लखनऊ। लोकसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के लिए एनडीए और इंडिया गठबंधन एक— एक सीट को जीतने के लिए रणनीति बना रही है। काफी सोच समझकर प्रत्याशियों का चयन किया जा रहा है। वहीं इस बार गठबंधन से अलग रहते हुए मैदान में उतरने वाली बसपा दोनों गठबंधनों के अरमानों पर पानी फेर सकती है। क्योंकि बसपा सोशल इंजीनियरिंग में माहिर है। इसके अलावा वह हर कददावर नेता बसपा का हाथ पकड़ेगा जिसे उसके पुराने दल ने टिकट नहीं दिया। इस तरह वह कुछ बसपा के कोर वोट और कुछ अपने बल पर मुकाबला त्रिकोणीय बनाएगा। वहीं कुछ दलों पर ओवैसी की पार्टी के उम्मीदवार चुनाव को चतुकोणीय बनाएंग। कुल मिलाजुलाकर2019 वाला समीकरण बनेगा। बता दे कि
गत चुनाव में सपा बसपा का गठबंधन था और कांग्रेस अकेले मैदान में उतरी थी, इसका फायदा बीजेपी को हुआ था। हालात कुछ ऐसे ही बनेंगे। मायावती के अकेले मैदान में उतरने के एलान के बाद से ही कांग्रेस बसपा को गठबंधन में लाने को इच्छुक दिखी, हालांकि अखिलेश के बयानों से मायावती की नाराजगी बढ़ गई है।
सोशल इंजीनियरिंग से मिली थी सफलता
यदि बसपा के इतिहास पर नजर डाले तो उसने सोशल इंजीनियरिंग के जरिए ही 2007 में कुर्सी पाई थी, हालांकि उस समय प्रदेश में बीजेपी उतनी ताकतवर नहीं थी, जितनी अब हैं फिलहाल वह अपने इस फार्मूले से दूसरों के सपनों पर ग्रहण लगा सकती है।पार्टी के अलंबरदार भी हामी भर रहे हैं कि टिकट वितरण में सभी जाति और धर्म को मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार आचार संहिता लागू होने से पहले बसपा प्रत्याशियों के नामों की पहली सूची आ सकती है। बसपा की इंडिया गठबंधन से करीबी बढ़ने की भी चर्चाएं आम हैं। बता दें कि 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा ने सपा ने सपा के साथ गठबंधन में चुनाव लड़कर 10 सीटों पर सफलता पाई थी। बसपा अपने पुराने एजेंडे पर लौटकर फिर से सोशल इंजीनियरिंग के माध्यम से लोकसभा चुनाव 2024 में आने की तैयारी कर रही है।
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