*गोरख पाण्डेय की कविता में स्त्रियों की आजादी का स्वर
*भगवान स्वरूप कटियार की कविता में मुक्ति का सौंदर्य
28 जनवरी 2024, लखनऊ। गोरख पाण्डेय स्मृति दिवस पर जन संस्कृति मंच की ओर से भगवान स्वरूप कटियार के नए कविता संग्रह ‘ईश्वर का कोरोना कोरस’ का विमोचन तथा इस पर परिचर्चा का आयोजन इप्टा कार्यालय, 22 कैसरबाग में किया गया। इसकी अध्यक्षता कवि व आलोचक चन्द्रेश्वर ने की तथा जसम लखनऊ के सचिव फरजाना महदी ने संचालन किया।
इस मौके पर उषा राय ने गोरख पांडेय को बहुत बढ़िया से परिभाषित किया तथा उनके स्टायर, विट और उनके शिल्प को बहुत विस्तार से बयान किया। उनका कहना था कि गोरख पांडेय की कविताएं 60 के दशक से गुणात्मक रूप से भिन्न है। वे सत्ता को सीधे चुनौती देते हैं। कविताओं में व्यंग्य के जितने रूप और स्तर हैं, वे मिलते हैं। ‘मैना’ में इसे देखा जा सकता है। यह आम जन का प्रतीक है। कविता कला के लिए ही नहीं जीवन के लिए हो, इस पर भी उन्होंने कविता लिखी। उनके गीतों में लोक कला और लोक कथाएं हैं। उषा राय ने बुआ का ज़िक्र किया कि स्त्री के अंदर अपनी शक्ति है, वो कोई सजावटी सामान नहीं है। ‘सात सुरों में पुकारता है प्यार’ आदि की भी चर्चा की तथा कहा कि गोरख पांडेय स्त्रियों की आजादी की बात करते हैं । वह कहते हैं कि स्त्रियां गिरती हैं तो मनुष्यता गिरती है।
उषा राय ने गोरख पाण्डेय की दो कविताएं , “उसको फांसी दे दो” और “कैथर कला की औरतें” भी पढ़ीं। गोरख पाण्डेय अपनी कविता में कहते हैं _‘आने वाले समय में/जब किसी पर जोर-जबरदस्ती नहीं की जा सकेगी/और जब सब लोग आजाद होंगे/और खुशहाल/तब सम्मानित किया जाएगा जिन्हें/स्वतंत्रता की ओर से उनकी पहली कतार में होंगी/कैथर कला की औरतें’।_
कार्यक्रम के दूसरे हिस्से में भगवान स्वरूप कटियार के सातवें कविता संग्रह , “ईश्वर का कोरोना कोरस” का विमोचन हुआ। इस पर अनेक वक्ताओं ने अपने विचार रखे ।
कवि व लेखक अशोक चंद्र ने कहा कि भगवान स्वरूप कटियार का पहला कविता संग्रह विद्रोही गीत 1978 में आया था। दीर्घकालीन रचना समय को कवि ने जीया है। इनका विशिष्टता है कि यह सरल शब्दों में सीधी बात करते हैं। समय और जनता की चिंता को बेलाग व्यक्त करते हैं। इनकी कविता के केंद्र में जिंदा चरित्र हैं। संघर्ष के साथियों को केंद्र में रखकर इन्होंने कविताएं लिखी हैं। लेखक व पत्रकार दयाशंकर राय ने गोरख पांडेय को याद करते हुए कहा कि गोरख जी और कटियार जी दोनों जटिल यथार्थ को सरल शैली में व्यक्त करते हैं। सरलता से यहां अर्थ सरलीकरण नहीं है। कटियार जी के संदर्भ में उन्होंने गोरख पांडेय की “वे डरते हैं ” और विष्णु नागर की “दो मोदी” का भी ज़िक्र किया।
कवि और आलोचक अनिल त्रिपाठी का कहना था कि कटियार जी की कविताएं भयातुर नहीं हैं। 90 के बाद भारत का बर्बर रूप सामने आया। यह स्मृतियों को खत्म कर देने का दौर है। इसको बचाना आवारा पूंजी को चुनौती देना है। कविताएं स्मृतियों को सजोती है। आर्थिक महाशक्ति को चुनौती देती है। इनकी चिंता में समूची दुनिया है। वह अपनी जीवन्तता के साथ बनी रहे, यह कवि के चिंतन में है।
कवि व आलोचक नलिन रंजन ने कहा कि यह मार्क्सवादी चेतन की कविताएं हैं जिसकी स्पष्ट पक्षधरता है। यह स्मृतियों के संहार का काल है। संबंधों को बचाना बड़ी बात है। कटियार जी की कविताओं में मुक्ति का सौंदर्य है। यह मुक्तिकामी कविताएं हैं। संग्रह का शीर्षक भी इसी के इर्द-गिर्द होना चाहिए। नलिन रंजन ने ‘भोर की याद’, ‘मेरी कविता’ की चर्चा करते हुए कहा कि कवि के अनुसार कविता आदमी होने का एहसास है।
कवि व पत्रकार सुभाष राय ने कहा कि कटियार जी लगातार अनुपस्थितियों से संवाद करते हैं । वे गत्यात्मक स्मृतियों पर बात करते हैं। रिश्तों पर लिखी कविताएं व्यक्तिगत से अधिक सामाजिक हैं। संग्रह की पहली कविता ही ईश्वर के प्रति नकार पैदा करती है। अंधविश्वास को खंडित करती है और वैज्ञानिक तर्क की ओर ली जाती है। संग्रह में ऐसी कई कविताएं हैं जिसमें संघर्ष को वरीयता दी गई है। यह समय है जब अभिधा में बात करने की जरूरत है। अच्छा व्यक्ति होना कविता के लिए जरूरी है। कटियार जी ऐसे ही व्यक्ति हैं, अपनी कविता की तरह ही दृढ़, निश्छल और सुंदर।
अध्यक्षीय वक्तव्य में चन्द्रेश्वर ने कहा कि कटियार जी सघन संवेदना के साथ प्रखर विचारों के कवि हैं। जीवन-जगत को देखने की उनके पास दृष्टि है। इनकी अधिकांश कविताएं समाज, राजनीति और संस्कृति के क्षेत्र के नायकों पर है । कविता में गांधी हैं , मार्क्स हैं। ये भगत सिंह और विनोद मिश्र पर कविता लिखते हैं । घर परिवार से लेकर वृहद दुनिया कविता में आती है। यह सरलता के कवि हैं। सरल होना मानवीय होना है और आज के समय में यह कठिन है।
कवयित्री सईदा सायरा ने भी कविता संग्रह पर अपने विचार रखे। जसम लखनऊ के सह सचिव कलीम खान ने सभी का धन्यवाद ज्ञापन किया। इस मौके पर असगर मेहदी, शकील सिद्दीकी, वीरेंद्र सारंग, विमल किशोर, तस्वीर नकवी, राजेंद्र वर्मा, सीमा सिंह, शालिनी सिंह, आशीष सिंह, राकेश कुमार सैनी, राजा सिंह, प्रदीप घोष,अरविन्द शर्मा, प्रमोद प्रसाद, सुशील कुमार सिंह, मदन भाई पटेल, अर्चिता राय, डॉ रामचंद्र सरस, कौशल किशोर आदि साहित्य प्रेमी उपस्थित थे। कार्यक्रम के अंत में अरविन्द शर्मा ने गोरख पाण्डेय का गीत ‘जनता के आवे पलटनिया’ सुनाया।