तीन साल की भतीजी से दुष्कर्म के दोषी को फांसी, जज बोले दरिंदे को जीने का अधिकार नहीं

हरदोई। यूपी के हरदोई जिले में चार साल पहले तीन साल की भतीजी से दुष्कर्म करने के आरोपी को कोर्ट ने मौत की सजा सुनाई। इस दौरान जज ने बेहद ही सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि डायन भी सात घर छोड़कर पाप करती है, लेकिन इसने तो अपने घर में ही जमीन के लालच में मासूम से हैवानियत की, इसे जीने का कोई अधिकार नहीं है, ऐसे लोगों की हत्या से कोई पाप नहीं लगता। अपर जिला जज मोहम्मद नसीम ने कहा कि अगर अभियुक्त ने हत्या की होती तो शायद सजा कुछ और होती, लेकिन जो इसने जो अपराध किया है उसमें बच्ची की हत्या हर पल और हर दिन होती है। उन्होंने अपने फैसले में दोषी जैसे लोगों को समाज में रहने के लायक न होने की टिप्पणी भी की। फांसी की सजा सुनाने के बाद जज ने कलम तोड़ दी।

जज ने अपराधी को जानवर बताया

अपर जिला जज मोहम्मद नसीम ने फांसी की सजा सुनाए जाने के दौरान दुष्कर्म पीड़िता की हालत भी बयां की। दुष्कर्म के कारण बच्ची के मल और मूत्र के रास्ते में कोई अंतर नहीं रह गया था। इसके कारण बच्ची को मल और मूत्र त्याग करने के लिए अलग जगह शरीर में बनानी पड़ी और तब उसकी जान बच पाई। अपर जिला जज ने इसे पशुवत व्यवहार की संज्ञा दी। कहा कि सगी भतीजी के साथ ऐसा व्यवहार इंसान के रूप में एक वहशी जानवर ही कर सकता है। उन्होंने लिखा है कि भारतीय संस्कृति के समाज को ऐसे पैशाचिक व्यक्ति की आवश्यकता नहीं है और इस प्रवृत्ति के व्यक्ति को समाज में रहने का कोई अधिकार नहीं है।

न बेटियां बचेंगी…न सुरक्षित जी सकेंगी

फैसले में अपर जिला जज मोहम्मद नसीम ने एक अहम तथ्य भी लिखा है। उन्होंने कहा है कि आधुनिक सभ्यता में हम बेटियों सहित संपूर्ण स्त्री जाति के कल्याण व सुरक्षा के लिए अभियान चला रहे हैं, ताकि उन्हें समाज में सुरक्षित और सम्मानित जीवन जीने का अधिकार हो। ऐसी घटनाओं के प्रति समाज में कठोर रुख नहीं अपनाया जाता है तो न ही बेटियां बचेंगी और ना ही सुरक्षित और सम्मानित जीवन जी सकेंगी। समाज के न्याय के लिए गुहार को नहीं सुनाया गया तो न्याय प्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न लग जाएगा। इससे समाज में असुरक्षा और भयावह स्थिति का उत्पन्न होना स्वाभाविक है।

बच्ची की मां के साथ भी करता था छेड़खानी

मुकदमे की सुनवाई के दौरान पीड़िता की मां के बयान भी न्यायालय में दर्ज किए गए थे। इसमें बच्ची की मां ने बताया था कि अभियुक्त अविवाहित है और कई बार उसके साथ भी छेड़खानी करता था। इसके कारण बच्ची के पिता ने कई बार अपने भाई को पीटा भी था।अपर जिला जज मोहम्मद नसीम ने रामचरितमानस के किष्किंधाकांड की पंक्तियों का उल्लेख भी फैसले में किया है। फैसले में लिखा है कि अनुज वधू भगिनी सुत नारी, सुन सठ कन्या सम ए चारी, इनहहि कुदृष्टि बिलोकई जोई, ताहि बधे कुछ पाप न होई। इसका मतलब यह हुआ कि छोटे भाई की स्त्री, बहिन, पुत्र की स्त्री और कन्या यह चारों समान हैं। इन्हें जो कोई बुरी दृष्टि से देखता है उसका वध करने में कोई पाप नहीं होता।

न पछतावा…न आंसू, ढीठ की तरह खड़ा रहा दोषी

फैसला सुनाए जाने के दौरान दोषी को भी न्यायालय के कठघरे में खड़ा किया गया था। अपर जिला जज ने जब सजा सुनाई तो उसके चेहरे पर न तो पछतावा दिखा और न ही आंखों में आंसू। एकदम ढीठ की तरह खड़ा रहा। अपर जिला जज ने फैसले में भी कहा कि अभियुक्त ने खुद को निर्दोष बताया था, लेकिन दोष सिद्ध होने पर भी उसने भतीजी के साथ की गई घटना पर कोई पछतावा तक नहीं किया।

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