बाल कविता: धूप बनी तलवार…

गर्मी से पशु पक्षी व्याकुल, व्याकुल है संसार ।
काट रही है अंग-अंग को, धूप बनी तलवार ।

डंक मारती किरण सूर्य की, खौल रहा है नीर
मौन खड़े हैं वृक्ष यहाँ के, चलता नहीं समीर
बाघ माँद में अपनी दुबका, दुबके शेर सियार।
काट रही है अंग-अंग को, धूप बनी तलवार ।।

हाँफ रही बैलों की जोड़ी, हाँफ रहे हैं खेत
हाँफ रही है धरती माता, पूरे गाँव समेत
आसमान से अग्निबाण की होती है बौछार।
काट रही है अंग-अंग को, धूप बनी तलवार ।।

जंगल झाड़ी में छुप जाते, ऊद बिलाऊ मोर
तितली भौरा मच्छर मक्खी, नहीं मचाते शोर
धनुष बाण ले गर्मी निकली करने आज शिकार।
काट रही है अंग-अंग को, धूप बनी तलवार ।।

नींबू शक्कर पानी लेकर आया गोलू पास
दही छाछ लस्सी पी सबने ली राहत की साँस
मिली कलेजे को ठंडक जब, गर्मी हुई फरार ।
काट रही है अंग-अंग को, धूप बनी तलवार ।।
____
~राम नरेश ‘उज्ज्वल’
उज्ज्वल सदन
मुंशी खेड़ा,(अपोजिट एस-169
ट्रांसपोर्ट नगर), एल.डी.ए. कालोनी,
लखनऊ-226012
मो: 07071793707
ईमेल : ujjwal226009@gmail.com’

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