मिशन 400: लोकसभा चुनाव में भाजपा के लक्ष्य को ​जयंत करेंगे आसान, इंडिया गठबंधन बिखरा

लखनऊ। भाजपा मोदी सरकार की शानदार हैट्रिक के लिए अच्छी रणनीति के तहत आगे बढ़ रहीं हैं। भले ही अभी तक किसी भी सीट के लिए प्रत्याशी घोषित नहीं किया गया है, ले​किन हर सीट के लिए दिन रात गुणा गणित जारी हैं। जिन सीटों पर अड़चन आ रही हैं उसे जीतने के लिए हर तरह के चाल चली जा रही है। पश्चिम उत्तर प्रदेश यानि की जाटलैंड में इंडिया गठबंधन की मजबूती को तोड़ते हुए रालोद को एनडीए में लाकर बीजेपी ने बहुत बड़ी जंग जीत ली है।

लोकसभा चुनाव से पहले मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा कर भाजपा और राष्ट्रीय लोकदल के गठबंधन की पटकथा लिख दी है। इस तरह रालोद के एनडीए में शामिल होने से भाजपा को यूपी के साथ ही पंजाब, हरियाणा और राजस्थान में भी बढ़त मिल सकती है।

यूपी के बाहर भी फायदा

राजस्थान में विधानसभा चुनाव से पहले भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया को हटा दिया था। पूनिया भाजपा के जाट चेहरा थे। राजस्थान की भजनलाल सरकार में जाट समाज से कन्हैयालाल चौधरी और सुमित गोदारा कैबिनेट मंत्री, झाबर सिंह खर्रा राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार और विजय सिंह चौधरी राज्यमंत्री बनाए गए हैं। फिर भी राजस्थान में पार्टी के पास बड़े जाट चेहरे का अभाव है। हरियाणा में भी भाजपा व जननायक जनता पार्टी के नेता एवं डिप्टी सीएम दुष्यंत चौटाला के बीच अनबन की अटकलें है। वहां भी पार्टी के पास मजबूत जाट नेता का अभाव है। पार्टी लोकसभा चुनाव में जयंत को केवल यूपी ही नहीं अन्य राज्यों में भी सघन चुनावी दौरा कराएगी।

खतरें में इंडिया गठबंधन

बिहार में नीतीश के इंडिया गठबंधन छोड़ने के रालोद का गठबंधन छोड़ना किसी बड़े खतरे की घंटी है। रालोद की को एनडीए में वापसी से सपा को करारा झटका लगा है। विश्लेषकों के मुताबिक 2014 और 2019 के चुनाव में एनडीए से बाहर रहने के बाद रालोद का यूपी में खाता तक नहीं खुला। रामलहर के माहौल में 2024 में भी भाजपा के लिए राह ज्यादा मुश्किल नहीं थी, लेकिन भाजपा ने मिशन 400 पार के लक्ष्य में माहौल सृजन और इंडिया गठबंधन को कमजोर करने के लिए रालोद की कई शर्तें मानते हुए गठबंधन की पहल कर दी।

देश मिजाज भांप चुके है जयंत

जिस तरह से देश में मोदी और योगी का जादू चल रहा है, इसके बाद रामलहर के फायदे को जयंत चौधरी भांप चुके है। इसी के चलते उन्होंने इंडिया गठबंधन को छोड़ने में ही समझदारी दिखाई है। जहां एक तरफ गठबंधन में अखिलेश यादव की दादागिरी चल रही है, वह अपने मन से सीट सहयोगियों को सीट देकर अपना फैसला थोप रहे है, दूसरी तरह एनडीए सहयोगियों की भावनाओं का ख्याल रख रही हैं। वह निश्चित ही चुनाव में असर करेगी।

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