- विभिन्न अध्ययनों के मुताबिक, वैश्विक स्तर पर हर तीसरे व्यक्ति को शिंगल्स के कारण जीवन पर्यन्त करना पड़ेगा परेशानी का सामना
बिजनेस डेस्क,नई दिल्ली। ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन (GSK) फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड ने आज शिंगल्स बीमारी को लेकर एक वैश्विक सर्वेक्षण से मिले आंकड़े जारी किए। सर्वेक्षण में शिंगल्स से जुड़े खतरे को लेकर 50 साल या इससे ज्यादा उम्र के लोगों के बीच जानकारी की कमी पता चला है। इस आयुवर्ग के लोगों में शिंगल्स के कारण सर्वाधिक परेशानी की आशंका रहती है। यह सर्वेक्षण 12 देशों में 50 साल और इससे ज्यादा उम्र के 3,500 लोगों के बीच किया गया।
इसमें यह जानने का प्रयास किया गया कि लोगों के बीच शिंगल्स को ट्रिगर करने वाले कारकों और इससे जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों के बारे में कितनी जानकारी है। 5 भारत में सर्वेक्षण में 500 लोगों को शामिल किया गया था, जिनमें 250 लोग हिंदी भाषी और 250 लोग अंग्रेजी भाषी थे। सर्वेक्षण के आंकड़ों को शिंगल्स जागरूकता सप्ताह (26 फरवरी से 3 मार्च, 2024) के मौके पर जारी किया गया है। इसमें शिंगल्स और इसके कारण जीवन पर्यंत मंडराने वाले खतरे को लेकर समझ की कमी सामने आई है।
शिंगल्स के खतरे
नतीजों में सामने आया कि वैश्विक स्तर पर सर्वेक्षण में शामिल ज्यादातर लोग शिंगल्स होने के खतरे को लेकर जागरूक नहीं हैं। 86 प्रतिशत लोग इससे जुड़े खतरे को कम करके आंकते हैं। भारत में, सर्वेक्षण में शामिल 81 प्रतिशत अंग्रेजी बोलने वालों और 86 प्रतिशत हिंदी बोलने वालों (कुल औसतन 83.5 प्रतिशत) ने शिंगल्स के खतरे को कम करके आंका। वैश्विक स्तर पर एक चौथाई (26 प्रतिशत) लोग मानते हैं कि 100 में से किसी एक व्यक्ति को ही उनके जीवन में शिंगल्स का खतरा होता है।
17 प्रतिशत लोग मानते हैं कि 1000 में से किसी 1 को शिंगल्स होने का खतरा है और 49 प्रतिशत मानते हैं कि उन्हें शिंगल्स होने का खतरा नहीं है। भारत में, अंग्रेजी बोलने वाले प्रतिभागियों में 22 प्रतिशत ने माना कि 1000 वयस्कों में से किसी 1 को शिंगल्स होने का खतरा रहता है। हिंदी बोलने वाले प्रतिभागियों में से 18 प्रतिशत ने माना कि 1000 में से 1 वयस्क को शिंगल्स का खतरा रहता है।
वायरस से लड़ने की क्षमता
वास्तविकता यह है कि 50 साल की उम्र होने तक लगभग ज्यादातर वयस्कों के शरीर में शिंगल्स का कारण बनने वाला वायरस आ चुका होता है, जो बढ़ती उम्र के साथ अपनी सक्रियता बढ़ाता है। शिंगल्स का कारण वेरिसोला-जोस्टर वायरस (वीजेडवी) होता है। यह वही वायरस है, जो चिंकनपॉक्स (चेचक) का कारण बनता है। जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, वायरस से लड़ने की प्रतिरक्षा शक्ति कमजोर पड़ने लगती है। इससे शिंगल्स होने का खतरा बढ़ने लगता है।
सर्वेक्षण में शिंगल्स के कारण होने वाले दर्द के बारे में भी जागरूकता की कमी देखी गई। यह बीमारी आमतौर पर रैश के रूप में होती है। साथ ही सीने, पेट या चेहरे पर दर्दभरे चकत्ते हो जाते हैं।
इसके कारण सामान्यत: ऐंठन, जलन, चुभन या झटका लगने जैसा दर्द होता है। वैश्विक स्तर पर सर्वेक्षण में शामिल 10 में से 1 वयस्क को ही शिंगल्स के सामान्य लक्षणों के बारे में पता था। 28 प्रतिशत से ज्यादा लोग मानते हैं कि शिंगल्स प्राय: खतरनाक नहीं होता है। भारत में अंग्रेजी बोलने वाले 55 प्रतिशत और हिंदी बोलने वाले 76 प्रतिशत प्रतिभागी ऐसा मानते हैं।
शिंगल्स जागरूकता सप्ताह
ग्लैक्सोस्मिथक्लाइन फार्मास्युटिकल्स की एक्जीक्यूटिव वाइस प्रेसिडेंट – मेडिकल अफेयर्स डॉ. रश्मि हेगड़े ने कहा, “सर्वेक्षण में मिले नतीजे 50 साल से ज्यादा उम्र के वयस्कों में शिंगल्स के खतरे को लेकर जागरूकता बढ़ाने की जरूरत को रेखांकित करते हैं। शिंगल्स बड़ी उम्र के लोगों की रोजाना की जिंदगी को बहुत ज्यादा प्रभावित कर सकता है और उन्हें बहुत ज्यादा असहजता का सामना करना पड़ सकता है। शिंगल्स जागरूकता सप्ताह में हम सभी को इस बात के लिए प्रोत्साहित करना चाहते हैं कि वे अपने डॉक्टर से बात करें और इस बीमारी के बारे में तथा इससे बचाव के तरीकों के बारे में विमर्श करें।” शिंगल्स के कारण रैश के साथ-साथ व्यक्ति को पोस्ट-हर्पेटिक न्यूरैल्जिया (पीएचएन) हो सकता है।
इंटरनेशनल फेडरेशन ऑन एजिंग
यह लंबे समय तक होने वाला नर्व पेन है। इसका दर्द कई हफ्ते, कई महीने या कई साल तक बना रह सकता है। पीएचएन शिंगल्स के कारण सबसे ज्यादा होने वाली समस्या है। विभिन्न अध्ययनों में पाया गया है कि शिंगल्स के मामलों में 5 से 30 प्रतिशत तक लोगों में पीएचएन की समस्या होती है।8 हालांकि, सर्वेक्षण में सामने आया कि वैश्विक स्तर पर मात्र 14 प्रतिशत लोग ही मानते हैं कि शिंगल्स के लक्षण 6 हफ्ते से ज्यादा समय तक बने रह सकते हैं। भारत में अंग्रेजी बोलने वाले मात्र 8 प्रतिशत और हिंदी बोलने वाले मात्र 4 प्रतिशत लोग ही ऐसा मानते हैं कि इसके लक्षण 6 सप्ताह से ज्यादा तक बने रह सकते हैं।
जीएसके ने सर्वेक्षण के नतीजे शिंगल्स जागरूकता सप्ताह (26 फरवरी से 3 मार्च, 2024) के मौके पर जारी किए गए हैं। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑन एजिंग (आईएफए) के साथ मिलकर जीएसके शिंगल्स जागरूकता सप्ताह के रूप में यह अभियान चला रहा है। इसका उद्देश्य जागरूकता बढ़ाना और शिंगल्स के खतरे एवं इसके प्रभाव के बारे में लोगों के बीच जानकारी की कमी को दूर करना है।
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