- जातियों की सियासत पर पानी फेर गया महाकुंभ
- सनातन आस्था की महाशक्ति दिखा गया महाकुंभ
- मतदान करने वालों से अधिक महाकुंभ स्नानार्थी
- सनातन आस्था का जनजागरण कर गया महाकुंभ
नवेद शिकोह, लखनऊ: 144 वर्षों के बाद अद्भुत संयोग वाला MahaKumbh बहुत कुछ बता गया, सिखा गया, हिन्दुओं की जनगणना भी कर गया और जनजागरण भी। एकजुटता और एकाग्रता का अहसास भी करा गया। सबसे अहम सियासत को संदेश दे गया। सनातन को सियासत जातियों में नहीं बांट सकती। आस्था की डोर हिन्दुत्व को जातियों में कभी नहीं बंटने देगी। महाकुंभ के जनसैलाब ने साबित किया है कि भारत में सनातन आस्था से ऊपर कुछ भी नहीं। आस्था लोकतांत्रिक अधिकारों और सियासत से भी ऊपर है। देश के जितने मतदाताओं की तादाद प्रधानमंत्री और विभिन्न राज्यों के मुख्यमंत्री चुनती है इससे अधिक तादाद का मानव समागम उत्तर प्रदेश के प्रयागराज के महाकुंभ का भागीदार बना।
लोकतंत्र में मतदान सबसे बड़ा अधिकार भी है और कर्तव्य भी, फिर भी मतदान का औसत 60 से 65 फीसद है। महाकुंभ ही एक ऐसा सांस्कृतिक, आध्यामिक और धार्मिक अनुष्ठान है जिसमें मतदान से भी अधिक नब्बे प्रतिशत भारत के विशाल और बहुसंख्य हिन्दू समाज की भागीदारी ने दुनिया को चौका दिया है।
सत्तर करोड़ लोगों के पहुंचने का अनुमान
पिछले वर्ष लोकसभा चुनाव में भारत के कुल लगभग सौ करोड़ मतदाताओं में से 64 फीसद यानी 64 करोड़ मतदाताओं ने मताधिकार का प्रयोग किया, जबकि इससे अधिक संख्या में अनुमानित सत्तर करोड़ स्नानार्थियों ने MahaKumbh में प्रयागराज के संगम पर पवित्र स्नान करने का अनुमान है। मोटे तौर पर माना जाता है कि देश में हिन्दू समाज की संख्या एक सौ दस करोड़ से अधिक है। जिसमें नवजात शिशुओं, बच्चों, बहुत अधिक बूढ़ों और बीमार लोगों की संख्या करीब बीस करोड़ होगी। बचे तकरीबन नब्बे करोड़, जिसमें संभावित सत्तर करोड़ लोगों की महाकुंभ में भागीदारी दिखाई पड़ रही है। यानी लगभग नब्बे प्रतिशत प्रत्येक जाति, समुदायों के सनातनियों ने महाकुंभ के अनुष्ठान में सम्मिलित होना अनिवार्य समझा। जबकि देश के सौ करोड़ मतदाताओं में मतदान का औसत साठ से पैंसठ फीसद होता है।
सनातन को सम्मान का मतलब सत्ता
पिछले वर्ष 2024 में लोकसभा चुनाव के समय चुनाव आयोग ने करीब सौ करोड़ मतदाताओं का आकड़ा प्रस्तुत किया था, जबकि लोकसभा चुनाव में 64 करोड़ मतदाताओं ने वोट डाले।यानी देश में मतदान का आंकड़ा 64 फीसदी और हिन्दू समाज में अपनी आस्था पर अटूट विश्वास और धार्मिक संस्कारों को निभाने की भावना नब्बे फीसद। किसी भी लोकतांत्रिक राष्ट्र में संख्या बल सबसे बड़ी शक्ति है। महाकुंभ ने साबित कर दिया कि भारत में सनातन धर्म की आस्था से बढ़कर कोई ताकत नहीं। आधुनिक युग में भी ऐसे अटूट आस्था ना केवल एकजुटता की मिसाल है बल्कि ये भी संदेश है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में सनातनी आस्था को सम्मान देने वाले राजनीति दल ही चुनावी विजय पाकर सत्ता हासिल कर सकते हैं।
हिन्दुत्व की आभा और वैभव
इन सबसे बढ़कर ये बात भी साबित होती है कि भारतीय बहुसंख्यक समाज का आधुनिक युग में भी अपने धर्म को लेकर विश्वास बढ़ता जा रहा है। हर जाति-समुदाय, सवर्ण,पिछड़े,दलित,गरीब,अमीर, महिलाएं-पुरुष…सब धार्मिक परंपराओं की आस्था के धागे से एकजुट होकर जुड़े हैं। बदलते भारत में मार्क्सवादी नास्तिकों की संख्या शून्य की तरफ बढ़ रही है। जबकि दस-पंद्रह वर्ष पहले सियासत में मार्क्सवादी हिस्सेदारी का दौर हिन्दुत्व की आभा और वैभव को धुंधला कर रहा था। बहुसंख्यक समाज में नास्तिकों की संख्या गति पकड़ रही थी। इस रफ्तार को 2014 के बाद नरेंद्र मोदी सरकार के युग ने ब्रेक लगाकर भारत में हिन्दुत्व क्रांति को बढ़ाया है। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के करीब आठ वर्षों की सरकार के विकास, सुरक्षा और सनातनी चेतना से हिन्दू समाज को जातियों में बांटने की राजनीति पर विराम लगा। ये तथ्य धर्म-जाति की जनगणना से नहीं प्रमाणित हुए हैं बल्कि दुनिया के सबसे बड़े आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और धार्मिक अनुष्ठान में मानव समागम ने साबित किए हैं।
विदेशियों की भागीदारी
प्रबल संभावना है कि प्रयागराज में महाकुंभ के समापन तक स्नानार्थियों की संख्या सत्तर करोड़ के आंकड़े को पार कर देगी। अब तक महाकुंभ मानव समागम की अनुमानित संख्या 60 से 65 बताई जा रही है,जबकि महाशिवरात्रि के अंतिम स्नान में पांच करोड़ से अधिक श्रद्धालुओं के आने की संभावना है। प्रमाणित हो रहा है कि हिन्दू समाज की हर जाति, सम्प्रदाय,गरीब,अमीर, खास और आम अपनी धार्मिक आस्था से ऐसे जुड़े हैं जैसे किसी वृक्ष के फल,फूल, पत्ते, तने, टहनियां शाखाएं पेड़ की जड़ों से जुड़ी होती हैं। महाकुंभ के पवित्र आध्यात्मिक आकर्षण मेंं विदेशियों की भागीदारी वैश्विक स्तर पर अतिथि देवो भव और वसुधैव कुटुंबकम् का संदेश दे गई। दुनिया के सबसे बड़े जन समागम की गवाह संगम कि पवित्र लहरे भारतीय सियासत को सनातन आस्था की एकता का एहसास भी करा गईं। संगम ने बहुत कुछ बताया,सिखाया और संदेश दिया। लोकतंत्र मे संख्या बल सफलता दिलाता है। इसलिए सियासत का सरताज वही होगा जो सनातन का सार्वाधिक सम्मान करेगा। सनातन को जातियों में तोड़ने की सियासत करने वाले खुद टूट जाएंगे। सनातन को जोड़ने वालों से ही सनातनियों का दिल से दिल का रिश्ता जुड़ता रहेगा।
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