लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2024 बसपा के लिए सबसे खराब साबित हुआ, कभी प्रदेश की राजनीतिक दिशा करने वाली बहुजन समाज पार्टी इस बार शून्य पर आउट हो गई। ओवरआल इस समय देखा जाए तो बसपा का केवल एक विधायक ही बचा है। अब देश की सबसे बड़ी पंचायत में बसपा की रहनुमाई करने वाला कोई नहीं बचा। सबसे बड़ा सवाल है बसपा की इस दुर्दशा का जिम्मेदार कौन है। बसपा ने शायद 2022 में मिली करार हार से सीख नहीं ली, उसे ढर्रे पर आगे बढ़ती रहीं,इसलिए उसे इस बार सबसे बुरे दौर से गुजरना पड़ा। बीच में आकाश आनंद के आने से पार्टी कुछ अलग अंदाज में चलने को तैयार हुई थी, लेकिन उनके तरकश बयान की वजह से बसपा प्रमुख ने उनसे सारी जिम्मेदारी छिन ली। ऐसा लगता है बसपा के वोटरों का अब मायावती से मोहभंग हो गया, जो सपा और कांग्रेस की तरफ शिफ्ट हो गया।
शून्य से शुरूआत करने की जरूरत
बसपा को अगर राजनीति करनी है तो उसे एक बार फिर शून्य से शुरूआत करनी होगी, उसे सच्चे मन से मंथन करना होगा कि इस हार की वजह क्या है। आखिर जिस सोशल इंजीनियरिंग की वजह से उसे कई बार प्रदेश की रहनुमाई करने का मौका मिला,वहीं सोशल इंजीनियरिंग फेल कैसे हो गई। राजनीतिक समझ रखने वाले यह आसानी से बता सकते है जिस तरह राजनीतिक पार्टियां टिकट बांटते समय अपने मूल कार्यकर्ता का ध्यान नहीं रख रही हैं, यहीं उनके लिए घातक साबित हो रहा है। यह फार्मूला तो एक दो बार या एकाध सीट पर सफल हो सकता है, लेकिन हर बार यह सटिक नहीं बैठ सकता। ऐसे में बसपा को एक बार फिर अपने को खड़ा करने के लिए अपने मूल वोटर को अपने से जोड़कर आगे बढ़ना होगा।
नए नेतृत्व की जरूरत
यह बात सौ प्रतिशत सच है कि किसी भी राजनीतिक पार्टी को चलाने के लिए नई सोच की जरूरत है, हर बार उसी ढर्रे पर चलने से कामयाबी नहीं मिलेगी। बात चाहे देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस की हो या सपा की दोनों ने अपने नेतृत्व को युवा हाथों में दिया जिसे खड़ा होने में समय तो लगा, लेकिन अब वह राजनीति करना सीख गया है। इसी तरह मायावती को नई पौध को जिम्मेदारी देकर मैदान के बाहर से मार्गदर्शन करना चाहिए ताकि वह अपने हिसाब से संगठन तैयार करे और चुनावी मैदान में उतरकर फिर से पार्टी को खड़ा कर सकें अन्यथा वह दिन दूर नहीं जब बसपा इतिहास की किताबों में सिमट कर रह जाएगी।
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