भाग्य भरोसे बैठ कर, मत करिए आराम ।
करने से बन जाएँगे, बिगड़े सारे काम ।।
चंचल मन चलता बहुत, माँगे केवल मोद ।
तन करता है चाकरी, मन को लेकर गोद ।।
भूख समय से आ गई, लेकर खाली थाल ।
अहंकार की रोटियां, दे उसमें तू डाल ।।
नित्य, फ़ेसबुक, वॉट्सअप, गूगल, इंस्टाग्राम ।
चौबिस घंटे हो गए, मोबाइल के नाम ।।
परिवर्तन इतना हुआ, होता नहीं यकीन ।
खाना खाने के लिए, चलने लगी मशीन ।
करुणा को मत छोड़िए, करुणा है आधार ।
भावुकता से है भरा, करुणा का संसार ।।
~राम नरेश ‘उज्ज्वल’
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