अमेठी की हार के बाद जनता से नजर नहीं मिला पा रहे थे राहुल, इसलिए छोड़ा मैदान

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After the defeat of Amethi, Rahul was not able to meet the public's eye, hence he left the field.
ऐसे में हर कोई अंदाजा लगा सकता है कि राहुल के मन में किस चीज का डर सता रहा था।

अमेठी। कांग्रेस के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को भाजपा नेता स्मृति इरानी ने 2019 के चुनाव में ऐसी पटखनी दी थी, जिसे आज तक वह भूला नहीं पाए। इसके बाद दोबारा अमेठी से रिश्ता जोड़ने की कोशिश तक नहीं की। अब किस आधार से फिर कार्यकर्ता जनता के बीच जाकर उनके लिए वोट मांगते। ऐसे में संभावित हार को देखते हुए राहुल गांधी ने मैदान छोड़ना ही उचित समझा।

नामांकन के आखिरी दिन टिकट के एलान के बाद हर कोई ऐसा कयास लगा रहा है। इसके साथ वरिष्ठ नेताओं के अमेठी से रिश्ता तोड़ने के बाद संगठन मृत प्राय हो चुका है। ऐसे में जहां स्मृति इरानी ने यहां अपना घर बनाकर लोगों के हर दुख- सुख में शामिल हो रही है, वहीं राहुल गाधी यहां से दूरी बना ली, ऐसे में हर कोई अंदाजा लगा सकता है कि राहुल के मन में किस चीज का डर सता रहा था।

कांग्रेस कार्यकर्ता सकते में

राहुल गांधी के रायबरेली और अमेठी से किशोरी लाल शर्मा के नामांकन के बाद कार्यकर्ता तक सकते में हैं। हर जगह यहीं मुददा छाया हुआ है। हर कोई अपने अपने तरीके से इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश कर रहा है। वैसे गांधी नेहरू परिवार की सियासत पर निगाह डालें तो यह निर्णय बहुत अप्रत्याशित नहीं लगता। रायबरेली और अमेठी में गांधी नेहरू परिवार की पकड़ के लिहाज से देखें तो रायबरेली का पलड़ा हमेशा भारी रहा। पिछले चुनावों के नतीजों से लेकर जीत की लीड तक के आंकड़े इसे तस्दीक करते हैं। जाहिर तौर पर अमेठी की तुलना में रायबरेली गांधी परिवार के लिए कहीं अधिक सुरक्षित व मुफीद है।

प्रचार के लिए प्रियंका मुक्त रखना

अमेठी से प्रियंका गांधी के मैदान में नहीं उतरने की बात है तो इसके पीछे भी कांग्रेस रणनीति नजर आती है। प्रियंका के चुनाव लड़ने से उन्हें अमेठी में कहीं अधिक समय देना पड़ता। विपक्ष की व्यूह रचना में भाई-बहन रायबरेली और अमेठी में फंसकर रह जाते। वर्तमान सियासी परिदृश्य में प्रियंका गांधी रायबरेली के साथ ही अमेठी में भरपूर समय दे सकेंगी जबकि राहुल गांधी देश के अन्य क्षेत्रों में चुनाव प्रचार कर सकेंगे।प्रियंका पूर्व में भी रायबरेली और अमेठी के चुनाव संचालन देखती रही हैं।

अमेठी से रिश्ता खत्म

1977 में संजय गांधी ने अमेठी से पहला चुनाव लड़ा था। वहीं, इंदिरा गांधी रायबरेली से प्रत्याशी थीं। जनता पार्टी की लहर में दोनों को पराजय का मुंह देखना पड़ा था। दोनों ने अपनी सीटों से 1980 में फिर चुनाव लड़ा। दोनों को जनता ने सिर आंखों पर बैठाया। दोनों को विजय मिली। राहुल के अमेठी छोड़ने की वजह चाहे जो भी हो लेकिन विपक्ष को हमलावर होने का मौका जरूर मिल गया। जनता में भी इसका मैसेज ठीक नहीं जाएगा। वहीं गांधी परिवार ने अमेठी से जो रिश्ता खत्म किया है, उसका ​दीर्घगामी संदेश मिलेगा।

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