लखनऊ। सत्तारूढ़ पार्टी बीजेपी संगठन को नए सिरे से खड़ा करने में जुटी हुई, बूथ लेबल से लेकर राष्ट्रीय अध्यक्ष तक नए और दमदार चेहरों को मैदान में लाकर मिशन 2027को सफल बनाने में जुट गई है। जिलाध्यक्षों के चयन में विपक्ष के पीडीए फार्मूले को भरपूर प्रतिनिधित्व देने के बाद भाजपा अब दलित का जवाब देने की तैयारी में जुट गई है। इसके लिए पार्टी नेतृत्व प्रदेश अध्यक्ष के चयन में दलित चेहरे पर दांव लगा सकता है। ऐसे कई नामों पर मंथन भी शुरू कर दिया गया है।
मिशन 2027 की तैयारी
भाजपा का मानना है कि जनसंघ से लेकर अब तक प्रदेश में एक बार भी दलित अध्यक्ष नहीं रहा है। इसलिए पार्टी नया प्रयोग कर विधानसभा Mission 2027 के लिए सियासी पिच तैयार करना चाहती है। दरअसल, सभी दलों को लगने लगा है कि पिछड़े और दलित वोटबैंक को साधे बिना प्रदेश की सत्ता पाना आसान नहीं है। ऐसे में सभी दल दोनों समुदायों को साधने की रणनीति बनाने में जुटे हैं।
भाजपा को 2014 के पहले तक अगड़ों की पार्टी कहा जाता था, उसके एजेंडे में भी अब दोनों समुदाय सबसे ऊपर हैं। भाजपा ने हाल में 70 जिलाध्यक्षों के चयन में सामान्य के साथ पिछड़ा वर्ग को भरपूर प्रतिनिधित्व देकर मंशा साफ कर दी है। हालांकि, इनमें दलित समुदाय की भागीदारी कुछ कम रह गई है। इसलिए भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी पर दलित चेहरे को बैठाकर संतुलन बनाने का विचार कर रही है। दलित चेहरे पर दांव लगाने का कारण यह है कि जनसंघ से लेकर भाजपा तक में दलित चेहरे के तौर पर सिर्फ राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे बंगारू लक्ष्मण को मौका मिला था। इसलिए पार्टी इस बार यूपी में नया प्रयोग कर दलितों में संदेश देना चाहती है कि भाजपा में पिछड़ों के साथ दलितों की बराबर अहमियत है।
हिंदुत्व समर्थकों को जोड़ना जरूरी
दलितों में खटिक और बाल्मिकी समाज भाजपा का कोर वोटबैंक रहा है। समुदाय की अन्य जातियां बीच-बीच में दूसरे दलों की तरफ जाती रही हैं, लेकिन ये दोनों जातियां भाजपा के साथ खड़ी रहीं। दोनों जातियां हमेशा से हिंदुत्व समर्थक भी रही हैं। इसलिए भाजपा के लिए इनको जोड़े रखना जरूरी है। दरअसल इन दिनों बसपा को मजबूत करने के लिए मायावती दलित वोट बैंक को सहेजने के लिए सक्रिय हुई हैं। उसे देखते हुए भी भाजपा प्रदेश अध्यक्ष के लिए दलित चेहरे को मौका देकर अपने कोर दलित वोटरों को जोड़े रखना चाहती है।
आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर भी दलितों के बीच रसूख बनाते दिख रहे हैं। लिहाजा, भाजपा दलित कार्ड चलने पर मंथन कर रही है। प्रदेश अध्यक्ष पद के लिए कई नामों पर चर्चा चल रही है, लेकिन सूत्रों की मानें तो सबसे अधिक चिंतन संघ में स्वयंसेवक की पृष्ठभूमि और संगठन चलाने का अनुभव रखने वाले चेहरे पर हो रहा है। इससे संघ परिवार की सहमति लेने में भी पार्टी को दिक्कत नहीं आएगी।
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