~राम नरेश ‘उज्ज्वल’
रास्ते और भी हैं..
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दृश्य-एक
(एक युवक सो रहा है और एक बूढ़े का प्रवेश होता है। )
बाप : अबे उठ , नालायक की औलाद । कायर कहीं का। देख, सुबह के आठ बज रहे हैं । अभी तक सो रहा है ।
सोहन : ( आँखें मसलता हुआ ) ओफ्फो पापा ! तुम तो और आफत मचाए हो । सोने भी नहीं देते।
बाप : अबे सोहन के बच्चे उठता है, कि दूँ एक..( दाँत किटकिटा कर मारने के लिए हाथ उठाता है । उसी समय एक बूढ़ी औरत का प्रवेश होता है ।)
माँ : क्या बात है ? आज सवेरे-सवेरे ही पीछे पड़ गए ।
सोहन : हाँ मम्मी, समझाओ इन्हें ।
बाप : ( ताव में ) क्या समझाएँ नवाबजादे । उठता है कि..( चाँटा मारता है। )
सोहन : आह… मर गए रे । (युवक गाल पकड़ता है ।)
माँ : (युवक के पास आकर) अरे बेटा तुझे कितना समझाती हूंँ । सुबह उठ जाया कर । कुछ नहीं तो घर के ही काम-काज करवा लिया कर। इतना भी आलस ठीक नहीं । कायरता बुजदिली की निशानी है ।
बाप : अरे यह क्या उठेगा ? लाट साहब हैं लाट साहब । पड़े-पड़े खाने को मिलता है तो चर्बी चढ़ गई है । मजदूरी करनी पड़ जाए, तो होश ठिकाने लग जाएँगे ।
माँ : (बूढ़े आदमी से ) क्यों करे मजदूरी । आखिर कमी ही क्या है हमारे पास ?
बाप : (झल्ला कर ) किसी चीज की कमी नहीं है न । इसीलिए निकम्मा हो गया है। बच्चू किसी झोपड़-पट्टी में जन्म लेते, तो पता चलता। अरे ऐसे निखट्टू बेटे से तो अच्छा था, कि बेटा होता ही नहीं।
सोहन : (खीझते हुए ) निकम्मा, निखट्टू , नालायक, मैं तो ऊब गया हूंँ सुनते-सुनते । ऐसे जीवन से तो अच्छा है कि मैं मर जाऊँ।
बाप : अबे बेवकूफ मरना इतना आसान नहीं है । इसके लिए बहुत बड़ा कलेजा चाहिए । मरना तेरे बस की बात नहीं । इस तरह की धमकियाँ तो तू हजारों बार दे चुका है। लेकिन एक बार भी नहीं मरा। कमबख्त कहीं का ।
सोहन : तुम लोग मुझे बुजदिल समझते हो । आज तो मैं मर कर ही दिखा दूँगा । अब चाहे जो हो जाए । (युवक चला जाता है ।)
माँ : (दौड़ कर ) बेटा.. बेटा.. सुन तो । क्या किया आपने? जवान बेटे से कहीं ऐसे बात की जाती है। कहीं कुछ कर- करा लिया तो फिर….!
बाप : (चारपाई पर बैठते हुए ) अरे तू नहीं जानती । ये तो इसकी रोज की नौटंकी है । ये धमकियाँ इसलिए देता है, ताकि मैं इसे कुछ ना कहूँ। लेकिन बच्चू जानते नहीं हैं, कि मैं भी इनका बाप हूंँ। रग-रग से वाकिफ हूंँ।
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दृश्य-दो
(दो युवक)
रमेश : क्या बात है सोहन ? तुम बड़े परेशान लग रहे हो। आज फिर झगड़ा करके आ रहे हो क्या ?
सोहन : झगड़ा करके नहीं, आज तो मैं फैसला करके ही आ रहा हूंँ।
रमेश : (आश्चर्य से) कैसा फ़ैसला सोहन ?
सोहन : मैं रोज-रोज की हाय-हाय, किच-किच से ऊब चुका हूंँ। अब मैं मर जाऊँगा। जीवन बोझ हो गया है।
रमेश : (बड़ी तेज हँसता है) क्या ?…तू मरेगा । (फिर ठहाका लगता है) भला तू मरेगा ?
सोहन : (खिसिया कर) हँस लो, हँस लो, तुम भी हँस लो। खूब उड़ा लो मेरा मज़ाक।
रमेश : अरे यार तू बात ही ऐसी कर रहा है। मरना कोई बच्चों का खेल थोड़े न है। इसके लिए बहुत बड़ा दिल चाहिए।
सोहन : तो तू भी रमेश, मुझे बुजदिल और कमजोर समझता है। मैं तुझे दिखा दूँगा कि मैं कायर नहीं हूंँ । बोल
तू मेरी मदद करेगा ? देख तू मेरा सच्चा दोस्त है।
रमेश : कैसी मदद ?
सोहन : (उसका हाथ पकड़ कर) पहले तू हाँ या ना कर।
रमेश : अच्छा बाबा हाँ । अब बता कैसी मदद चाहिए ?
सोहन : देख यार, मैं अपने आप को बहादुर साबित करना चाहता हूंँ। तू कोई मरने का अच्छा-सा तरीका बता दे।
रमेश : बस इतनी सी बात। चल मेरे साथ।(उसका हाथ पकड़ कर जाता है।)
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दृश्य-तीन
(रेल की पटरी के पास दोनों युवक खड़े हैं )
रमेश : सोहन ये रेल की पटरी ठीक रहेगी तेरे मरने के लिए । सिग्नल भी डाउन है तू लेट जा।
सोहन : हाँ रमेश यह जगह सही है , यहाँ कोई आता जाता भी नहीं।
रमेश : हाँ अब तो लेट जा।
सोहन : (लेट कर) ऐसे।
रमेश : (उसे सिधारते हुए) ऐसे नहीं। इस पटरी पर गर्दन रखो और पाँव पटरी के अंदर ही रखो । (सोहन अपने आप को ठीक करता है) हाँ अब ठीक है । थोड़ी देर में गाड़ी आएगी। तू मर जाएगा । मैं दौड़कर तेरे मम्मी-पापा को बता आऊँगा ।
सोहन : तू इसकी चिंता मत कर । (दूर से रेल की सीटी की आवाज आती है।)
सोहन : अच्छा यार रमेश ये बताओ, मैं मरुँगा कैसे ?
रमेश : सीधी सी बात है। रेल आएगी, तेरे शरीर के चीथड़े उड़ जाएँगे । छोटे-छोटे माँस के टुकड़े इधर-उधर बिखर जाएँगे । चारों तरफ खून ही खून फैल जाएगा । तू डरना मत, आँखें मूँदे पड़े रहना और …..(सीटी की आवाज पास आती है।) सोहन आँखें बंद किए रहना । रेल बिल्कुल पास आ गई है। अब तेरा काम हो जाएगा।( रेल धड़धडाती हुई गुजरती है।) सोहन उठकर अलग खड़ा हो जाता है । वह हाँफता है) अरे सोहन तू तो बड़ा मूर्ख निकला । उठकर भाग क्यों आया ? अगर एक मिनट और रुक जाता, तो अब तक मर जाता ।
सोहन : (परेशान सा) नहीं यार , मैं ऐसे नहीं मरुँगा । मेरी लाश के चिथड़े उड़ जाते । मैं तो किसी काम का ही नहीं रहता। मेरे मम्मी-पापा मुझे पहचान भी नहीं पाते । वे मेरी लाश के टुकड़े बटोरते-बटोरते थक कर परेशान हो जाते । इस तरह की मौत बहुत खराब है।
रमेश : अरे तुझको इससे क्या मतलब ! फालतू में तूने मेरी मेहनत पर पानी फेर दिया।
सोहन : अच्छा रमेश, अब कोई दूसरा रास्ता बता । मैंने पक्का सोच लिया है। अबकी तू जैसे बताएगा, मैं मर जाऊँगा।
रमेश : अच्छा चल बताता हूँ। (दोनों चले जाते हैं।)
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दृश्य-चार
(एक कुएँ के पास दोनों युवक)
रमेश : देखो सोहन, ये कुआँ बहुत अच्छा है। जंगली इलाका है । कोई देखेगा भी नहीं । तेरे माँ बाप को तेरी लाश भी सही सलामत मिल जाएगी । अब तू छलांग लगा दे ।
सोहन : अच्छा यार रमेश, कोई परेशानी तो नहीं होगी।
रमेश : ज्यादा नहीं, बस थोड़ी बहुत होगी।
सोहन : ( आश्चर्य से )जैसे ?
रमेश : यहाँ से झाँक ।( कुएँ में झाँकता है) कम से कम यह चालीस फुट गहरा है । कुछ नहीं तो दस फुट पानी की गहराई होगी । कुआँ थोड़ा संकरा है । इसलिए ..(सोच कर) इधर-उधर, इधर-उधर, हाँ..कम से कम पच्चीस-तीस बार तू इसकी दीवारों से टकराएगा। सिर फट जाएगा । खून की धारा फूट पड़ेगी । हो सकता है कि रास्ते में ही मर जाओ। अगर साँस बाकी रह गई, तो पानी में डूबने से साँस फूलने लगेगी । तुझे तो तैरना भी नहीं आता । पानी के अंदर दम घुट जाएगा। तू मर जाएगा । हम लोगों को लाश निकलवाने में थोड़ी परेशानी जरूर होगी । लेकिन तू बेफिक्र होकर कूद जा । इसकी चिंता ना कर … एक… दो… तीन… तू कूदा क्यों नहीं ? अब क्या हुआ ?
सोहन : यार मैं इतनी छीछालेदर के साथ नहीं मरना चाहता । कोई ऐसा रास्ता बताओ कि खून खच्चर ना हो।
रमेश : ( थोड़ा झल्ला कर) मुझे लगता है तू मेरा आज का पूरा दिन खराब करेगा। अबकी अगर तू ना मरा तो मैं तुझे अकेला छोड़ कर चला जाऊँगा । …आ मेरे साथ । (दोनों चले जाते हैं।)
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दृश्य-पांच
(दोनों युवकों का प्रवेश)
रमेश : हाँ, तू मेरे आँगन में बैठ । मैं मिट्टी का तेल लाता हूंँ । (रमेश जाता है और थोड़ी देर में लौट आता है ) ये देख (डिब्बा दिखाते हुए,) तेरे जलने के लिए काफी है । ऐ.. ये… और….( तेल उसके ऊपर डालता है) ये भीगा पाँव..और अब पूरा शरीर भीग गया है। अब मैं आग लगाता हूंँ । तू चुपचाप बैठे रहना । मैं तेरे साथ हूंँ घबराना नहीं । तू जरूर मरेगा । अब माचिस जलाता हूंँ । (तीली जलाकर) तीली फेंकू तेरे ऊपर।
सोहन : नहीं यार , रुक जा कुछ देर ।
रमेश : ठीक है थोड़ी देर और जी ले ।
सोहन : (बच्चों की तरह उत्सुकता से ) इसके बारे में भी कुछ बता। मैं कैसे मरुँगा ?
रमेश : क्या बताऊँ यार ? जब तू जलेगा तो थोड़ा बहुत कष्ट तो होगा ही लेकिन खून खच्चर से बच जाएगा। शरीर पर बड़े-बड़े फफोले पड़ जाएँगे। जैसे एक बार मेरे हाथों में पड़े थे और एक हफ्ते में ठीक हुआ था।
सोहन : (मुँह बना कर ) अमा यार, उसे देखकर तो बड़ा घिन लगता था । मैं तो इतनी घिनौनी मौत नहीं मरुँगा । तू कोई दूसरा रास्ता बता।
रमेश : तू फालतू में परेशान कर रहा है। अब मैं आग लगा ही दूँगा।( वह तीली जलाने लगता है।)
सोहन : (घबरा कर खड़ा होता है।) नहीं यार ऐसा मत करना। मैं जल जाऊँगा। तुझे मेरी कसम..!
रमेश 🙁 सिर पर हाथ रखकर ) ओफ्फो तूने तो परेशान कर दिया है।
सोहन : रमेश तू मेरा पक्का दोस्त है। कुछ ऐसा कर कि मेरा शरीर सही सलामत रहे और मैं मर भी जाऊँ।
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दृश्य-छ:
(दोनों युवक बैठे हैं। एक के हाथ में जहर की शीशी है ।)
रमेश : ये ले जहर की शीशी। इसे आँख बंद करके पी जा। अगर अबकी नौटंकी की, तो मैं तेरा साथ नहीं दूँगा।
सोहन : ठीक है दोस्त तुझको आखरी सलाम । (वह जहर पी जाता है।) दोस्त अब तो मैंने जहर पी लिया ।तुझको बहुत-बहुत धन्यवाद। तू मेरे मम्मी-पापा को बता देना कि उनका बेटा कायर नहीं, बहादुर था। अब वे मुझे सीना तान कर अपना बेटा कह सकते हैं । अच्छा दोस्त,अब मैं किस तरह मरुँगा, जरा इसके बारे में भी कुछ बता दे।
रमेश : (उदास होकर) सोहन मेरे यार, मेरे दोस्त, तू तो अब कुछ देर का ही मेहमान है । अभी तेरे ऊपर धीरे-धीरे जहर का असर होगा। तेरा शरीर शून्य हो जाएगा । तू गिर पड़ेगा। मौत की सुई पल-पल आगे बढ़ती जाएगी। तेरी साँसे रुकने लगेंगी । तू अंदर ही अंदर तड़पने लगेगा। तू बोलना चाहेगा, पर बोलती बंद हो जाएगी। आँखों के आगे अँधेरा छा जाएगा। तुझे सब कुछ धुँधला- धुँधला दिखेगा ।तू आँखें फैलाएगा, पर आँखें नहीं खुलेंगी। तू अंदर ही अंदर छटपटाता रहेगा । तू अगर जीना भी चाहेगा, तो भी बच नहीं पाएगा । धीरे-धीरे…एक-एक पल.. तू मुर्दा होता जाएगा। अब क्या बताऊँ दोस्त, कुछ बताया नहीं जाता।
सोहन : अच्छा रमेश मुझे संभाल कर चारपाई पर लिटा दे। मैं जमीन पर मरना नहीं चाहता।
रमेश : आ । (रमेश उसे चारपाई पर लिटाता है।)
सोहन : (करुण स्वर में ) दोस्त मरने के बाद क्या होगा ? यह भी तो बता दें, ताकि मन में कोई शंका ना रहे।
रमेश : फिर क्या बताऊँ यार ? बड़ी कष्टदायक बात है, तू सुन नहीं पाएगा ।
सोहन : बता तो मेरे यार, मौत से ज्यादा कष्टदायक भला क्या होगा ?
रमेश : नहीं मानते हो, तो सुनो । मरने के बाद पुलिस आएगी छान-बीन करेगी । दो-चार डंडे मुझे भी मारेगी और सारा हाल उगलवा लेगी । फिर तेरे माँ-बाप को जेल जाना पड़ेगा। फाँसी भी हो सकती है।
सोहन : क्या ? मेरी करनी की सजा मेरे माँ-बाप को मिलेगी। नहीं-नहीं ऐसा नहीं होगा।
रमेश : ऐसा ही होगा, क्योंकि तू उन्हीं के तानों से परेशान होकर अपनी जिंदगी…..!
सोहन : नहीं रमेश, मेरे मम्मी-पापा बहुत अच्छे हैं। मैं उन्हें कष्ट नहीं देना चाहता हूँ। त। तू कुछ कर । मुझे बचा ले।
रमेश : अब कुछ नहीं हो सकता मेरे दोस्त।
सोहन : रमेश मुझे यह क्या हो रहा है ? मेरी साँसें उखड़ रही हैं ?
रमेश : जहर ने अपना काम शुरू कर दिया । अब मरने के सिवा कोई चारा नहीं।
सोहन : (उठने की कोशिश करता है और उठ कर गिर जाता है ।) मैं जीना चाहता हूंँ । मुझे बचा लो । मैं किसी से बिछड़ना नहीं चाहता । मेरा शरीर सुन्न हो रहा है । (इधर-उधर हाथ मारता है।) आँखों की रोशनी भी कम हो रही है । लगता है यमराज आ गए हैं।
रमेश : (उसका हाथ पकड़ कर ) घबरा मत मेरे दोस्त । थोड़ी देर में सब ठीक हो जाएगा । तुझे सारे कष्टों से मुक्ति मिल जाएगी । स्वर्ग में कोई काम-धाम भी नहीं होगा । ऐश करना नवाबों की तरह । अब तू माया-मोह के चक्कर में मत पड़ । धरती पर बहुत संघर्ष है । बहुत दुख है ।
सोहन : मैं सारे दुख, सारी परेशानियाँ झेलूँगा । मैं मुसीबतों से घबराऊँगा नहीं ….. ओह.. मैं लडूंगा.. मैं जिऊँगा रमेश। कुछ कर । ( हाँफते हुए ) पानी-पानी। मेरा गला सूख रहा है। मेरी जुबान ऐंठ रही है।( रमेश पानी देता है।) आह, अब तो बोला भी नहीं जाता।( वह अपना सीना कसकर पकड़ता है।) बहुत दर्द हो रहा है यार। मेरे पिछले कर्म और घटनाएँ आँखों के सामने घूम रहे हैं । सच, मैंने जीवन में कुछ नहीं किया । हमेशा सबको कष्ट दिया। काश ये जीवन फिर से मिल जाता । मैं सबको खुश कर देता । खूब दिल लगाकर काम करता। किसी को शिकायत का मौका ना देता।( एकदम से रमेश को झिंझोड़ते हुए) कुछ कर मेरे दोस्त, मेरा जीवन बचा ले।
रमेश : अब तो चंद सेकेंड बचे हैं । कुछ नहीं हो सकता।
सोहन : तू तो मेरा सच्चा दोस्त है । इस दफा बचा ले । आखिरी बार मदद कर दे बस।
रमेश : तू जीना चाहता है ना !
सोहन : हाँ !
रमेश : पर सॉरी यार, अब कुछ नहीं हो सकता।
सोहन : प्लीज, (हाथ जोड़ता है ) मैं मरना नहीं चाहता।
रमेश : तू मरना नहीं चाहता ?
सोहन : हाँ ।
रमेश : तो चल उठ और जा अपने घर।
सोहन : जहर का असर हो चुका है । मुझसे उठा भी नहीं जाता । सारी ताकत खत्म हो गई है। यमराज सामने खड़ा है। अब नहीं बचूँगा । तूने मेरे साथ गद्दारी की । दोस्त होकर समझाने की बजाय जहर पिला दिया। ( आँखों से आँसू बहते हैं।)
रमेश : चुपचाप उठ । (हाथ पकड़कर खींचते हुए।) मैंने तुझे जहर नहीं, पानी पिलाया था ।
सोहन : (आश्चर्य से) क्या ?..
रमेश : हाँ
सोहन : तू बड़ा धोखेबाज है रे । (उसके गले लग जाता है।)
रमेश :अच्छा-अच्छा। ( हँसते हुए ) अब अपने घर जा सब इंतजार कर रहे होंगे। जिंदगी की कठिनाइयों से भागना ठीक नहीं है । मरने के सिवा रास्ते और भी हैं ।
सोहन : हाँ दोस्त, तूने सच कहा, रास्ते और भी हैं ।
(दोनों युवक चल पड़ते हैं और पर्दा गिर जाता है।)
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