साहित्य सम्मेलन में सम्मानित हुए आईपीएस अखिलेश निगम, त्रिभाषा योजना की स्वीकार्यता को यूं बताया जरूरी

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हिन्दी साहित्य सम्मेलन 'प्रयाग' का 75वां तीन दिवसीय अमृत महोत्सव राष्ट्रीय अधिवेशन विगत दिनों ओड़िशा केन्द्रीय विश्वविद्यालय,कोरापुट में संपन्न हुआ। 23 जून से 25 जून,2024 तक चले इस भव्य समारोह में सीबीसीआईडी,लखनऊ के डीआईजी डॉ. अखिलेश निगम को हिन्दी साहित्य में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया।

लखनऊ। हिन्दी साहित्य सम्मेलन ‘प्रयाग’ का 75वां तीन दिवसीय अमृत महोत्सव राष्ट्रीय अधिवेशन विगत दिनों ओड़िशा केन्द्रीय विश्वविद्यालय,कोरापुट में संपन्न हुआ। 23 जून से 25 जून,2024 तक चले इस भव्य समारोह में सीबीसीआईडी,लखनऊ के डीआईजी डॉ. अखिलेश निगम को हिन्दी साहित्य में उनके योगदान के लिए सम्मानित किया गया। सम्मेलन के समापन समारोह में आईपीएस अखिलेश निगम ‘अखिल’ सहित 13 अन्य हिन्दी अनुरागियों को सम्मेलन सम्मान एवं तीन को साहित्य वाचस्पति सम्मान से नवाजा गया।

‘हिन्दी भाषा: संक्रमण काल एवं भविष्य’ का लोकार्पण

वहीं कार्यक्रम में अखिलेश निगम ‘अखिल’ की नवीन साहित्यिक निबंध कृति ‘हिन्दी भाषा: संक्रमण काल एवं भविष्य’ का भव्य लोकार्पण भी हुआ। आयोजन के क्रम में राष्ट्रभाषा परिसंवाद के अन्तर्गत ‘एक देश:एक राष्ट्रभाषा’ विषय पर अपने विचार रखते हुए अखिलेश निगम ने कहा कि आज की सबसे बड़ी जरूरत भारतीय भाषाओं में एकता स्थापित करने की है, जिसके लिए त्रिभाषा योजना को स्वीकार्यता देने पड़ेगी।

उन्होंने कहा कि इसके लिए देश के प्रत्येक प्रान्त में ऐसी शिक्षा नीति बनानी आवश्यक है जिसमें प्रत्येक छात्र को हिन्दी के साथ—साथ कम से कम एक प्रान्तीय भाषा सीखना अनिवार्य किया जाए। उन्होंने कहा कि इसके लिए गैर हिन्दी प्रान्त में वहां के अनुरूप हिन्दी भाषा कार्यशाला तथा हिन्दी राज्यों में विभिन्न भाषा प्रशिक्षण के लिए कार्यशालाएं खोली जाएं।

साहित्य सम्मेलन में विभिन्न मुद्दों पर यूं हुआ मंथन

उन्होंने बताया कि इससे जहां एक ओर भारतीय भाषाओं में एकता स्थापित होगी तो वहीं दूसरी ओर व्यापक स्तर पर रोजगार सृजन होगा। इसके परिणाम स्वरूप निकट भविष्य में हिन्दी राष्ट्रभाषा के पद पर स्वमेव आसीन होगी। तीन दिनों तक चले इस कार्यक्रम में विभिन्न विषयों पर अनेक सत्रों का आयोजन किया गया।

जिसमें साहित्य परिषद, परिसंवाद के अन्तर्गत भारतीय ज्ञान परम्परा और हिन्दी एवं राष्ट्रभाषा तथा समाजशास्त्र परिसंवाद के अन्तर्गत राष्ट्रीय शिक्षा नीति: भविष्य का समाज समेत अन्य मुद्दों पर मंथन किया गया। कार्यक्रम में देश भर के जाने—माने हिन्दी साहित्यकारों, भाषाविदों एवं शिक्षाविदों ने हिस्सा लिया।

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