दे गई वह भी दगा तो क्या करें ।
जिंदगी है बेवफा तो क्या करें ।।
साँस में जिसको बसाया था कभी
है वही बेहद खफा तो क्या करें
मर्ज ने भी पार कर ली सब हदें
दर्द है इसकी दवा तो क्या करें ।
इश्क की खुशबू बिखेरी इस तरह
प्राण में जैसे हवा तो क्या करें ।
कहर ढाने में कसर छोड़ी नहीं
है बना फिर भी खुदा तो क्या करें ।
प्यास भी कमबख्त लगती है नहीं
भूख भी है अब दफा तो क्या करें ।
चुग रहे हैं आज कंकड़ हंस भी
काग को मोती मिला तो क्या करें ।
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राम नरेश ‘उज्ज्वल’
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