गुनाह के आरोप में झुलसी जवानी: 44 साल बाद दोस्त की हत्या के पाप से मिली मुक्ति हाईकोर्ट ने बताया बेगुनाह

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Scorched youth on charges of crime: 44 years old got freedom from the sin of murdering friend, High Court declared him innocent
सजा के खिलाफ तीनों ने 1982 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।

प्रयागराज। तीन दोस्तों ने दोस्त् की हत्या के आरोप में अपने जीवन के अमूल्य 44 साल जेल में काट दिए अब जाकर हाईकोर्ट ने तीनों को बेगुनाह बताया। दरअसल 44 साल पहले मुजफ्फरनगर डीएवी कॉलेज में बीए के छात्र की हत्या के दोषी तीन दोस्तों को बेगुनाह करार दिया। कोर्ट ने उन्हें मिली आजीवन करावास की सजा रद्द कर दी। यह फैसला न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा, न्यायमूर्ति विनोद दिवाकर कर खंडपीठ ने राजेश, ओमवीर और एक नाबलिग आरोपी की ओर से सजा के खिलाफ 40 साल पहले दाखिल अपील निस्तारण करते हुए सुनाया। अपील करने वालों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता बृजेश सहाय और सुनील वशिष्ठ ने दलील पेश की।

कोर्ट ने सुनाई उम्रकैद की सजा

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार मुजफ्फनगर थाना सिविल लाइंस के केशवपुरी मोहल्ले का है। अभियोजन की कहानी के मुताबिक छात्र अजय छह जनवरी को ताऊ रघुनाथ के कहने पर अपने साथी राजेश के पास डीजल के पैसे वापस लेने गया था। लेकिन, वह घर वापस नहीं लौटा।रघुनाथ ने आठ जनवरी को भतीजे की गुमशुदगी दर्ज कराई। खोजबीन के बाद राजेश की तलाश शुरू हुई। फिर उसे पुलिस ने मिनाक्षी सिनेमाघर के पास से गिरफ़्तार किया।

इसके बाद राजेश की निशानदेही पर अजय का शव केशवपुरी मोहल्ले के सुखवीर के किराये के मकान से बरामद किया गया। इनकी गिरफ्तारी के बाद पुलिस ने मामले में राजेश, ओमवीर और एक नाबालिग के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था। अभियोजन की ओर से अदालत में 13 गवाह पेश किए गए। इसके बाद मुजफ्फनगर के अपर जिला व सत्र न्यायालय ने 30 जून 1982 को राजेश समेत तीन अभियुक्तों को हत्या और सुबूत मिटाने का दोषी करार देते हुए अजीवन कारावास की सजा सुनाई।

1982 में गए थे हाईकोर्ट

सजा के खिलाफ तीनों ने 1982 में हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। अपील के दौरान राजेश, ओमवीर की सुनवाई बतौर वयस्क आरोपी चली, जबकि तीसरे आरोपी को 2017 में नाबालिग घोषित कर दिया गया।हाईकोर्ट ने 44 साल से लंबित अपील का निस्तारण करते हुए तीनों आरोपियों को मिली आजीवन करावास की सजा से बरी कर दिया। कोर्ट ने कहा कि मामले मेंं पेश अभियोजन के गवाहों की ओर से मृतक के अंतिम दृश्य के संबंध में दिए बयानों में विरोधाभास और शव की बरामदगी संदेहास्पद है। मामले में 44 साल पहले फंसे राजेश और ओमवीर की उम्र अब 60 के पार है। जबकि, सजा पाने के बाद नाबालिग घोषित आरोपी भी अब 59 के करीब है। करीब चार दशक चली मुकदमेबाजी के बाद बेगुनाह साबित हुए तीनों आरोपियों की जवानी खाक हो गई।

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