सामाजिक कार्यकर्ता राजीव हेमकेशव का लखनऊ स्थित एक निजी अस्पताल में डेंगू के इलाज के दौरान हुआ निधन, सामाजिक कार्यकर्ताओं ने दिया श्रध्दांजलि

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राजीव हेमकेशव

4 अक्टूबर 2024, लखनऊ। संपूर्ण क्रांति आन्दोलन के प्रमुख एक्टिविस्ट रहे सामाजिक कार्यकर्ता राजीव हेमकेशव का इलाज के दौरान 73 वर्ष की आयु में लखनऊ स्थित एक निजी अस्पताल में 3 अक्टूबर 2024 की मध्यरात्रि में निधन हो गया। उन्हें डेंगू के इलाज हेतु एक निजी अस्पताल में भर्ती किया गया था तथा इलाज के दौरान ही उन्हें निमोनिया के साथ मल्टी आर्गन फेल्योर की प्राब्लम हो गई थी। उनका अंतिम संस्कार भैंसाकुंड स्थित शवदाहगृह पर किया गया। मुखाग्नि उनके भांजे ने दिया। राजीव हेमकेशव अविवाहित थे।

निधन का समाचार मिलते ही बड़ी संख्या में लोग सुबह से ही अस्पताल पहुंचने लगे। अंतिम दर्शन हेतु उनका शव उनके आवास पर रखा गया तत्पश्चात उन्हें शवदाहगृह पर लाया गया।
शवदाहगृह पर पहुंच कर अंतिम दर्शन करने वालों में राजीव हेमकेशव की बहन डा. अर्चना मिश्रा, बहनोई डा. अमिताभ मिश्रा, सोशलिस्ट फाउंडेशन के अध्यक्ष रामकिशोर, प्रो. रमेश दीक्षित, प्रो. प्रमोद कुमार, के. के. शुक्ला, ओ. पी. सिन्हा, एडवोकेट वीरेंद्र त्रिपाठी, प्रभात कुमार, जयप्रकाश, शिवाजी राय, होमेन्द्र मिश्रा, विपिन त्रिपाठी, आलोक सिंह, सी. एम. शुक्ला, राजीव यादव, अतहर हुसैन, संजय राय, अजय शर्मा, पुलकित बिंदा, उग्रनाथ, सहित सैकड़ों लोग रहे। बड़ी संख्या में लोगों ने सोशल मीडिया पर अपनी श्रध्दांजलि स्मृतिशेष राजीव हेमकेशव को दिया।
सोशल मीडिया फेसबुक व व्हाट्सएप पर प्रकाशित किये गए लोगों के श्रध्दांजलि संदेश का संकलन निम्नवत किया जा रहा है –

राजीव जी का यूँ चले जाना मेरे लिए, मेरे सभी साथियों के लिए एक बहुत बड़ा निजी आघात है। लखनऊ की पूरी हमारी मंडली के लिए राजीव हेमकेशव वह शख़्स थे जिनकी प्रत्यक्ष -अप्रत्यक्ष उपस्थिति से हमारे सार्वजनिक जीवन का एक बहुत बड़ा हिस्सा आबाद था, रोशन था। यह एक ऐसा नुकसान है जिसकी भरपाई बहुत ही मुश्किल है।राजीव जी के न रहने के बारे में सोचते हुए अपने आपको बहुत ख़ाली, बहुत खोखला, उजड़ा हुआ, रीता हुआ सा महसूस कर रहा हूँ।

लखनऊ की हमारी पूरी टीम को हमारे कॉलेज के दौर में पढाई-लिखाई के साथ-साथ गंभीर सामाजिक हस्तक्षेप से जोड़ने वाले, मध्यवर्गीय पृष्ठभूमि से आए हम लोगों की सामाजिक-राजनीतिक चेतना को एक कुशल , धैयर्वान प्रशिक्षक और दक्ष गुरू की तरह आकार देने वाले, बिना अपना गुरूडम थोपे एक वरिष्ठ मित्र की तरह हम जैसे तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं को गढ़ने वाले, खुद जबरदस्त बौद्धिक प्रतिभा और नेतृत्व क्षमता के बावजूद बैकग्राउंड में रहकर साथियों में नेतृत्व क्षमता उभारने, लगातार हर तरह से दूसरों को बढ़ावा देने , मदद करने और लगातार जोड़े रखने की कोशिश में लगे रहने वाले सेल्फलेस लीडर थे राजीव जी। प्रभुत्व की, नाम की कोई चाह नहीं, सबसे आगे ख़ुद को रखने वाली कोई महत्वाकांक्षा नहीं, बेहद सह्रदय, शालीन इनसान, दूसरों के दुख में सदा खड़े रहने वाले इनसान थे राजीव हेमकेशव । लगातार संगठन बनाने वाले, मोर्चे खड़े करने वाले, जबरदस्त संगठनकर्ता। उनके बारे में सोच रहा हूँ तो लगातार अस्सी के दशक के उत्तरार्ध के लखनऊ की राजनीतिक गहमागहमी से शुरू हुए साथ की तमाम यादें आँखों के आगे किसी फिल्म की रील की तरह खुलती जा रही हैं। लालबाग़ के उनके घर से लेकर लीला सिनेमा के पास और बाद में हलवासिया में उनकी कोचिंग, लखनऊ यूनिवर्सिटी कैंपस, नरही में युवा भारत की वो बैठकें, बहसें, स्टडी सर्किल, साइक्लोस्टाइल पर्चे छपाना-बाँटना, हस्ताक्षर अभियान चलाना, पत्रिकाएँ निकालना जगह-जगह दौड़धूप करना, जुलूस, सभाएँ, मोर्चे – जबरदस्त गहमागहमी का दौर था और राजीव जी इस सब के केंद्र में होते थे। एक संयोजक की तरह, व्यवस्थापक की तरह, रुपये-पैसे के इंतज़ाम से लेकर सबके खानेपीने, अपने साथियों की घर-गृहस्थी की ज़रूरतों का भी खयाल रखते हुए, किसी पर बिना कोई अहसान जताए हर तरह की मदद करते हुए। एक विरल व्यक्तित्व ।

लखनऊ के कॉल्विन कॉलेज के बेहद प्रतिभाशाली छात्र होने के बाद जेपी मूवमेंट के प्रभाव में आईआईटी छोड़कर छात्र युवा संघर्ष वाहिनी से जुड़कर आंदोलन में कूद पड़े और फिर जीवन सामाजिक काम में ही खपा दिया, एक पूर्णकालिक कार्यकर्ता की तरह। अच्छे खासे खातेपीते सुविधासंपन्न माहौल से निकले एक ऐसे इनसान जो दुनिया में लगभग संन्यासी भाव में रहे। कुछ भी निजी नहीं। यहा तक कि निजी जीवन में भी अकेले ही रहे।

बेहद सुदर्शन व्यक्तित्व और प्रचंड बौद्धिक क्षमता के धनी थे राजीव जी । अंग्रेज़ी-हिंदी पर समान रूप से अधिकार रखने वाले। इतना जबरदस्त लिखते थे कि अगर पत्रकारिता को चुनते तो शायद बहुत धाकड़ क़िस्म के संपादक साबित होते। उनसे वैचारिक असहमतियों के बावजूद लोगों को उनका लोहा मानना पड़ता था। यह मैंने स्वयं भी महसूस किया है और औरों को भी करते देखा है। लखनऊ की जगह अगर दिल्ली उनका कार्यक्षेत्र होता तो शायद अपनी बौद्धिकता की वजह से राजीव जी देश में गैर दलीय राजनीति में एक बहुत बड़ा नाम होते। पार्टी पॉलिटिक्स से जुड़ जाते तो अपने कई साथियों की तरह राजीव जी भी सत्ता की राजनीति में नाम कमाते, दुनियादारी के पैमाने पर सफल होते, पद-प्रतिष्ठा हासिल करते हुए आगे बढ़ते। लेकिन उन्होंने दूसरों को एक वैकल्पिक समाज का सपना दिखाने और उसे अमल में लाने की जद्दोजहद का मुश्किल रास्ता चुना जिसमें संघर्ष ज्यादा था। इसलिए हम जैसे तमाम लोगों की निगाह में राजीव जी बहुत बड़े शख़्स थे और हमेशा रहेंगे।

पिछले कई सालों में लखनऊ जाने के दौरान उनसे अनायास हज़रत गंज में मुलाक़ातें हुईं यूँ ही चलते फिरते।कभी कैथेड्रल के पास मेट्रो स्टेशन की सीढ़ियों पर, कभी कॉफ़ी हाउस के गलियारे में ,कभी सेंट फ़्रांसिस वाली सड़क पर । राजीव जी चाय बहुत पीते थे। हम चाय कॉफ़ी पर लंबी चर्चाएँ करते थे विकल्पों के बारे में। दिल्ली में जब जेपी आंदोलन के बिहार के अग्रणी कार्यकर्ता रहे प्रभात जी की किताब के अंग्रेज़ी संस्करण के विमोचन पर गांधी शांति प्रतिष्ठान में हम मिले तो वरिष्ठ पत्रकार नीरजा चौधरी और मणिमाला समेत तमाम लोगों ने आंदोलन से जुडी अपनी यादें साझा कीं थीं। बाद में एक अलग लंबी बैठक में राजीव जी की अगुआई में देश के अलग अलग हिस्सों में सक्रिय लोगों के साथ चर्चा का दौर चला जिसमें बेरोजगारी के सवाल को केंद्र में रखते हुए एक देशव्यापी मोर्चे के गठन के विचार पर बातचीत हुई। इसको लेकर राजीव जी बहुत उत्साहित थे। अगले साल एक राष्ट्रीय सम्मेलन की योजना थी। हरियाणा विधानसभा चुनावों में राज्य के दौरे की भी योजना बनी थी लेकिन अब क्या कहें! क्या- क्या होना सोचा था जो अब शायद कभी न हो पाएगा। राजीव जी के चले जाने से मेरे लिए जो जगह ख़ाली हो गई है, उसे भरना असंभव है।

राजीव जी के विराट व्यक्तित्व को मेरी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि।
*अमिताभ श्रीवास्तव*

नहीं रहे जेपी आंदोलन के सिपाही राजीव !
एक कार्यकर्ता का जाना
राजीव जी नहीं रहे . उन्हें डेंगू हुआ और फिर निमोनिया। ।वे राजीव हेम केशव नाम लिखते थे . जयप्रकाश आंदोलन की कोख से निकली छात्र युवा संघर्ष वाहिनी से जब जुड़े तो जाति सूचक नाम हटा दिया मां पिता का नाम जोड़ दिया . लखनऊ के काल्विन तालुकेदार से निकले और आईआईटी जैसे प्रतिष्ठित संस्थान की पढ़ाई छोड़कर जयप्रकाश आंदोलन से जुड़ गए . वे राजीव ही थे जिन्होंने मुझे आंदोलनों से जोड़ा आंदोलनकारियों से जोड़ा . छात्र युवा संघर्ष वाहिनी से जोड़ा . बिहार का बोधगया आंदोलन हो या गंगा मुक्ति आंदोलन या फिर ओडिसा के जन आंदोलन सभी जगह वे अस्सी के दशक में मुझे लेकर गए . किशन पटनायक जैसे समाजवादियों से मिलवाना हो या फिर सिद्धराज ढड्ढा या ठाकुर दास बंग जैसे गांधीवादियों से परिचय कराना सभी राजीव ने किया . उन्होंने कई संगठन बनाए कई का नेतृत्व मैंने ही किया जिसमें युवा भारत प्रमुख था . वे संगठन बनाते और कार्यकर्ता तैयार करते पर खुद कोई पद नहीं लेते .जीवन भर समता समानता के लिए लड़ते रहे।अगर मुख्यधारा की राजनीति में होते तो बहुत आगे होते पर वे बदलाव की राजनीति से बाहर नहीं गए। शादी ब्याह भी नहीं किया।आंदोलन से जुड़े रहे, लगातर यात्रा करते रहे। लंबी यात्रा उन्होंने मुझे भी कारवाई . मद्रास के गुडवंचरी आश्रम में वाहिनी के शिविर में लेकर गए जहां मेरी मुलाकात जयप्रकाश नारायण के सहयोगी शोभाकांत दास से हुई . वे मद्रास में जड़ी बूटियों के सबसे बड़े कारोबारी थे और उनके घर के बगल में ही रामनाथ गोयनका का घर था जो उनके मित्र थे . शोभाकांत जी गांधी के आह्वान पर आजादी की लड़ाई में कूदे और गिरफ्तार होकर सरगुजा की जेल में रहे . वे जेल से भाग कर फिर भूमिगत आंदोलन में शामिल हो गए . ऐसे लोगों से राजीव जी की वजह से ही मिलना हुआ . लखनऊ में दिग्गज समाजवादी सर्वजीत लाल वर्मा हों या फिर चंद्रदत्त तिवारी के विचार केंद्र तक जाना सब उन्ही की वजह से हुआ . वे ट्यूशन पढ़ाते थे और सारा पैसा राजनीतिक कार्यकर्ताओं पर खर्च करते थे . बाद में राजीव फिजिक्स नामसे कोचिंग शुरू की और वह काफी चली जिसके सारे संसाधन का इस्तेमाल राजनीतिक कार्यकर्ताओं के लिए हुआ . छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के कार्यकर्ताओं की आर्थिक मदद वे लगातार करते रहे . अन्ना आंदोलन के बाद बाबा रामदेव राजीव दीक्षित और राजीव दोनों के साथ सामाजिक बदलाव की दिशा में कुछ करना चाहते थे पर वह आगे नहीं बढ़ा पर राजीव लगातार बदलाव की उम्मीद में सक्रिय रहे और अंत तक अभी जो डेंगू हुआ वह भी भगत सिंह के कार्यक्रम की तैयारी में लगे रहने के दौरान हुआ .
1978 79 में जब मैं लखनऊ विश्वविद्यालय छात्रसंघ में था तभी उन्होंने हम सब को जोड़ कर कई पहल की . अनूप ,अरुण त्रिपाठी ,हरजिन्दर ,पुनीत टंडन ,अतुल सिंघल ,अशोक हमराही जैसे बहुत से लोग जुडते गए . मैंने लखनऊ यूनिवर्सिटी थिंकर्स काउंसिल और छात्र भारती जैसे संगठन उन्ही की मदद से खड़ा किया . आलोक जोशी ,अमिताभ श्रीवास्तव ,राजेन्द्र तिवारी ,देवेन्द्र उपाध्याय ,मसूद,रमन, कर्निमा,निलय कपूर ,शाहीन ,अपर्णा ,शिप्रा दीक्षित जैसे बहुत से छात्र छात्राएं इन्ही मंच से निकले . हमने लखनऊ वर्ष 1985 86 में छोड़ दिया पर राजीव जमे रहे .संपर्क संबंध बना रहा .लोकसभा चुनाव से ठीक पहले वे राजीव गांधी फाउंडेशन के मुखिया के साथ मिलने आए थे उसके बाद मुलाकात नहीं हुई . उनकी भांजी रामगढ़ में रहती हैं उन्ही से सूचना मिली तो पता किया कल उनकी स्थिति बिगड़ चुकी थी . सुबह सुबह ओमप्रकाश ने खबर दी तो 45 साल का संबंध सामने आ गया .
एक कार्यकर्ता के तौर पर उन्होंने मुझे भी गढ़ा . पहली बार जब बोधगया शिविर गया तब खाना खाने के बाद अपना बर्तन खुद साफ करने की बारी आई तो बहुत झिझका था क्योंकि ऐसा कभी किया नहीं था . फिर पटना से लेकर मद्रास शिविर तक हमारे भी संस्कार बदल गए और हम भी एक कार्यकर्ता में बदल चुके थे .राजीव के पढ़ाए लोग कहां से कहां पहुँच गए . साथियों को उन्होंने संस्कार दिए तो दूसरी पीढ़ी को पढ़ाया भी मेरे दोनों बेटे भी उनसे पढे हैं . बहुत याद आएंगे राजीव जी।
गंगा मुक्ति आंदोलन के मुखिया अनिल प्रकाश ने उनपर एक पुस्तक निकालने का सुझाव दिया है जिसमें उनके आंदोलन के साथी लिखेंगे। मैं यह पहल करूंगा।
फोटो में हरे कुर्ते में राजीव मेरे घर में मित्रों के साथ।
*अम्बरीष कुमार*

लखनऊ में राजीव हेमकेशव (Rajiv Hemkeshav) के निधन की दुखद खबर मिली है। एक दौर में राजीव के साथ मेरा बहुत जुड़ाव था। एक समय रोज़ का साथ था। स्वतंत्र भारत के संपादकीय विभाग में ज्यादातर मिलते थे। उनसे परिचय इमर्जेंसी के समय हुआ था। उन दिनों वे हिंदी संस्थान में साप्ताहिक विचार-मंथन जैसा कुछ करते थे। बाद में उन्होंने विश्वविदंयालय में आम छात्र को ताकत दो आंदोलन चलाया। मुझे याद है कि 15 अगस्त, 1977 (77 या 78 की बात है) को हमने एक पर्चा बनाया शोर के दौर में हम क्या करें? स्वतंत्र भारत के पाठकों के पत्र में एक छोटी सी सूचना छापी गई कि जो लोग विचार करते हों, तो जनपथ बाजार में मिलें। वहाँ कुछ लोग आए थे, उनमें ज्ञानेंद्र सिंह भी थे। उन दिनों हम लोगों ने कई पर्चे छापे, जिनकी छपाई वर प्रसाद राव के प्रेस में होती थी। काफी समय तक हम चंद्र दत्त तिवारी जी के साथ पेपर मिल कॉलोनी में साप्ताहिक बैठकी करते रहे। इसी दौरान कानपुर के सुनील सहस्रबुद्धे और उनकी टीम के साथियों से संपर्क हुआ। उनकी मजदूर किसान नीति का प्रसार-प्रचार भी किया। राजीव ने बाद में जातीय नाम हटाने की मुहिम भी चलाई। अपने जातिसूचक नाम को हटाकर माता और पिता के नाम से हेमकेशव बनाया। कोचिंग के सहारे आजीविका को चलाया। इसमें काफी सफल भी हुए। हलवासिया में काफी स्पेस खरीद ली। उन्होंने साप्ताहिक अखबार निकालने की कोशिश भी की। मैंने उन्हें सुझाव दिया था कि अखबार को लोकप्रिय बनाना संभव नहीं होगा। राजीव मुख्यधारा की राजनीति में होते, तो शायद बेहतर होता, पर वे उसके समांतर राजनीति चाहते थे। अपनी इस धारणा के कारण वे राष्ट्रीय स्तर पर बहुत से लोगों के साथ जुड़े। दिल्ली आने के बाद मेरा उनसे संपर्क टूट गया। फेसबुक पर मित्र थे, पर इसमें वे ज्यादा सक्रिय नहीं थे। अचानक उनकी बीमारी और फिर निधन की खबर मिली। हार्दिक श्रद्धांजलि🙏
*प्रमोद जोशी*

करीब चौवालिस साल का संबंध एक झटके मे टूट गया। अभी एक सितंबर को लंबी बात की थी। चाहते थे समाज को बेहतर बनाने के लिए युवाओ का एक संगठन बने। सब लोग जुटे। ऐसे मे राजीव का जाना हम सब के लिए बड़ा सदमा है।
*अरूण त्रिपाठी*

बहुत दुख हुआ ! एक महान क्रांतिकारी थे वो ! जो समाज में अच्छी बातें हों प्रशासन से भ्रष्टाचार दूर हो जान सब बातों में लगे रहे ! पहले उनसे स्टैण्डर्ड कोचिंग में फिजिक्स पढ़ा था फिर अन्ना आंदोलन में उन्होंने लगातार अच्छा सहयोग दिया था ! हमेशा जान सरकारों वाले मुद्दों पर लगे रहे ! अपूर्णिय क्षति हुई हैं ! अभी एक साल पहले मेरे ऑफिस आए थे रिलायंस के फिजिकल शेयर्स को द्मत करवाने ! बहुत दुख हुआ !
*राजीव कुमार पांडे*

अत्यंत दुखद खबर.विश्वास नहीं होता. अभी तो उनकी माताजी का निधन हुआ था.राजीव बहुत प्यारे इंसान थे,अपने आदर्शों के प्रति समर्पित, हर एक की मदद के लिए हर वक्त तैयार . विनम्र श्रद्धांजलि.
*वन्दना मिश्रा*

Today in grief I express my condolences on the sad demise of Rajiv Hemkeshav Sir…An indomitable person who was humble and gentle in conduct with high standards of achievements as teacher,activist,organisation man,friend,academic and leader who took on mighty from Emergency days till date.

(Picture of Rajiv Sir at our Jashn e Chirag programme at Shaheed Ashfaqullah Khan grave in Shahjahanpur in 2014 on 22nd October)
*अतर हुसैन*

मेरा आप लोगों के संपर्क में आने तक राजीव जी का कद काफी बड़ा हो चुका था लेकिन उनकी विनम्रता भी उतनी ही विशाल थी,
उनका जाना एक विचारधारा की क्षति है और इन सबसे ऊपर जिसे इंग्लिश में कहते हैं honest to the core . विनम्र श्रद्धांजलि
*अशोक शुक्ला*

वितरागी सामाजिक युग का यूं अवसान होना मन को बहुत खटकता है लेकिन दुख इस बात का है कि ऐसे क्रांति दृष्टा नज़र नहीं आ रहे हैं। खैर राजीव भाई को भावपूर्ण आत्मिक श्रद्धांजलि अर्पित करता हूं।
*सुरेंद्र तनवर*

1977 में राजीव से मुलाक़ात हुई थी। लम्बा साथ रहा, शुरुआती वर्षों में सपनों और उम्मीदों का साथ। इधर यदा-कदा ही बात-मुलाकात होती थी। राजीव का बहुत संतुलित और सधे स्वर में बोलना प्रभावित करता था।
*नवीन जोशी*

अत्यंत दुःखद समाचार

सभी साथियों के लिए एक दुखद सूचना है वाहिनी के संस्थापक साथी *राजीव हेम केशव* लखनऊ का स्वर्गवास कल 4 अक्टूबर की रात्रि को लखनऊ के अस्पताल में हो गया। वह डेंगू के इलाज के लिए कई दिन से अस्पताल में और पिछले दो दिन से आई.सी. यू.में भर्ती थे कल रात में उन्हें डायलिसिस पर रखा गया था।
उनकी अंत्येष्टि आज ही दोपहर तीन बजे लखनऊ के बैकुंठ धाम (भैसाकुंड) पर होगा ।

आदरणीय राजीव हेमकेशव जी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की राष्ट्रीय टीम के वरिष्ठ साथी व भौतिक विज्ञान के प्रवक्ता तथा संपूर्ण क्रान्ति आन्दोलन के प्रमुख साथी थे।
*सन्तोष परिवर्तक*

राजीव के निधन की खबर से बहुत ही क्षुब्ध हूँ ! श्रावण बाळ की तरह अपनी माँ के लिए सर्वस्व त्यागने वाले राजीव ने अपनी माँ की अंतिम समय तक सेवा की ! और अभि – अभि माँ के चले जाने के दुःख से बाहर निकलने के पहले ही वह भी चला गया ! बहुत ही दुःखद है ! भावपूर्ण श्रद्धांजली
*सुरेश खैरनार*

अत्यंत दुःखद समाचार
सभी साथियों के लिए एक अत्यंत दुखद सूचना है हमारे संस्थापक साथी *राजीव हेम केशव* लखनऊ का आकस्मिक निधन कल 4 अक्टूबर की रात्रि को लखनऊ में हो गया।
उनकी अंत्येष्टि आज ही दोपहर तीन बजे लखनऊ के बैकुंठ धाम (भैसाकुंड), लखनऊ पर होगा।

आदरणीय राजीव हेमकेशव जी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की राष्ट्रीय टीम के वरिष्ठ साथी व भौतिक विज्ञान के प्रवक्ता तथा संपूर्ण क्रान्ति आन्दोलन के प्रमुख साथी थे।
*सत्यव्रत सिंह*
हृदयविदारक समाचार !
परिवर्तनकाँक्षी समाजकर्मियों , आन्दोलनों और संगठनों ने अपना एक बड़ा हितैषी , कार्यकर्ता और सेवक खो दिया है .
उन्हें हमारी विनम्र श्रद्धाँजलि !
*कृष्ण स्वरूप आनंदी*

अत्यंत दुःखद समाचार😥

हम सब के साथी #राजीव_हेमकेशव का निधन (लखनऊ में)हो गया है। उन्हें डेंगू हो गया था और वे मिडलैंड हास्पिटल मे एडमिट थे। #युवा भारत के संस्थापक व अपनी अदभुत फिजिक्स क्लासेस कि वजह से पुरे लखनऊ शहर में राजीव सर के नाम से प्रसिद्ध थे!
💐🙏💐
विनम्र श्रद्धांजलि 💐💐😥😥😥
*राजीव रंजन*

स्मृतिशेष राजीव हेमकेशव के निधन की सूचना अत्यंत हृदयविदारक है। वे लोकतांत्रिक मूल्यों के हिमायती थे। उन्होंने आजीवन आन्दोलनकारियों का न केवल साथ दिया बल्कि वे आन्दोलन के अग्रिम पंक्ति के योध्दा थे। वे तमाम सामाजिक कार्यकर्ताओं की समय समय आर्थिक मदद भी किया करते थे। उन्होंने युवा भारत के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी और उनकी योजना युवा भारत को मजबूत कर नौजवानों के सवालों पर आन्दोलन विकसित करने की थी। विनम्र श्रद्धांजलि। सादर नमन।
*एडवोकेट वीरेंद्र त्रिपाठी*

छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की राष्ट्रीय टीम, भौतिक विज्ञान के शिक्षक और संपूर्ण क्रांति आंदोलन के प्रमुख साथी राजीव (राजीव हेम केशव) की जब से डायलिसिस होने और बाद में वेंटीलेटर पर होने की खबर मिली तब से ही मैं बहुत चिंतित था। वे डेंगू के इलाज के लिए कई दिनों से अस्पताल में भर्ती थे।

कल जब मुंबई से गुड्डी ने बताया कि पुतुल जी की तबीयत बिगड़ गई है। तब मैंने साथियों से पूछा तो पता चला कि कभी भी, कुछ भी हो सकता है। अंततः आज सुबह चेन्नई पहुंचने पर पता चला कि राजीव जी नहीं रहे। आश्रम से फोन आया तब और विस्तार से अनु ने जानकारी दी।

जब भी मैं लखनऊ जाता था राजीव जी से हजरतगंज में जहां वे कोचिंग क्लास लेते थे, वहां जाकर मिला करता था। तमाम सारे कार्यक्रमों की योजना पिछले कुछ वर्षों में हमने मिलकर बनाई थी। बीच में वे काफी समय मां की सेवा में व्यस्त रहे। कुछ महीने पहले ही उनकी मां का देहांत हुआ है।

लखनऊ में जब आलोक भाई और उषा विश्वकर्मा द्वारा चलाए जाने वाले आश्रम में मेरा आना-जाना शुरू हुआ तब राजीव जी से ज्यादा मुलाकात होने लगी।

लखनऊ में इस बार जब मैं गया, तब मैत्री आश्रम में ही राजीव जी से लंबी बातचीत हुई। असल में उन्होंने देश के हर परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी देने के उद्देश्य से एक पुस्तिका तैयार की थी, जिस पर वे अलग-अलग राज्यों में जाकर चर्चा कर रहे थे।

हमारे बीच यह तय हुआ था कि हरियाणा चुनाव के दौरान तीन चार शहरों में जाकर रोजगार के मुद्दे को चुनावी चर्चा में लाने का प्रयास करने के उद्देश्य से बैठकें करेंगे, लेकिन यह संभव नहीं हो सका। इसके बाद पुणे के राष्ट्रीय लोकतांत्रिक अभियान के सम्मेलन में उम्मीद थी कि वे मिलेंगे लेकिन वहां भी मुलाकात नहीं हो सकी।

राजीव जी की व्यक्ति के तौर पर जितनी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। अपने मित्रों की मदद के लिए वे सदैव तैयार रहते थे। एक बार मैं लखनऊ आया तब बीमार पड़ गया, उन्होंने मेरा इलाज कराया था।

लखनऊ में आलोक जी के साथ मिलकर उन्होंने जिस आश्रम की कल्पना की, उससे उन्होंने मेरे सहित देश के तमाम लोगों को जोड़ा। आश्रम को संघर्ष और रचना का वैचारिक केंद्र बनाने में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

राजीव जी की सृजनशीलता बहुआयामी थी। वे बहुत सुनियोजित तौर पर किसी भी कार्यक्रम या आंदोलन को गढ़ा करते थे। उनकी एक और खूबी यह थी कि वे अपने साथियों से उनकी क्षमता के अनुसार काम लेना जानते थे, वह भी बिना दबाव के स्वेच्छा पूर्वक। वे मृदुभाषी भी बहुत थे।

मुझे दुख है कि मैं उनके अंतिम दर्शन नहीं कर सका।

साथी तेरे सपनों को मंजिल तक पहुंचाएंगे!

( *डॉ. सुनीलम* किसान संघर्ष समिति के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।)

उपरोक्त के साथ तमाम पत्रकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, अधिवक्ताओं व शिक्षाविदों ने अपने भाव उद्गार व्यक्त कर उन्हें याद किया।

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