लखनऊ। लोकसभा चुनाव के बाद यूपी में एक बार फिर चुनावी बिगुल बज चुका है। प्रदेश में 10 सीटों पर होने वाले उपचुनाव के लिए एक बार फिर सत्ता पक्ष और विपक्ष में जोर आजमाइश होगी। एक तरफ विपक्ष भाजपा को लोकसभा चुनाव में अच्छा प्रदर्शन दोहराने से रोककर गदगद है। वहीं बीजेपी ने एक बार फिर हिंदुत्व को धार देकर हरियाणा में तीसरी बार सरकार बनाने में सफल होकर कांग्रेस को बैकफुट पर लाकर विपक्ष का तगड़ा झटका दी है। भारतीय जनता पार्टी के रणनीतिकार इसी नीति पर चलते हुए एक बार फिर विपक्ष को चित्त करने की तैयारी में जुटे है।
13 नवंबर को होने वाले उपचुनाव में भाजपा इसी एजेंडे पर ही जातियों को साध रही है। लोकसभा चुनाव में संविधान और आरक्षण के मुद्दे पर बिगड़े जातीय समीकरण को साधने के लिए भाजपा फिर हिंदुत्व के एजेंडे का इस्तेमाल करेगी। बटोगे तो कटोगे नारे के साथ एक बार विपक्ष को हार का मुंह दिखाने के लिए तैयार। जिस तरह से यूपी में एक के बाद एक घटनाएं दो संप्रदायों के बीच हुई उसका असर जरूर दिखाई देगा। दरअसल बहराइच में ब्राहृमण युवक की मूर्ति विसर्जन के दौरान खींचकर हत्या किए जाने से हिंदू समुदाय में का काफी आक्रोश है, जिसका परिणाम उपचुनाव में अवश्य दिखाई देगा।
2027 पर नजर
रणनीतिकारों का मानना है कि हिंदुत्व के मुदृदे से जातीय समीकरण साधने में उसे मदद मिलेगी। भाजपा का केंद्रीय और प्रदेश नेतृत्व यूपी की नौ विधानसभा सीटों के लिए नवंबर में होने वाले उपचुनाव में हिंदुत्व के साथ राष्ट्रवाद के फार्मूले का परीक्षण करेगी। अगर सफलता मिलती है तो 2027 के विधानसभा चुनाव के लिए इसी आधार पर रणनीति बनाई जाएगी। बता दें कि हरियाणा में लगातार तीसरी बार बीजेपी और अधिक ताकतवर होकर सत्ता में आई है।
इसी तरह जम्मू-कश्मीर में भाजपा सरकार नहीं बन पाई, लेकिन वहां मिले वोट प्रतिशत से पार्टी को एक नई उम्मीद मिली है। जहां लोकसभा चुनाव में भाजपा की सीट घटने पर विपक्ष ने मोदी के मैजिक को खत्म होने के साथ ही बीजेपी के विदाई के तौर पर प्रचारित किया, वहीं बीजेपी ने हरियाणा में लगातार तीसरी बार सत्ता में वापसी करके विपक्ष का मुंह बंद कर दिया है। हरियाणा से मिला बूस्टर डोज अब यूपी में दिखाई देगा। वहीं बीजेपी को हराने के लिए सपा और कांग्रेस फिर मिलकर चुनाव लड़ने के संकेत दे चुके है, हालांकि सपा ने अधिकतर सीटों पर प्रत्याशी उतार दिए है, जहां पर कांग्रेस सीट मांग रही थी, वहां भी उसे तवज्जों नहीं दी है, ऐसे में एकता के चुनाव लड़ने में संदेह है।
जातियों को लामबंद करने की रणनीति
भाजपा ने दोनों राज्यों में चुनावों के दौरान बंटोगे तो कटोगे का नारा दिया, जिसका असर भी हुआ। माना जा रहा है कि इस नारे की बदौलत ही भाजपा कांग्रेस के जाट, दलित व यादव वोट बैंक में सेंधमारी कर पाई। यही नहीं, गैर-जाट और दलितों में गैर-जाटव मतदाताओं को भी हिंदुत्व के नाम पर लामबंद कर लिया। जम्मू-कश्मीर में ज्यादातर हिंदू भाजपा के पक्ष में गोलबंद दिखे। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, हिंदू लामबंदी जिस तरह जातीय गोलबंदी पर भारी पड़ती दिख रही है, वह यह बताने को पर्याप्त है कि बंटोगे तो कटोगे के नारे ने नतीजों पर असर डाला है।
इसे भी पढ़ें…
- बदायूं में प्रेम प्रसंग में युवक की हत्याकर गुप्तांग काटा, तेजाब से जलाकर घूरे में दबाया शव,नोंचकर खा रहे थे कुत्ते
- झांसी में धान की कटाई करने जा रहे मजदूरों की ट्रॉली पलटने से पिता-पुत्र समेत तीन की मौत, छह लोग घायल
- यूपी: 11 से 31 अक्टूबर, 2024 तक दस्तक अभियान, कालाजार के संभावित मरीजों की यूं होगी पहचान