगठन बनाकर भाजपा को सत्ता से बाहर करने का फार्मूला निकाला था, उसी फार्मूले से बीजेपी के रणनीतिकारों ने उन्हें चारों खाने के चित्त कर दिए। अब उन्हें केवल मुस्लिम और यादव बहुल्य दो सीटों पर समेट दिया।

यहां तीन दशक बाद खिला कमल

सात सीटों पर जीत दर्ज करके बीजेपी 2027 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए एक फार्मूला खोज लिया है और वह सूत्र है हिन्दुत्व का, जिस तरह से बांग्लादेश में मुस्लिमों ने हिंदुओं के साथ अत्याचार किया उसे हथियार बनाकर बीजेपी ने कटेहरी और कुंदरकी सीट पर तीन दशक बाद कमल खिलाने में सफलता हासिल की।

यह जीत बीजेपी को लंबे समय तक संजीवनी देने का काम करेगा, वहीं सपा यह सोचने को मजबूर करेगा, कि उससे ऐसी क्या चूक है जो सीट बीजेपी के लिए तीस साल से दूर की कौड़ी से उसे जीतने में कोई परेशानी नहीं हुई। जहां 65 फीसदी आबादी मुस्लिम बहुल्य है वहां भी बीजेपी ने शानदार जीत दर्ज की। वहीं कटेहरी में भी कुछ ऐसा हुआ,जहां बसपा छोड़कर सपा में आए लालजी वर्मा ने लोकसभा चुनाव में शानदार जीत दर्ज की थी, वहीं विधानसभा उपचुनाव में उनकी पत्नी को ऐसी हार मिली, जो उन्हें सालों तक सताएगी।

एक जुट हो रहा हिन्दू

नौ सीटों पर बसपा को मिले वोट पर नजर डाले तो उसका पतन लगातार जारी है। बसपा की कटेहरी सीट छोड़ दें तो दलित समाज के वोटों के आधार पर राजनीति करने वाले दोनों दलों के वोटों का आंकड़ा बताता है कि दलित मतदाताओं ने जाति के कार्ड की अनदेखी कर हिंदुत्व के एजेंडे पर मतदान किया है। अगर ऐसा न होता तो कुर्मी और मुस्लिम मतदाताओं से प्रभावित इस सीट पर भाजपा के जीतने की राह ही न निकलती।

कांग्रेस ने बनाई रणनीतिक दूरी

इन चुनावों में कांग्रेस ने एक रणनीतिक दूरी बनाई। कांग्रेस खुद को दूर रखकर यह देखना भी चाह रही थी कि बिना गठबंधन के सपा कैसा परफॉर्म करती है। चुनाव परिणामों ने एक बात साफ कर दी है फिलहाल सपा और कांग्रेस दोनों को एक दूसरे की जरूरत है।

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