हरियाणा चुनाव परिणाम ने पंजे को किया काबू में राहुल गांधी का पर कतरने को सहयोगी आतुर

नईदिल्ली। हरियाणा चुनाव कई मायने में देश की राजनीतिक दिशा तय करने वाला साबित होगा। हरियाणा विधानसभा चुनाव के परिणाम की जितनी समीक्षा की जाए वह कम है। इस चुनाव के प्रचार को देखा जाए तो बीजेपी ने पीएम नरेंद्र मोदी के चेहरे के साथ ही अन्य चेहरों को भी बराबर मौका दिया, वहीं कांग्रेस ने केवल राहुल गांधी और प्रियंका गांधी को आगे करके पूरा प्रचार अभियान चलाया। एक बार तो ऐसा लगा कि  राहुल और प्रियंका ने हरियाणा की बाजी पलट दी, लेकिन हुआ इसके अलग।

 Haryana election results have caught the claws of Rahul Gandhi's allies, eager to clip their wings.
हरियाणा में प्रियंका भी भीड़ को वाेट में बदल नहीं पाई।

काम को मिली तरहजीह

हरियाणा में पिछले साढ़े नौ साल तक मनोहर लाल खट्टर की सरकार रही, विपक्ष चाहे जितनी कमियां गिनाकर जनता का ध्यान भटकाने की कोशिश की, लेकिन सफलता नहीं मिली। अब विपक्ष को भी मानना पड़ेगा कि उनके द्वारा उठाए गए मुद्दे जनता को अपनी तरफ आकर्षित नहीं कर पाए। जनता बीजेपी के कार्यों को तरजीह दी। वहीं जो भी कमियां रही, उसे भाजपा ने छह माह पहले मुख्यमंत्री समेत कई चेहरों को बदलकर दूर कर दी।काफी हद तक सत्ता विरोधी लहर को बीजेपी ने अपनी नीतियों खत्म कर दिया।

झूठ फरेब को जनता ने नकारा

पूरे चुनाव प्रचार के दौरान राहुल गांधी हरियाणा से लेकर अमेरिका तक बेरोजगारी, गरीबी, कुशासन जैसे कई मुद्दों काे उछाला, लेकिन जनता के निर्णय को बदल नहीं सकें। यहां तक कि हर प्रचार में राहुल गांधी कांग्रेस की सरकार की भविष्यवाणी करने के साथ ही बीजेपी की बुराइयां करने से पीछे नहीं हट रहे थे। राहुल गांधी लगातार मोदी पर सीधे हमला करते थे।अंबानी के बेटे की शादी से लेकर अडानी तक के व्यापार की बात करके बीजेपी को व्यापारियों और बड़े लोगों की हितैषी दिखाकर आम लोगों से दूर करने की कोशिश , लेकिन राहुल के सारे पत्ते बेकार साबित हुए। वहीं बीजेपी की सधी रणनीति ने कांग्रेस के सपने को न केवल तोड़ा है, बल्कि उसके अति आत्मविश्वास को भी मिट्टी में मिला दिया।
Haryana election results have caught the claws of Rahul Gandhi's allies, eager to clip their wings.
बीजेपी की सधी रणनीति ने कांग्रेस के सपने को न केवल तोड़ा है, बल्कि उसके अति आत्मविश्वास को भी मिट्टी में मिला दिया।

सहयोगियों के बिना कांग्रेस बेकार

हरियाणा विधान सभा चुनाव कांग्रेस ने एकला चलो की राह पर चलते हुए लड़ा था, उसने अपने सहयोगियों को थोड़ी भी तवज्जों नहीं दी, नतीजा यह हुआ कि हार के बाद से ही कांग्रेस के सहयोगी ही उसके पर कतरने वाले तीन चलाने लगे।सबसे पहला बयान शिवसेना ठाकरे गुट की तरफ से प्रियंका चतुर्वेदी का आया कांग्रेस सीधी लड़ाई में कमजोर पड़ जाती है। इसका सीधा मतलब है कि कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में जो भी सफलता मिली वह सहयोगियों के सहारे ही मिली। इसके बाद शरद पवार, डी राजा समेत कई दलों ने कांग्रेस को निशाना साधकर उसे एकला चलो की राह से उतारकर उसके पर कुतरने की कोशिश की। वहीं अरविंद केजरीवाल ने साफ शब्दों में कहा कि हरियाणा चुनाव कांग्रेस अति आत्म विश्वास में हारी, अगर वह सहयोगियों को लेकर साथ चलती तो परिणाम कुछ और निकलता। दरअसल आप कांग्रेस से हाथ मिलाने को इच्छुक थी, लेकिन राज्य स्तर के नेताओं ने ऐसा नहीं होने दिया।
Haryana election results have caught the claws of Rahul Gandhi's allies, eager to clip their wings.
भूपेंद्र सिंह हुड्डा और शैलजा कुमारी खुद को बतौर सीएम प्रोजेक्ट करके चलने लगी।

गुटबाजी ने डुबोई नैया

कांग्रेस इस बार यह मानकर चल रही थी, कि सत्ता विरोधी लहर की वजह से उसे हरियाणा में हर हाल में जीत मिलेगी, इसलिए भूपेंद्र सिंह हुड्डा और शैलजा कुमारी खुद को बतौर सीएम प्रोजेक्ट करके चलने लगी। नतीजा यह हुआ आधे प्रचार के दौरान दोनों एक-दूसरे को देखना पसंद तक नहीं करते थे। हालांकि राहुल गांधी ने दोनों को एक सभा में साथ लाकर मतभेद दूर करने का प्रयास किया लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी।भाजपा ने मुददे को अच्छी तरह से भुनाया की कांग्रेसी सत्ता के लालची है जीत से पहले ही कुर्सी के लड़ाई लड़ रहे है।
Haryana election results have caught the claws of Rahul Gandhi's allies, eager to clip their wings.
कांग्रेसी इतने अति उत्साह में थे कि वह एक घंटे के शुरूआती रूझान को देखते हुए जश्न मनाने लगे।

सुबह का जश्न दोपहर में मायूसी में बदला

कांग्रेसी इतने अति उत्साह में थे कि वह एक घंटे के शुरूआती रूझान को देखते हुए जश्न मनाने लगे। एक दूसरे को जलेबी खिलाकर मुंह मीठा कराने लगे।यहां तक कई कांग्रेस तो टीवी जलेबी दिखाकर बीजेपी वालों पर कमेंट करने लगे। वहीं जब दस बजे पासा पलटा तो एक- एक करके कांग्रेसी जश्न के मैदान से गायब होने लगे। यहां तक कि बड़े नेता मैदान छोड़कर कमरे के अंदर से मतगणना स्थल से परिणामों की जानकारी लेने । इस चुनाव परिणाम ने साबित किया कि न तो अब एग्जिट पोल पर भरोसा करो और न ही शुरूआती रूझान पर जब तक परिणाम न आ जाए तब तक जश्न नहीं मनाओं वरना, जवाब देना भारी पड़ेगा।
                                                                                     साधू सिंह, यह लेखक के अपने विचार

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