लखनऊ। वैसे सपा-कांग्रेस इंडिया गठबंधन के तहत साथ में लोकसभा चुनाव लड़ रहे है, लेकिन दोनों एक साथ खड़ा होने से परहेज कर रहे है, यही कारण है कि दोनों ने अपने अलग-अलग घोषणा पत्र प्रस्तुत किए। अब सवाल एक ही जब दोनों को साथ में रहकर वोट मांगने है, दोनों लक्ष्य एक ही है फिर घोषणाएं अलग-अलग क्यों। इससे बड़ा सवाल यह उठ रहा है कि सपा ने अपने घोषणा पत्र में अल्पसंख्यकों के हित के लिए कोई भी ठोस योजना नहीं बनाई है। शायद सपा मानकर चल रही है कि अल्पसंख्यक उसे ही वोट देंगे, इसलिए उनके बारे में सोचना जरूरी नही है। शायद अखिलेश यादव भूल गए कि इस बार बसपा गठबंधन से अलग होकर चुनाव लड़ रही हैं और उसने अपना पूरा ध्यान अल्पसंख्यकों पर कर रखा है। वहीं वोट काटने के उददेश्य से पल्लवी पटेल ने ओवैसी से हाथ मिला लिया है।
कांग्रेस अलग घोषणाएं
सपा ने घोषणा पत्र में अल्पसंख्यकों से दूरी बनाई है।उसने कांग्रेस की कई गारंटियां शामिल की हैं, लेकिन महिलाओं के लिए किए गए दोनों के वादों में एकरूपता नहीं है। कांग्रेस ने जहां गरीब महिलाओं के लिए 1 लाख रुपये सालाना, तो सपा ने 3 हजार रुपये प्रति माह यानी 36 हजार रुपये सालाना देने की घोषणा की है। यूपी में विपक्षी गठबंधन इंडी में सपा और कांग्रेस शामिल है, लेकिन यहां संयुक्त रूप से साझा घोषणापत्र का जारी न करना चर्चा में है। सपा ने सत्ता मिलने पर अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्गों के सभी खाली पद भरने और निजी क्षेत्र में सभी वर्गों की भागीदारी सुनिश्चित करने का वादा किया है। दूध सहित सभी फसलों पर स्वामीनाथन फाॅर्मूले के तहत न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) और इसकी कानूनी गारंटी देने की बात घोषणापत्र में कही है।
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