उनसे नज़रें मिला के बैठे हैं ।
सबको दुश्मन बना के बैठे हैं ।।
हाले-दिल अपना अब कहें कैसे,
खुद को पत्थर बना के बैठे हैं ।
उनकी आँखों में है नशा कोई,
हमको मदिरा पिला के बैठे हैं ।
जब से देखा है आँख ने उनकी
अपना सब कुछ गँवा के बैठे हैं।
सूझता कुछ नहीं सिवा उनके,
रात को दिन बना के बैठे हैं।
उनकी बस एक झलक पाने को,
सारी दुनिया भुला के बैठे हैं।
साथ चलने को मिले या न मिले,
हम तो कदमों में आ के बैठे हैं ।
अपनी मंजिल को पा सकें हम भी,
खुद को पागल बना के बैठे हैं ।
—————
राम नरेश ‘उज्ज्वल’
इसे भी पढ़ें..