बाल कविता: हाँड कँपाने आया फिर से, जाड़े का मौसम…

115
लखनऊ के बाल साहित्यकार राम नरेश 'उज्ज्वल' की नई बाल कविता 'जाड़े का मौसम'

धीरे-धीरे ठंड बढ़ गई, गरमी हुई ख़तम।
हाँड कँपाने आया फिर से, जाड़े का मौसम ।।

पानी जमकर बर्फ हो गया, हवा चली सर-सर,
काँप रही है चिड़िया रानी, काँप रहे हैं पर,
बेरहमी के साथ सभी पर, सर्दी करे सितम ।
हाँड कँपाने आया फिर से, जाड़े का मौसम ।।

दस कपड़े पहने हैं फिर भी, काँप रहा है तन,
कैसे गर्मी भरे देह में, सोच रहा है मन,
बंद पड़े बक्से से निकले स्वेटर, कोट गरम ।
हाँड कँपाने आया फिर से, जाड़े का मौसम ।।

दिन भर नहीं निकलता सूरज, बैठा है छिप कर,
लिए रजाई दुबका होगा, वह भी बिस्तर पर,
पानी जैसे डंक मारता, रग-रग में हरदम ।
हाँड कँपाने आया फिर से, जाड़े का मौसम ।।

लकड़ी लाकर आग जलाई, दादाजी ने जब,
बैठ गए फिर गोल बनाकर, पास आग के सब,
आँच मिली तो ठिठुरन तन की थोड़ी हो गई कम।
हाँड कँपाने आया फिर से, जाड़े का मौसम ।।

~राम नरेश ‘उज्ज्वल’ (लखनऊ)

इसे भी पढ़ें..

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here